200+ New Maut shayari in Hindi 2025

ज़िंदगी और मौत का रिश्ता बहुत गहरा होता है। जहाँ ज़िंदगी हमें हँसना सिखाती है, वहीं मौत हमें उसकी अहमियत समझाती है। हिंदी शायरी की दुनिया में Maut Shayari in Hindi एक ऐसा विषय है जो दिल को छू लेने वाली भावनाओं से भरपूर होता है। ये शायरियाँ न केवल दर्द को बयाँ करती हैं, बल्कि पाठकों को सोचने पर भी मजबूर कर देती हैं। इस ब्लॉग में हम आपके लिए कुछ बेहतरीन और भावनात्मक मौत शायरियाँ लेकर आए हैं जो आपकी भावनाओं को शब्दों में बयाँ करेंगी। चलिए इस सफर की शुरुआत करते हैं।
Maut Shayari in Hindi
बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई
इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ
ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब
मौत क्या है इन्हीं अज्ज़ा का परेशाँ होना

ख़ाक-ए-बदन तिरी सब पामाल होगी इक दिन
रेग-ए-रवाँ बनेगा आख़िर को ये जज़ीरा
अबद के दोश पे सू-ए-अज़ल चले हैं कि हम
नया ही नक़्श कोई दहर का बनाते हैं
ताबे रज़ा का उस की अज़ल सीं किया मुझे
चलता नहीं है ज़ोर किसूँ का क़ज़ा के हाथ
मौत का एक दिन मुअय्यन है
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती
मौत का भी इलाज हो शायद
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं
ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था
हमीं सो गए दास्ताँ कहते कहते
उस गली ने ये सुन के सब्र किया
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं
हुए नामवर बे-निशाँ कैसे कैसे
ज़मीं खा गई आसमाँ कैसे कैसे
रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई
तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई
कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई
कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए
आई होगी किसी को हिज्र में मौत
मुझ को तो नींद भी नहीं आती
मरते हैं आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नहीं आती
न गोर-ए-सिकंदर न है क़ब्र-ए-दारा
मिटे नामियों के निशाँ कैसे कैसे
कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा
मैं तो दरिया हूँ समुंदर में उतर जाऊँगा
कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं
ज़िंदगी तू ने तो धोके पे दिया है धोका
मौत से किस को रुस्तगारी है
आज वो कल हमारी बारी है
रोने वालों ने उठा रक्खा था घर सर पर मगर
उम्र भर का जागने वाला पड़ा सोता रहा
Sad Maut Shayari
मौत उस की है करे जिस का ज़माना अफ़्सोस
यूँ तो दुनिया में सभी आए हैं मरने के लिए
ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर
आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है
जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं
ख़ुदा मिलाए उन्हें ज़िंदगी के मारों से
लोग अच्छे हैं बहुत दिल में उतर जाते हैं
इक बुराई है तो बस ये है कि मर जाते हैं
माँ की आग़ोश में कल मौत की आग़ोश में आज
हम को दुनिया में ये दो वक़्त सुहाने से मिले
मिरी ज़िंदगी तो गुज़री तिरे हिज्र के सहारे
मिरी मौत को भी प्यारे कोई चाहिए बहाना
शुक्रिया ऐ क़ब्र तक पहुँचाने वालो शुक्रिया
अब अकेले ही चले जाएँगे इस मंज़िल से हम
माँगी थी एक बार दुआ हम ने मौत की
शर्मिंदा आज तक हैं मियाँ ज़िंदगी से हम
ज़िंदगी है अपने क़ब्ज़े में न अपने बस में मौत
आदमी मजबूर है और किस क़दर मजबूर है
मौत का इंतिज़ार बाक़ी है
आप का इंतिज़ार था न रहा
मुझ को मालूम है अंजाम-ए-मोहब्बत क्या है
एक दिन मौत की उम्मीद पे जीना होगा
ज़िंदगी इक सवाल है जिस का जवाब मौत है
मौत भी इक सवाल है जिस का जवाब कुछ नहीं
दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है
मौत मिले तो मुफ़्त न लूँ हस्ती की क्या हस्ती है
ज़िंदगी इक हादसा है और कैसा हादसा
मौत से भी ख़त्म जिस का सिलसिला होता नहीं
मौत ही इंसान की दुश्मन नहीं
ज़िंदगी भी जान ले कर जाएगी
जाने क्यूँ इक ख़याल सा आया
मैं न हूँगा तो क्या कमी होगी
मौत कहते हैं जिस को ऐ ‘साग़र’
ज़िंदगी की कोई कड़ी होगी
Sad Maut Shayari in Hindi
घसीटते हुए ख़ुद को फिरोगे ‘ज़ेब’ कहाँ
चलो कि ख़ाक को दे आएँ ये बदन उस का
वो जिन के ज़िक्र से रगों में दौड़ती थीं बिजलियाँ
उन्हीं का हाथ हम ने छू के देखा कितना सर्द है
मौत से क्यूँ इतनी वहशत जान क्यूँ इतनी अज़ीज़
मौत आने के लिए है जान जाने के लिए
कौन जीने के लिए मरता रहे
लो सँभालो अपनी दुनिया हम चले
मौत क्या एक लफ़्ज़-ए-बे-मअ’नी
जिस को मारा हयात ने मारा

उठ गई हैं सामने से कैसी कैसी सूरतें
रोइए किस के लिए किस किस का मातम कीजिए
मौत ख़ामोशी है चुप रहने से चुप लग जाएगी
ज़िंदगी आवाज़ है बातें करो बातें करो
नींद को लोग मौत कहते हैं
ख़्वाब का नाम ज़िंदगी भी है
अब नहीं लौट के आने वाला
घर खुला छोड़ के जाने वाला
‘अनीस’ दम का भरोसा नहीं ठहर जाओ
चराग़ ले के कहाँ सामने हवा के चले
मिट्टी का बदन कर दिया मिट्टी के हवाले
मिट्टी को कहीं ताज-महल में नहीं रक्खा
दर्द को रहने भी दे दिल में दवा हो जाएगी
मौत आएगी तो ऐ हमदम शिफ़ा हो जाएगी
बे-तअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं
ज़िंदगी क्या मौत भी अच्छी नहीं
हमारी ज़िंदगी तो मुख़्तसर सी इक कहानी थी
भला हो मौत का जिस ने बना रक्खा है अफ़्साना
बड़ी तलाश से मिलती है ज़िंदगी ऐ दोस्त
क़ज़ा की तरह पता पूछती नहीं आती
इस वहम से कि नींद में आए न कुछ ख़लल
अहबाब ज़ेर-ए-ख़ाक सुला कर चले गए
नींद क्या है ज़रा सी देर की मौत
मौत क्या क्या है तमाम उम्र की नींद
Maut Shayari 2 Line
ज़िंदगी से तो ख़ैर शिकवा था
मुद्दतों मौत ने भी तरसाया
कल उस की आँख ने क्या ज़िंदा गुफ़्तुगू की थी
गुमान तक न हुआ वो बिछड़ने वाला है
बला की चमक उस के चेहरे पे थी
मुझे क्या ख़बर थी कि मर जाएगा
यूँ तेरी रहगुज़र से दीवाना-वार गुज़रे
काँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे
ज़िंदगी फ़िरदौस-ए-गुम-गश्ता को पा सकती नहीं
मौत ही आती है ये मंज़िल दिखाने के लिए

बहुत अज़ीज़ थी ये ज़िंदगी मगर हम लोग
कभी कभी तो किसी आरज़ू में मर भी गए
तिरी वफ़ा में मिली आरज़ू-ए-मौत मुझे
जो मौत मिल गई होती तो कोई बात भी थी
मौत भी दूर बहुत दूर कहीं फिरती है
कौन अब आ के असीरों को रिहाई देगा
अपने काँधों पे लिए फिरता हूँ अपनी ही सलीब
ख़ुद मिरी मौत का मातम है मिरे जीने में
मिरा गुमान है शायद ये वाक़िआ’ हो जाए
कि शाम मुझ में ढले और सब फ़ना हो जाए
कैसे आ सकती है ऐसी दिल-नशीं दुनिया को मौत
कौन कहता है कि ये सब कुछ फ़ना हो जाएगा
मौत के साथ हुई है मिरी शादी सो ‘ज़फ़र’
उम्र के आख़िरी लम्हात में दूल्हा हुआ मैं
सँभाला होश तो मरने लगे हसीनों पर
हमें तो मौत ही आई शबाब के बदले
छोड़ के माल-ओ-दौलत सारी दुनिया में अपनी
ख़ाली हाथ गुज़र जाते हैं कैसे कैसे लोग
ज़िंदगी की बिसात पर ‘बाक़ी’
मौत की एक चाल हैं हम लोग
हद से गुज़रा जब इंतिज़ार तिरा
मौत का हम ने इंतिज़ार किया
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मौत से पहले जहाँ में चंद साँसों का अज़ाब
ज़िंदगी जो क़र्ज़ तेरा था अदा कर आए हैं
मिरी नाश के सिरहाने वो खड़े ये कह रहे हैं
इसे नींद यूँ न आती अगर इंतिज़ार होता
ये हिजरतें हैं ज़मीन ओ ज़माँ से आगे की
जो जा चुका है उसे लौट कर नहीं आना
किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला
बशर को ज़ीस्त मिली मौत को बहाना मिला
न सिकंदर है न दारा है न क़ैसर है न जम
बे-महल ख़ाक में हैं क़स्र बनाने वाले
कहानी है तो इतनी है फ़रेब-ए-ख़्वाब-ए-हस्ती की
कि आँखें बंद हूँ और आदमी अफ़्साना हो जाए
मौत बर-हक़ है एक दिन लेकिन
नींद रातों को ख़ूब आती है
नश्शा था ज़िंदगी का शराबों से तेज़-तर
हम गिर पड़े तो मौत उठा ले गई हमें
अयादत होती जाती है इबादत होती जाती है
मिरे मरने की देखो सब को आदत होती जाती है
आख़िर इक रोज़ तो पैवंद-ए-ज़मीं होना है
जामा-ए-ज़ीस्त नया और पुराना कैसा
ऐ अजल एक दिन आख़िर तुझे आना है वले
आज आती शब-ए-फ़ुर्क़त में तो एहसाँ होता
ये किस मक़ाम पे सूझी तुझे बिछड़ने की
कि अब तो जा के कहीं दिन सँवरने वाले थे
Maut Shayari in Hindi 2 Line
रोते जो आए थे रुला के गए
इब्तिदा इंतिहा को रोते हैं
विदाअ’ करती है रोज़ाना ज़िंदगी मुझ को
मैं रोज़ मौत के मंजधार से निकलता हूँ
वो अगर आ न सके मौत ही आई होती
हिज्र में कोई तो ग़म-ख़्वार हमारा होता
मौत आ जाए क़ैद में सय्याद
आरज़ू हो अगर रिहाई की

मौत माँगी थी ख़ुदाई तो नहीं माँगी थी
ले दुआ कर चुके अब तर्क-ए-दुआ करते हैं
मौत न आई तो ‘अल्वी’
छुट्टी में घर जाएँगे
ऐ हिज्र वक़्त टल नहीं सकता है मौत का
लेकिन ये देखना है कि मिट्टी कहाँ की है
हाँ ऐ फ़लक-ए-पीर जवाँ था अभी आरिफ़
क्या तेरा बिगड़ता जो न मरता कोई दिन और
ख़ाक और ख़ून से इक शम्अ जलाई है ‘नुशूर’
मौत से हम ने भी सीखी है हयात-आराई
पुतलियाँ तक भी तो फिर जाती हैं देखो दम-ए-नज़अ
वक़्त पड़ता है तो सब आँख चुरा जाते हैं
नहीं ज़रूर कि मर जाएँ जाँ-निसार तेरे
यही है मौत कि जीना हराम हो जाए
जो उन्हें वफ़ा की सूझी तो न ज़ीस्त ने वफ़ा की
अभी आ के वो न बैठे कि हम उठ गए जहाँ से
बहर-ए-ग़म से पार होने के लिए
मौत को साहिल बनाया जाएगा
मौत की एक अलामत है अगर देखा जाए
रूह का चार अनासिर पे सवारी करना
दिन ढल रहा था जब उसे दफ़ना के आए थे
सूरज भी था मलूल ज़मीं पर झुका हुआ
मैं नाहक़ दिन काट रहा हूँ
कौन यहाँ सौ साल जिया है
बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
मरने के ब’अद हाथ से मोती बिखर गए
फ़िल-हक़ीक़त कोई नहीं मरता
मौत हिकमत का एक पर्दा है
मसरूफ़ गोरकन को भी शायद पता नहीं
वो ख़ुद खड़ा हुआ है क़ज़ा की क़तार में
नहीं बचता है बीमार-ए-मोहब्बत
सुना है हम ने ‘गोया’ की ज़बानी
ऐ अजल कुछ ज़िंदगी का हक़ भी है
ज़िंदगी तेरी अमानत ही सही
मौत की गोद में जब तक नहीं तू सो जाता
तू ‘सदा’ चैन से हरगिज़ नहीं सोने वाला
इक मोहब्बत भरे सिनेमा में
मेरे मरने का सीन मेरे ख़्वाब
दिल कई साल से मरघट की तरह सूना है
हम कई साल से रौशन हैं चिताओं की तरह
ख़ूब-ओ-ज़िश्त-ए-जहाँ का फ़र्क़ न पूछ
मौत जब आई सब बराबर था
ख़ुद-कुशी का फ़ैसला ये सोच कर हम ने किया
कौन करता ज़िंदगी का मौत से अच्छा इलाज
मैं उस को मौत से भी छीन लाता
वो जीने के लिए तय्यार कब था