120+ Family Sad Shayari in Hindi 2025

Family Sad Shayari

परिवार हमारे जीवन की सबसे बड़ी ताकत और सुकून का स्रोत होता है, लेकिन जब इसी परिवार में दूरी या दर्द आता है, तो दिल बहुत टूट जाता है। अपनों से बिछड़ने या गलतफहमी के कारण जो दर्द महसूस होता है, उसे शब्दों में बयां करना आसान नहीं। Family Sad Shayari In Hindi उन्हीं भावनाओं को अल्फ़ाज़ देती है जो टूटे रिश्तों, अधूरेपन और यादों से जुड़ी हैं। इस लेख में आपको ऐसी शायरियां मिलेंगी जो दिल के दर्द को बयां करती हैं और परिवार की अहमियत का एहसास फिर से दिला देती हैं।

Family Sad Shayari In Hindi

अपने भी नहीं पहचानते
कदर सिर्फ पैसे की होती है,
बात बात में टूटते है रिश्ते
हर रिश्ते की नींव झूठी होती है।

दीवारें खड़ी हो जाती है
लोग दूर निकल जाते है,
जब तक हाथ पकड़ने की सोचो
अपने भी बदल जाते है।

घर अपना नहीं लगता
परिवार का साया डराने लगा है,
जिस आंगन में खेले थे दो भाई
वो ही हमे सताने लगा है।

चेहरे पे मुस्कान छुपाते हैं
दर्द को दिल में बसाते है
रिश्तों दिखावे के है दुनिया में
अपने परिवार के लोग ही डराते है।

Family Sad Shayari in Hindi
Family Sad Shayari in Hindi

घर में वो बात कहां
कभी लोग प्यार निभाते थे,
अब है बस मतलब के रिश्ते
फैमिली के लोग ही धोखा दे जाते है।

जो साथ थे कल तक
आज वो भी पराए है,
रिश्तों की इस दुनिया में
परिवार के लोग ही काले साए है।

फैमिली लोगों से होती है
दिलो में प्यार समाती है,
जब अपने ही हो दुश्मन
दिलो का सुकून ले जाती है।

रिश्तों की इस भीड़ में,
अपना कोई ना मिला,
कैसे करे फिर हम
औरों से कोई गिला।

परिवार की भीड़ में
अकेलापन सा लगता है,
हर शख़्स दिखता है पराया
दिल अपना कहने से डरता है।

अपनी ही Family में
पराए जैसा व्यहवार है,
दर्द क्यों देते है अपने
क्या यही अपनो का प्यार है।

जिनके साथ हंसते
जो कभी अपना बताते,
अपने परिवार के लोग ही
अब मुझे गैर है बताते।

अपनों से अब दूरी है
अब कोई हाल नहीं बताता,
बात करो परिवार से तो
बड़ा भाई ही मुंह मोड़ जाता।

अपने ही जब सवाल करें
दिल में ज़ख्म उभर आते हैं,
जो दर्द बता नहीं सकते किसी से
आंखों से आंसू बनकर बह जाते हैं।

अपनी ही Family ने
मुझे रुलाया बहुत है,
जिसको अपना समझा,
उसने चोट पहुंचाया बहुत है।

हर कोना खाली है
सबकी यादें भरी है,
परिवार में है लड़ाई
तन्हाई की मार पड़ी है।

हर कदम सफल हो जाऊं
अगर फैमिली मेरी साथ दे जाए,
कुछ अच्छा करने की सोचूं कैसे
अपने ही लोग जब दिल दुखाए।

रिश्ते अब बोझ लगे
रात भर जागता हु,
परिवार में है बस ताने
ऑफिस जाने की राह ताकता हुं।

प्यार कहीं भी नहीं
हर तरफ बस दिखावा है,
फैमिली के नाम पे
सुकून मैने अपना गवाया है।

घर परिवार से होता है
रिश्ता किसी को नहीं निभाना है,
दिनभर थक के आओ घर
तो लड़कर सो जाना है।

हर रिश्ते में अब घुटन सी है,
अपनों के बीच भी अजनबी सी हालत है।

खामोशी बोलती है दर्द की कहानी,
जब घर में अपनों से ही मिले वीरानी।

बचपन की यादें भी अब चुभती हैं,
जब देखते हैं रिश्तों को टूटते हुए।

उम्मीदों का बोझ इतना बढ़ गया,
अपने ही घर में बेगाना कर गया।

दिल टूटा है, आवाज़ नहीं आती,
जब अपनों से ही ठेस पहुँच जाती।

वो घर अब घर नहीं लगता,
जहाँ अपनों का प्यार नहीं मिलता।

आँसू छुपाना भी एक हुनर है,
जब दर्द देने वाले अपने ही हों।

तन्हाई महसूस होती है भीड़ में,
अपनों के बीच भी अकेलापन है।

ज़िंदगी ने सिखाया है सबक ये,
अपने ही देते हैं सबसे गहरे ज़ख्म।

मुस्कुराहट के पीछे का दर्द,
कौन समझेगा इस बेगाने घर में।

किस्मत ने खेल खेला ऐसा,
अपने ही घर में पराया बना दिया।

रिश्तों की डोर इतनी कमज़ोर क्यों है,
पल भर में टूट जाती है ये क्यों है।

घर की खुशियाँ रूठ गई हैं,
जब अपनों की नज़रें बदल गई हैं।

कोई समझे ना दर्द-ए-दिल मेरा,
अपने ही घर में घूँट घूँट मरना।

हर रात एक नया ग़म देती है,
अपनों की बेरुख़ी आँखें नम करती है।

मोहब्बत की जलती शमा बुझ गई,
जब अपनों की नफ़रत आग बन गई।

टूटे हुए दिल की आवाज़ नहीं,
अपने ही घर में सुकून नहीं।

हर रिश्ता एक बोझ सा लगता है अब,
जब अपनों से ही मिले बस तकलीफ़ अब।

ग़मों का सिलसिला ख़त्म नहीं होता,
जब अपनों से ही दर्द मिलता रहता।

अब बस थक गए हैं लड़ते लड़ते,
अपनों से ही दूर भागते भागते।

ज़िंदगी में सबसे मुश्किल पल वो है,
जब अपनों से ही दूरी महसूस हो।

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भीड़ में भी तन्हा रहना पड़ता है,
जब घर में भी न मिले सुकून।

क़िस्मत ने खेल खेला है ऐसा,
अपनों ने ही बना दिया पराया।

जीने की वजह ढूँढ़ते हैं हम,
जब हर रिश्ता लगे बेगाना सा।

घर की दहलीज़ पे ग़म खड़ा है,
अपनों की ख़ामोशी से दिल भरा है।

ज़िंदगी ने दिए हैं ऐसे ज़ख़्म,
जिनका इलाज अपनों के पास नहीं।

हर ख़ुशी अधूरी लगती है अब,
जब घर में अपनापन न हो।

रिश्तों की उलझन में खो गई ज़िंदगी,
अपनों के बीच भी अकेला रहना पड़ा।

कैसे समझाऊँ दर्द-ए-दिल अपना,
जब अपनों की आँखों में प्यार न हो।

अंधेरे में भी रौशनी ढूँढ़ते हैं,
जब अपनों का साथ छूट गया हो।

गुज़ारिश है ज़िंदगी से अब यही,
कि अपनों से मिला दर्द कम हो।

हर सुबह एक नया ग़म लाती है,
जब घर में सिर्फ़ तन्हाई हो।

सपने तो बहुत थे इस ज़िंदगी से,
पर अपनों ने ही उन्हें तोड़ दिया।

दिल में बोझ लिए जीते हैं,
अपनों की बेरुख़ी बर्दाश्त करते हैं।

अजीब है ये ज़िंदगी का सफ़र,
जहाँ अपनों से ही मिलता है डर।

हँसी तो होठों पे रहती है,
पर आँखों में नमी छुपी रहती है।

बिखरे हुए रिश्तों को समेटते हैं,
हर रोज़ नए ग़म मिलते रहते हैं।

जहाँ प्यार होना चाहिए था,
वहाँ सिर्फ़ रंजिशें मिलती हैं।

ज़िंदगी ने दिखाया है ऐसा रंग,
जहाँ अपने ही देते हैं चुभन।

थक गए हैं अब ये दिल और जाँ,
अपनों से मिले ग़मों से परेशान।

दिल में ग़म, होंठों पे मुस्कुराहट,
लड़का हूँ, मुझे रोना मना है।

परिवार की ख़ुशियों के लिए जीता हूँ,
अपना दर्द छुपाना कहाँ मना है।

बाप की इज़्ज़त, माँ का प्यार,
सब कुछ है पर ख़ुद में बेकार।

अपनी तकलीफ़ किसी को ना बता पाएँ,
इस घर में मेरा दर्द है बे-ऐतबार।

ज़िम्मेदारी का बोझ बहुत है मुझ पर,
कोई समझे न मेरे अंदर का ये डर।

कहने को तो पूरा घर है मेरा,
पर सच कहूँ, अकेला हूँ मैं यहाँ।

आँखों में नींद नहीं, बस ख़ामोशी है,
जब अपनों से ही मिली रूठी सी ज़िंदगी है।

हर लड़के की कहानी कुछ ऐसी है,
दर्द छुपा के हँसना उसकी लाज़मी है।

टूटे हुए ख़्वाबों का ढेर है सीने में,
कोई पूछे ना हाल इस ज़ीने में।

घर से दूर भी जाऊँ तो जाऊँ कहाँ,
हर जगह लगता है अपनापन है कहाँ।

मर्दानगी के पीछे छुपा है एक दिल,
जो रोता है जब रिश्ते होते हैं बोझिल।

सबकी उम्मीदों पर खरा उतरना है,
पर अपनी ख़ुशियों का क्या करना है।

जब भी देखा, बस काम ही काम मिला,
अपने लिए कभी न आराम मिला।

सोचता हूँ, काश कोई समझ पाता,
मेरे अंदर का अकेलापन जान पाता।

चेहरे पर ज़बरदस्ती की हँसी रखता हूँ,
अंदर से कितना टूटा हूँ, ये जानता हूँ।

एक लड़का ही जाने क्या गुज़रती है,
जब उसकी ख़ुद की पहचान बिखरती है।

परिवार के लिए सब कुछ कुर्बान किया,
पर अपने लिए कुछ भी न हासिल किया।

कभी कभी लगता है साँस रोक लूँ,
इस बोझ से भरी ज़िंदगी को छोड़ दूँ।

कोई सहारा नहीं, कोई हमदर्द नहीं,
अपने ही घर में क्यों मिलता दर्द ही दर्द।

बस अब थक गया हूँ ये सब सहते सहते,
जीना चाहता हूँ अपनी मर्ज़ी से जीते जीते।

Girl Family Sad Shayari in Hindi

बेटी हूँ, मुझपे कई पाबंदियां हैं,
अपने सपने भी पूरे करना मना है।

दिल में दर्द का समंदर छुपा है,
आँखों में आँसू छुपाना कहाँ मना है।

रिश्तों की रीत में उलझ गई मैं,
अपनों की ख़ुशी में खो गई मैं।

Girl Family Sad Shayari
Girl Family Sad Shayari

अपना वजूद ढूँढती हूँ अब,
इस घर में कहीं खो गई मैं।

चुप रहना ही पड़ता है अक्सर,
जब कोई सुनने वाला न हो।

हर बात पर मिली बस ताना,
क्या यही है इक बेटी का घराना?

सपने सजाए थे आँखों में कितने,
अपनों ने ही तोड़ दिए वो सारे।

पराया धन कहते हैं सब मुझे,
पर अपनों ने भी अपना न समझा कभी।

बचपन से ही सिखाया गया ये,
कि परायों के घर जाना है इक दिन।

खुली किताब हूँ मैं, पर पढ़ता कोई नहीं,
मेरे अंदर का दर्द समझता कोई नहीं।

कब तक ये घूँट पीती रहूँगी,
अपनों की उम्मीदों पर जीती रहूँगी।

मेरी हँसी के पीछे दर्द छुपा है,
जिसे मेरे अपने भी नहीं जान पाए।

दिल रोता है और आँखें नम रहती हैं,
जब अपनों की नज़रें बदल जाती हैं।

प्यार की उम्मीद में रही ताउम्र,
पर मिला बस अकेलापन और तन्हाई।

काश कोई मुझसे भी पूछता,
कि बेटी, तुम ख़ुश हो या नहीं?

अपनी ही दुनिया में कैद हूँ मैं,
अपनों ने ही दीवारें बना दी हैं।

कोई मेरी सुनो भी तो सही,
ये दर्द की दास्तान सुनो भी तो सही।

मुझे उड़ने नहीं दिया कभी,
पिंजरे में ही रखना चाहते हैं ये सभी।

बेबस हूँ, लाचार हूँ मैं,
अपने ही घर में परेशान हूँ मैं।

अब तो बस मौत का इंतज़ार है,
शायद वहीं मिलेगा मुझे करार है।

घर में हँसी कम, टेंशन ज़्यादा है,
हर रिश्ते में अब बस दिखावा है।

मिडिल क्लास की कहानी कुछ ऐसी है,
जहाँ ख़ुशी से ज़्यादा ग़म का पहरा है।

बात बात पे झगड़े, हर पल की तकरार,
ऐसा लगता है जैसे टूट रहा है परिवार।

दिल में दर्द लिए जीते हैं हम,
ये रिश्तों का कैसा है ये संसार?

ख़ामोशी भरी है घर की हवा में,
अपनों के बीच भी अकेलापन है फ़िज़ा में।

छोटी छोटी बातों पर लड़ाई होती है,
अब तो हर रात रो रो कर सोती है।

रिश्तों में दरारें पड़ गई हैं गहरी,
अब तो बस उदासी है ठहरी।

अपनों की नाराज़गी का बोझ लिए,
हर दिन जीना मुश्किल होता जा रहा है।

कहाँ खो गए वो प्यार भरे पल,
अब तो बस तनाव है हर पल।

घर की दीवारें भी अब रोती हैं,
जब अपनों की नफ़रतें दिखती हैं।

कोई सुलझा दे इन रिश्तों की गुत्थी,
अब तो बस थक गई है ये रुत ही।

प्यार की जगह शक और नफ़रत है,
इस घर में अब कहाँ मोहब्बत है?

अंदर से टूटे हैं, पर दिखाते नहीं,
ये तकलीफें किसी को बताते नहीं।

हर आवाज़ में अब कड़वाहट है,
रिश्तों में कहाँ बची अब चाहत है?

सुकून ढूँढ़ते हैं अब घर के बाहर,
अंदर तो बस ज़हर है और है तकरार।

ग़मों की चादर ओढ़े बैठा है घर,
अपनों से ही मिलता है अब डर।

दूरियाँ बढ़ रही हैं धीरे धीरे,
अपने ही बन गए हैं अब पराये।

टूटे हुए शीशे सा है रिश्ता,
जोड़ने की कोशिश में और बिखरता।

किस्मत का खेल है या अपनों की देन,
हर पल मिलती है बस यही बेचैन।

ये कैसी उलझन है, कैसा है ये मंज़र,
घर में ही क्यों नहीं मिलता अब दिलबर।

Miss You Family Sad Shayari

दूर रहकर भी याद आते हो तुम,
हर पल हर लम्हा सताते हो तुम।

काश होते तुम साथ हमारे,
हर खुशी, हर ग़म बाँट लेते।

जबसे हुए हैं दूर, ज़िंदगी ठहर गई,
तुम्हारी यादों में ही रात गुज़र गई।

Miss You Family Sad Shayari
Miss You Family Sad Shayari

मिस करता हूँ हर पल तुम्हारी बातों को,
काश ये दूरियाँ कभी न बढ़ती।

घर सूना लगता है तुम्हारे बिना,
हर कोना याद दिलाता है।

आँखें नम हैं, दिल में उदासी है,
तुम्हारे बिना हर साँस प्यासी है।

लौट आओ ना, बहुत याद आते हो,
तुम्हारे बिना हर पल अधूरे से लगते हैं।

वक़्त गुज़र रहा है, पर तुम नहीं,
दिल में तुम्हारे लिए प्यार कम नहीं।

वो पुरानी बातें, वो हँसी के पल,
याद आते हैं और नम करते हैं पल।

तन्हाइयों में जब भी अकेला होता हूँ,
तुम्हारी यादों में कहीं खो जाता हूँ।

काश ये दूरियाँ मिट जाएँ सारी,
मिल जाएँ फिर से हम सारे के सारे।

हर त्योहार, हर ख़ुशी अधूरी है,
जबसे तुमसे ये दूरी हुई है।

दिल करता है भाग कर आ जाऊँ,
तुम्हारी गोद में सर रख के सो जाऊँ।

तुम्हें याद करते करते सुबह से शाम हुई,
तुम्हारी यादें ही अब मेरी जान हुई।

ये दूरियाँ अब सही नहीं जातीं,
तुम्हारे बिना रातें कटती नहीं जातीं।

Love and Family Sad Shayari

प्यार भी किया, भरोसा भी किया,
पर अपनों ने ही दिल तोड़ दिया।

कैसा ये रिश्ता, कैसी ये मोहब्बत,
जहाँ अपने ही देते हैं रुसवाई।

मोहब्बत की राह में चलते चलते,
अपनों से ही धोखा मिल गया।

Love and Family Sad Shayari
Love and Family Sad Shayari

दिल में नफ़रत नहीं, बस दर्द है,
कैसे जीयूँ अब तन्हा मैं?

जिस घर को मैंने सपनों से संवारा,
वहाँ प्यार की जगह बस तकरार मिला।

ख़ुद को खो दिया प्यार की तलाश में,
और पाया कि घर भी अजनबी निकला।

रिश्तों की ज़ंजीर में बंधे हैं ऐसे,
कि प्यार के लिए जगह ही न बचे जैसे।

अपनों के लिए सब कुछ लुटा दिया,
बदले में बस ग़म ही कमाया।

प्यार करने की ग़लती कर बैठे,
जब घर वालों ने ही पराया कर बैठे।

दिल के टुकड़े हुए हज़ार ऐसे,
कि अब प्यार पर भरोसा नहीं वैसे।

ये कैसा प्यार है जो दर्द देता है,
जब अपने ही अश्क़ों से नफ़रत करता है।

मोहब्बत को हमने निभाया शिद्दत से,
पर अपनों ने दूरियाँ बना ली हैं हैरत से।

प्यार की कीमत आज चुकानी पड़ी,
जब अपनों की नफ़रत सहनी पड़ी।

हर रिश्ते में उलझन सी है अब,
प्यार की जगह खाली सी है सब।

ख्वाहिशें मर गईं, उम्मीदें टूट गईं,
जब अपनों की मोहब्बत भी रूठ गई।

घर की दीवारों में सिमट गया है दर्द,
अपने ही अपनों से बेगाने हो गए हैं आज।

खामोशी बोलती है दिल की कहानी,
जब घर में अपनों से ही मिले वीरानी।

बचपन की यादें भी अब चुभती हैं,
रिश्तों को टूटते हुए जब देखती हैं।

उम्मीदों का बोझ इतना बढ़ गया,
अपना ही घर अब पराया सा कर गया।

दिल टूटा है पर आवाज़ नहीं आती,
अपनों की ठेस से रूह मर जाती।

वो घर अब घर नहीं लगता,
जहाँ अपनों का प्यार नहीं मिलता।

आँसू छुपाना भी एक हुनर है,
जब दर्द देने वाले अपने ही हों।

भीड़ में भी तन्हाई महसूस होती है,
अपनों के बीच भी अकेलापन होती है।

ज़िंदगी ने सिखाया सबक ये,
अपने ही देते हैं सबसे गहरे ज़ख्म ये।

मुस्कुराहट के पीछे का दर्द,
कौन समझे इस बेगाने घर का मर्द।

किस्मत ने खेल खेला ऐसा,
अपने ही घर में पराया बना दिया।

रिश्तों की डोर इतनी कमज़ोर क्यों है,
पल भर में टूट जाती ये क्यों है।

घर की खुशियाँ रूठ गई हैं,
जब अपनों की नज़रें बदल गई हैं।

कोई समझे ना दर्द-ए-दिल मेरा,
अपने ही घर में घूँट घूँट मरना मेरा।

हर रात एक नया ग़म देती है,
अपनों की बेरुख़ी आँखें नम करती है।

Relatives Sad Shayari

ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर, और शाम तन्हा,
परिवार का दर्द, खामोशी से सहना।

चेहरे पर हँसी, दिल में हज़ार गम,
अपनों ने दिए हैं जो, वो जख्म हैं नम।

घर तो है, पर सुकून कहीं नहीं,
अपने ही अब अपने रहे ही नहीं।

रिश्तों में उलझन, ज़ख्म गहरे हैं,
दिल के हर कोने में दर्द के पहरे हैं।

अकेलापन महसूस होता है भीड़ में,
अपनों से मिली चोट, जो दिल में है।

क्या कहूँ अब और, क्या बताऊँ किसी को,
जब अपने ही नहीं समझते दर्द मेरे दिल को।

ये कैसी ज़िदंगी है, ये कैसा सफर है,
जहाँ अपनों से ही मिलता सिर्फ डर है।

खामोश रहते हैं, कि कोई जान न ले,
कितना टूटा है दिल, ये पहचान न ले।

उम्मीदें बहुत थीं, पर सब टूट गईं,
अपने ही हाथों से खुशियाँ रूठ गईं।

हर सुबह एक नई उदासी लाती है,
परिवार से मिली जुदाई सताती है।

ये दूरियाँ अच्छी नहीं, ये फासले बुरे हैं,
अपनों के बिना हम कितने अधूरे हैं।

दर्द इतना है कि लफ्ज़ कम पड़ गए,
अपनों की बेरुखी से हम सहम गए।

बस अब थक गए हैं ये सब सहते-सहते,
काले बादलों में खो गए हैं अब रहते-रहते।

ये आँसू मेरे नहीं, ये परिवार का दर्द है,
जो छिपा के रखता है हर एक मर्द।

दिल चीखता है, पर आवाज़ नहीं आती,
जब घर की खुशियाँ यूँ ही खो जाती।

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