200+ New Tehzeeb Hafi Shayari in Hindi 2025

तेहज़ीब हाफ़ी का नाम आज की उर्दू और हिंदी शायरी में बेहद इज़्ज़त से लिया जाता है। उनकी शायरी दिल को छू लेने वाले अल्फ़ाज़, गहराई से भरे जज़्बात और सादगी में लिपटी मोहब्बत की तस्वीर पेश करती है। Tehzeeb Hafi Shayari न सिर्फ पढ़ने वाले को सोचने पर मजबूर करती है, बल्कि उसकी रूह को भी सुकून देती है। इस ब्लॉग में हमने उनके कुछ सबसे दिलकश और चर्चित शेरों को संजोया है, जो आपको मोहब्बत, तन्हाई और ज़िंदगी के हर पहलू से जोड़ते हैं। चलिए, उनके लफ़्ज़ों की दुनिया में खो जाते हैं।
Tehzeeb Hafi Shayari in Hindi
इसीलिए तो सबसे ज़्यादा भाती हो,
कितने सच्चे दिल से झूठी क़समें खाती हो..!!
उस लड़की से बस इतना रिश्ता है,
मिल जाए तो बात वगैरह करती है..!!
ज़ेहन से यादों के लश्कर जा चुके,
वो मेरी महफ़िल से उठ कर जा चुके,
मेरा दिल भी जैसे पाकिस्तान है,
सब हुकूमत करके बाहर जा चुके..!!
मैंने जो कुछ भी सोचा हुआ है,
मैं वो वक़्त आने पे कर जाऊँगा,
तुम मुझे ज़हर लगते हो,
और मैं किसी दिन तुम्हें पी के मर जाऊँगा..!!

कौन तुम्हारे पास से उठ कर घर जाता है,
तुम जिसको छू लेती हो वो मर जाता है..!!
रुक गया है वो या चल रहा है,
हमको सब कुछ पता चल रहा है,,
उसने शादी भी की है किसी से
और गाँव में क्या चल रहा है..!!
हम एक उम्र इसी गम में मुब्तला रहे थे,
वो सान्हे ही नहीं थे जो पेश आ रहे थे..!!
अब मज़ीद उससे ये रिश्ता नहीं रक्खा जाता,
जिससे इक शख़्स का पर्दा नहीं रक्खा जाता,
एक तो बस में नहीं तुझसे मोहब्बत ना करूँ,
और फिर हाथ भी हल्का नहीं रक्खा जाता..!!
पढ़ने जाता हूँ तो तस्मे नहीं बाँधे जाते,
घर पलटता हूँ तो बस्ता नहीं रक्खा जाता..!!
तारीकियों को आग लगे और दिया जले,
ये रात बैन करती रहे और दिया जले,
उस की ज़बाँ में इतना असर है कि निस्फ़ शब,
वो रौशनी की बात करे और दिया जले..!!
आपने मुझको डुबोया है किसी और जगह,
इतनी गहरायी कहाँ होती है दरियाओं में..!!
क्या ख़बर कौन था वो और मेरा क्या लगता था,
जिससे मिलकर मुझे हर शख़्स बुरा लगता था..!!
तुमने कैसे उसके जिस्म की खुशबू से इन्कार किया,
उस पर पानी फेंक के देखो कच्ची मिट्टी जैसा है..!!
Tehzeeb Hafi Shayari Hindi
और फिर एक दिन बैठे बैठे मुझे,
अपनी दुनिया बुरी लग गयी,
जिसको आबाद करते हुए,
मेरे मां-बाप की ज़िंदगी लग गयी..!!
मुझसे मत पूछो के उस शख़्स में क्या अच्छा है,
अच्छे अच्छों से मुझे मेरा बुरा अच्छा है,
किस तरह मुझ से मुहब्बत में कोई जीत गया,
ये ना कह देना के बिस्तर में बड़ा अच्छा है..!!
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गई तो,
हम ऐसे बुजदिल भी पहली सफ़ में खड़े मिलेंगे..!!
कोई समंदर, कोई नदी होती कोई दरिया होता,
हम जितने प्यासे थे हमारा एक गिलास से क्या होता,
ताने देने से और हम पे शक करने से बेहतर था,
गले लगा के तुमने हिजरत का दुख बाट लिया होता..!!

मेरे आँसू नही थम रहे कि वो मुझसे जुदा हो गया,
और तुम कह रहे हो कि छोड़ो अब ऐसा भी क्या हो गया..!!
उसके चाहने वालों का आज उसकी गली में धरना है,
यहीं पे रुक जाओ तो ठीक है आगे जाके मरना है..!!
तिलिस्म-ए-यार ये पहलू निकाल लेता है,
कि पत्थरों से भी खुशबू निकाल लेता है,
है बे-लिहाज़ कुछ ऐसा की आँख लगते ही,
वो सर के नीचे से बाजू निकाल लेता है..!!
शाख से पत्ता गिरे,बारिश रुके,बादल छटे,
मै ही तो सब गलत करता हूँ, अच्छा ठीक है..!!
मैं ज़िन्दगी में आज पहली बार घर नहीं गया,
मगर तमाम रात दिल से माँ का डर नहीं गया,
बस एक दुःख जो मेरे दिल से उम्र भर न जायेगा,
उसको किसी के साथ देख कर मैं मर नहीं गया..!!
गले मिलना ना मिलना तो तेरी मर्ज़ी है लेकिन,
तेरे चेहरे से लगता है तेरा दिल कर रहा है..!!
जहन पर जोर देने से भी याद नहीं आता की हम क्या देखते थे,
सिर्फ इतना पता है की हम आम लोगो से बिलकुल जुड़ा देखते थे,
तब हमे अपने पुरखो से विरसे में आई हुई बदुआ याद आयी,
जब कभी अपनी आँखों के आगे तुझे शहर जाता हुआ देखते थे..!!
साख से पत्ता गिरे, बारिश रुके बादल छटे,
मै ही तो सब गलत करता हूँ अच्छा ठीक है..!!
महीनों बाद दफ्तर आ रहे हैं,
हम एक सदमे से बहार आ रहे हैं,
समंदर कर चूका तस्लीम हमको,
ख़ज़ाने खुद ही ऊपर आ रहे हैं..!!
तुझे किस किस जगह पर अपने अंदर से निकालें,
हम इस तस्वीर में भी तूझसे मिल के आ रहे हैं..!!
कोई समंदर, कोई नदी होती कोई दरिया होता,
हम जितने प्यासे थे हमारा एक गिलास से क्या होता,
ताने देने से और हम पे शक करने से बेहतर था,
गले लगा के तुमने हिजरत का दुख बाट लिया होता..!!
ये किसने दी है मुझको हार जाने पर तसल्ली,
ये किसने हाथ मेरे हाथ पर रखा हुआ है..!!
अपना सबकुछ हार कर लौट आये हो ना मेरे पास,
मैं तुम्हें कहता भी रहता था की दुनियां तेज़ है,
आज उसके गाल चूमे हैं तो अंदाज़ा हुआ,
चाय अच्छी है मगर थोड़ा सा मीठा तेज़ है..!!
रूह किसी को सौंप आये हो तो ये जिस्म भी ले जाओ,
वैसे भी मैंने इस खाली बोतल का क्या करना है..!!
उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे,
पलट के आए तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे..!!
Tehzeeb Hafi Shayari Love
तुझे ये सड़कें मेरे तवस्सुत से जानती हैं,
तुझे हमेशा ये सब इशारे खुले मिलेंगे,
हमें बदन और नसीब दोनों सवारने हैं,
हम उसके माथे का प्यार लेके गले मिलेंगे..!!
जो मेरे साथ मोहब्बत में हुयी,
आदमी एक दफा सोचेगा,
रात इस डर में गुज़ारी हमने,
कोई देखेगा तो क्या सोचेगा..!!

ये मैंने कब कहा के मेरे हक़ में फैसला करे,
अगर वो मुझसे खुश नहीं है तो मुझे जुदा करे,
मैं उसके साथ जिस तरह गुज़ारता हूँ ज़िन्दगी,
उसे तो चाहिए के मेरा शुक्रिया अदा करे..!!
ज़िन्दगी भर फूल ही भिजवाओगे,
या किसी दिन खुद भी मिलने आओगे,
खुद को आईने में कम देखा करो,
एक दिन सूरजमुखी बन जाओगे..!!
मैं फूल हूँ तो तेरे बालो में क्यों नहीं हूँ,
तू तीर है तो मेरे कलेजे के पर हो,
एक आस्तीन चढ़ाने की आदत को छोड़ कर,
हाफी तुम आदमी तो बहुत शानदार हो..!!
ये किस तरह का ताल्लुख है आपका मेरे साथ,
मुझे ही छोड़ कर जाने का मशवरा मेरे साथ..!!
मुझसे मत पूछो के उस शख्स में क्या अच्छा है,
अच्छे अच्छों से मुझे मेरा बुरा अच्छा है,
किस तरह मुझसे मोहब्बत में कोई जीत गया,
ये ना कह देना के बिस्तर में बदल अच्छा है..!!
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तुम चाहते हो कि तुमसे बिछड़ के खुश रहूँ,
यानि हवा भी चलती रहे और दीया जले..!!
बाद में मुझ से ना कहना घर पलटना ठीक है,
वैसे सुनने में यही आया है रस्ता ठीक है..!!
उसके हाथों में जो खंजर है ज़्यादा तेज़ है,
और फिर बचपन से ही उसका निशाना तेज़ है,
जब कभी उस पार जाने का ख्याल आता मुझे,
कोई आहिस्ता से कहता था के दरिया तेज़ है..!!
ये किसने बाग़ से उस शख्स को बुला लिया है,
परिंदे उड़ गए पेड़ों ने मुँह बना लिया है,
उसे पता था मैं छूने में वक़्त लेता हूँ,
सो उसने वस्ल का दौरनियाँ बढ़ा लिया है..!!
कैसे उसने ये सबकुछ मुझसे छुपकर बदला,
चेहरा बदला, रस्ता बदला, बाद में घर बदला,
मैं उसके बारे में ये कहता था लोगों से,
मेरा नाम बदल देना वो शख्स अगर बदला..!!
एक इधर मैं हूँ के घर वालों से नाराज़गी है,
एक उधर तू है के गैरों का कहाँ मानता है,
मैं तुझे अपना समझकर ही तो कुछ कहता हूँ,
यार तू भी मेरी बातों का बुरा मानता है..!!
अब ज़रूरी तो नहीं है के वो सकबुछ कह दे,
दिल में जो कुछ भी हो आँखों से नज़र आता है,
मैं उसे सिर्फ ये कहता हूँ के घर जाना है,
और वो मारने मरने पे उतर आता है..!!
तू भी कब मेरे मुताबिक मुझे दुःख दे पाया,
किसने भरना था ये पैमाना अगर खाली था,
एक दुःख ये के तू मिलने नहीं आया मुझे,
एक दुःख ये है के उस दिन मेरा घर खाली था..!!
ये किस्से इश्क़ का कानून पढ़ कर आ गए हो,
मोहब्बत और मोहब्बत में बदन पगला गए हो,
तुम्हारा मुस्कुराना जान ले लेता था मेरी,
बिछड़कर खुश तो हो लेकिन बहुत मुरझा गए हो..!!
पहले उसकी खुशबु मैंने खुद पर तारी की,
फिर मैंने उस फूल से मिलने की तैयारी की,
इतना दुःख था मुझको तेरे लौट के जाने का,
मैंने घर के दरवाज़ों से भी मुँह मारी की..!!
बारिश मेरे रब की ऐसी नेमत है,
रोने में आसानी पैदा करती है..!!
ये दुःख अलग है के उससे मैं दूर हो रहा हूँ,
ये गम जुदा है वो खुद मुझे दूर कर रहा है,
तेरे बिछड़ने पे मैं लिख रहा हूँ ताज़ा ग़ज़लें,
ये तेरा गम है जो मुझको मशहूर कर रहा है..!!
मैं उससे ये तो नहीं कह रहा जुदा ना करे,
मगर वो कर नहीं सकता तो फिर कहा ना करे,
वो जैसे छोड़ गया था मुझे उसे भी कभी,
खुदा करे के कोई छोड़ दे खुदा ना करे..!!
Tehzeeb Hafi Poetry
मुझे आज़ाद कर दो एक दिन सब सच बता कर,
तुम्हारे और उसके दरमियाँ क्या चल रहा है..!!
मेरे आंसू नहीं थम रहे के वो मुझसे जुदा हो गया,
और तुम कह रहे हो के छोड़ो अब ऐसा भी क्या हो गया,
महकदों में मेरी लाइनें पढ़ते फिरते हैं लोग,
मैंने जो कुछ भी पी कर कहा फलसफा हो गया..!!
मल्लाहों का ध्यान बटा कर दरिया चोरी कर लेना है,
क़तरा क़तरा करके मैंने सारा चोरी कर लेना है,
तुम उसको मजबूर किये रखना बातें करते रहने पर,
इतनी देर में मैंने उसका लहजा चोरी कर लेना है..!!

हाँ ये सच के मोहब्बत नहीं की,
दोस्त बस मेरी तबियत नहीं की,
इसलिए गाँव में सैलाब आया,
हमने दरियाओं की इज़्ज़त नहीं की..!!
सबकी कहानी एक तरफ है मेरा किस्सा एक तरफ,
एक तरफ सैराब हैं सारे और मैं प्यासा एक तरफ,
मैंने अब तक जितने भी लोगों में खुद को बांटा है,
बचपन से रखता आया हूँ तेरा हिस्सा एक तरफ..!!
उस लड़की से बस अब इतना रिश्ता है,
मिल जाए तो बात वगैरा करती है..!!
एक और शख़्स छोड़कर चला गया तो क्या हुआ,
हमारे साथ कौन सा ये पहली मर्तबा हुआ..!!
मुझसे कल वक़्त पूछा किसी ने,
कह दिया के बुरा चल रहा है,
उसने शादी भी की है किसी से,
और गाँव में क्या चल रहा है..!!
लबों से लफ्ज़ झड़े आँख से नमी निकले,
किसी तरह तो मेरे दिल से बेदिली निकले,
मैं चाहता हूँ परिंदे रिहा किये जाए,
मैं चाहता हूँ तेरे होंठ से हंसी निकले..!!
उसी ने दुश्मनों को बाख़बर रखा हुआ है,
ये तूने जिसको अपना कहके घर रखा हुआ है,
मेरे कांधे पे सर रहने नहीं देगा किसी दिन,
यही जिसने मेरे कांधे पे सर रखा हुआ है..!!
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने,
इस पे क्या लड़ना फलाँ मेरी जगह बैठ गया,
इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ,
उसने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया..!!
तारिखियों को आग लगे और दिया जले,
ये रात बेन करती रहे और दिया जले..!!
तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया,
इतनी आवाज़ें तुझे दी की गला बैठ गया,
यूँ नहीं है के फकत मैं ही उसे चाहता हूँ,
जो भी उस पेड़ की छाओं में गया बैठा गया..!!
सुना है अब वो आँखें और किसी को रो रही है,
मेरे चश्मों से कोई और पानी भर रहा है,
बहुत मजबूर होकर मैं तेरी आँखों से निकला,
ख़ुशी से कौन अपने मुल्क़ से बाहर रहा है..!!
अब इन जले हुए जिस्मों पे खुद ही साया करो,
तुम्हें कहा था बता कर करीब आया करो,
मैं उसके बाद महीनों उदास रहता हूँ,
मज़ाक में भी मुझे हाथ मत लगाया करो..!!
उसके चाहने वालों का आज उसकी गली में धरना है,
यहीं पे रुक जाओ तो ठीक है आगे जाके मरना है,
रूह किसी को सौंप आये हो तो ये जिस्म भी ले जाओ,
वैसे भी मैंने इस खाली बोतल का क्या करना है..!!
थोड़ा लिखा और ज़्यादा छोड़ दिया,
आने वालों के लिए रस्ता छोड़ दिया,
तुम क्या जानो उस दरिया पर क्या गुज़री,
तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया..!!
लड़कियां इश्क़ में कितनी पागल होती हैं,
फ़ोन बजा और चुल्हा जलता छोड़ दिया..!!
तारिखियों को आग लगे और दिया जले,
ये रात बेन करती रहे और दिया जले,
तुम चाहते हो तुमसे बिछड़ कर भी खुश रहूं,
यानी हवा भी चलती रहे और दिया जले..!!
Tehzeeb Hafi Shayari 2 Line
आपने मुझको डुबोया है किसी और जगह,
इतनी गहरायी कहाँ होती है दरियाओं में..!!
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
तुझ को पाने में मसअला ये है
तुझ को खोने के वसवसे रहेंगे
अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँ
मैं किनारा भी हूँ भँवर भी हूँ
ये एक बात समझने में रात हो गई है
मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है
दास्ताँ हूँ मैं इक तवील मगर
तू जो सुन ले तो मुख़्तसर भी हूँ

वो जिस की छाँव में पच्चीस साल गुज़रे हैं
वो पेड़ मुझ से कोई बात क्यूँ नहीं करता
बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता
हमारे गाँव में बरसात क्यूँ नहीं करता
इक तिरा हिज्र दाइमी है मुझे
वर्ना हर चीज़ आरज़ी है मुझे
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इस लिए रौशनी में ठंडक है
कुछ चराग़ों को नम किया गया है
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मैं इधर भी हूँ और उधर भी हूँ
मेरी नक़लें उतारने लगा है
आईने का बताओ क्या किया जाए
मुझ पे कितने सानहे गुज़रे पर इन आँखों को क्या
मेरा दुख ये है कि मेरा हम-सफ़र रोता न था
कोई कमरे में आग तापता हो
कोई बारिश में भीगता रह जाए
क्या मुझ से भी अज़ीज़ है तुम को दिए की लौ
फिर तो मेरा मज़ार बने और दिया जले
मिरे हाथों से लग कर फूल मिट्टी हो रहे हैं
मिरी आँखों से दरिया देखना सहरा लगेगा