220+ Shaam Shayari in Hindi | खूबसूरत शाम शायरी 2025
शाम का वक्त हमेशा एक खास एहसास लेकर आता है। दिनभर की थकान के बाद ढलता सूरज और ठंडी हवा मन को सुकून देती है। यही वो पल होते हैं जब इंसान अपने ख्यालों में खो जाता है और दिल की बातें और गहरी महसूस करता है। Shaam Shayari In Hindi इन्हीं खूबसूरत लम्हों और एहसासों को अल्फ़ाज़ों में ढालकर पेश करती है। इस लेख में आप पढ़ेंगे ऐसी शायरियां जो शाम के जादुई रंगों को और भी खास बना देंगी और आपके दिल को शांति व ताजगी का एहसास दिलाएंगी।
Shaam Shayari in Hindi
तेरे आने की उम्मीद और भी तड़पाती है
मेरी खिड़की पे जब शाम उतर आती है..!!!
इश्क के नशे से अच्छा मुझे
शराब का नशा लगता है
यह शाम का नजारा मेरे
महबूब बड़ा ही प्यारा लगता है..!!
तेरे इश्क की शाम अब ढलने लगी है
इसीलिए तु जानेमन मुझे अच्छी लगने लगी है..!!!

तुम ना लगा पाओगे अंदाज़ा मेरी तबाही का
तुमने देखा ही कहां है मुझे शाम होने के बाद..!!!
शाम तक सुबह की नज़रों से उतर जाते हैं
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते है..!!!
सूरज छिप जाए तो शाम होती है इसलिए
मेरी जिंदगी तेरे इंतजार में तन्हा होती है.!!
कभी मिलते है एक रोज
अकेले शाम की तरह
मैं चाहूंगी तुम्हे रोज उस
चमकते चांद की तरह.!!
सुनो अबकी बार बनारस
घुमा दो अपने साथ पिया
शाम को गंगा आरती
सुबह को अस्सी घाट पिया..!!
ये शाम का तस्व्वुर ये मयखाने का बया
तुम खुदा न होते तो हम ख़ुद को खुदा समझते!
सुबह होती नही शाम ढलती नही
न ज़ाने क्या खूबी है आप में आप
को याद किए बिना खुशी मिलती नही!
शाम खाली है जाम खाली है ज़िन्दगी
यूँ गुज़रने वाली है सब लूट लिया तुमने
जानेजाँ मेरा मैने तन्हाई मगर बचा ली है!
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे
हम और आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है!
अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहां
शाम आ गयी है लौट के घर जाएं हम तो क्या !
तुम मेरी जिंदगी मे ऐसे शामिल हो
जैसे मंदिर के दरवाजे पर बंधे हुए
मन्नत के धागे !
सुबह होती नही शाम ढलती नही
न ज़ाने क्या खूबी है आप मे के
आप को याद किए बिना खुशी मिलती नही !
अब तो चुप-चाप शाम आती है
पहले चिड़ियों के शोर होते थे !
शायर कहकर बदनाम ना कर
मैं तो रोज़ शाम को दिनभर
का हिसाब लिखता हूँ !
तुम्हारी जुल्फ के साये में शाम कर लूँगा
सफ़र इस उम्र का पल में तमाम कर लूँगा !
कभी तो आसमां से चांद उतरे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की एक ख़ूबसूरत शाम हो जाए!
फिर नहीं लौटा वक़्त
वो शाम और मेरा चैन !!
उसने पूछा कि कौनसा तोहफा है मनपसंद
मैंने कहा वो शाम जो अब तक उधार है !
नई सुबह पर नज़र पहुचे मगर आह ये भी
डर है ये सहर भी रफ़्ता-रफ़्ता कहीं शाम
तक ना पहुंचे !
उसने कहा हम दिन और रात जैसे है
कभी एक नही हो सकते
मेने कहा आओ शाम को मिलते है!
है शाम को मिलने का वादा किसी का
उस सूरज से बोलो जल्दी डूब जाए।।
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगा
मैं एक शाम चुरा लूं अगर बुरा ना लगे !
उफ़्फ़! कितनी बार कहा हैं
शाम ढले याद आया ना करो
शाम की चाय ज़्यादा मिट्ठी हो जाती हैं!
दर्द की शाम है आँखों में नमी है
हर सांस कह रही हैए फिर तेरी कमी है!
बस एक शाम का हर शाम इंतज़ार रहा
मगर वो शाम किसी शाम भी नहीं आयी !
जिंदगी की हर सुबह कुछ शर्ते ले कर
आती है जिंदगी की हर शाम कुछ तजुर्बे दे
कर जाती है !
कभी किसी का जो होता था इंतज़ार
हमें बड़ा ही शाम-ओ-सहर का हिसाब रखते थे !
होती है शाम आंख से आंसू रवां हुए
ये वक़्त कैदियों की रिहायी का वक़्त है !
Suhani Shaam Shayari
रात सारी तड़पते रहेंगे हम अब
आज फिर ख़त तेरे पढ़ लिए शाम को !
ये उदास शाम और तेरी ज़ालिम याद
खुदा खैर करे अभी तो रात बाकि है !
शाम भी थी धुआं-धुआं हुस्न भी था
उदास-उदास दिल को कई कहानियां
याद सी आकर रह गयीं !

शाम से आंख में नमीं सी है
आज फिर आपकी कमी सी है !
यूँ तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती थी
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया।
शाम ढले ये सोच के बैठे हम अपनी
तस्वीर के पास सारी ग़ज़लें बैठी होंगी
अपनी अपनी मीर के पास !
दिन गुज़र जाता है तपते हुए सूरज की
तरह शाम आती है तो ढल जाने को जी चाहता है !
आख़िरी बार मैं कब उस से मिला याद नहीं
बस यही याद है इक शाम बहुत भारी थी !
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी
इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं
तुम परिंदों से ज़ियादा तो नहीं हो आज़ाद
शाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो
Shaam Shayari 2 Line
अब उदास फिरते हो सर्दियों की शामों में
इस तरह तो होता है इस तरह के कामों में
वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गया
ये चाँद किस को ढूँडने निकला है शाम से
बस एक शाम का हर शाम इंतिज़ार रहा
मगर वो शाम किसी शाम भी नहीं आई

कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए
न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर
कई साल ब’अद मिले हैं हम तेरे नाम आज की शाम है
अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या
मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ
दोस्तों से मुलाक़ात की शाम है
ये सज़ा काट कर अपने घर जाऊँगा
याद है अब तक तुझ से बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे
तू ख़ामोश खड़ा था लेकिन बातें करता था काजल
नई सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है
ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे
शाम होते ही खुली सड़कों की याद आती है
सोचता रोज़ हूँ मैं घर से नहीं निकलूँगा
अब तो चुप-चाप शाम आती है
पहले चिड़ियों के शोर होते थे
घर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्यूँ
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है
कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते
किसी की आँख में रह कर सँवर गए होते
शाम से उन के तसव्वुर का नशा था इतना
नींद आई है तो आँखों ने बुरा माना है
बैठा हुआ हूँ लग के दरीचे से महव-ए-यास
ये शाम आज मेरे बराबर उदास है
शाम से पहले तिरी शाम न होने दूँगा
ज़िंदगी मैं तुझे नाकाम न होने दूँगा
कौन सी बात नई ऐ दिल-ए-नाकाम हुई
शाम से सुब्ह हुई सुब्ह से फिर शाम हुई
You can also read Sad Shayari 2 Line
ढलेगी शाम जहाँ कुछ नज़र न आएगा
फिर इस के ब’अद बहुत याद घर की आएगी
शामें किसी को माँगती हैं आज भी ‘फ़िराक़’
गो ज़िंदगी में यूँ मुझे कोई कमी नहीं
भीगी हुई इक शाम की दहलीज़ पे बैठे
हम दिल के सुलगने का सबब सोच रहे हैं
शजर ने पूछा कि तुझ में ये किस की ख़ुशबू है
हवा-ए-शाम-ए-अलम ने कहा उदासी की
हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते
अब ठहर जाएँ कहीं शाम के ढलते ढलते
अस्र के वक़्त मेरे पास न बैठ
मुझ पे इक साँवली का साया है
हम दुनिया से जब तंग आया करते हैं
अपने साथ इक शाम मनाया करते हैं
शाम ढले ये सोच के बैठे हम अपनी तस्वीर के पास
सारी ग़ज़लें बैठी होंगी अपने अपने मीर के पास
शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद
कूचा-ए-जाँ में सदा करती है
गुज़र गई है मगर रोज़ याद आती है
वो एक शाम जिसे भूलने की हसरत है
शाम को आओगे तुम अच्छा अभी होती है शाम
गेसुओं को खोल दो सूरज छुपाने के लिए
उस की आँखों में उतर जाने को जी चाहता है
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है
होती है शाम आँख से आँसू रवाँ हुए
ये वक़्त क़ैदियों की रिहाई का वक़्त है
दिन किसी तरह से कट जाएगा सड़कों पे ‘शफ़क़’
शाम फिर आएगी हम शाम से घबराएँगे
जब शाम उतरती है क्या दिल पे गुज़रती है
साहिल ने बहुत पूछा ख़ामोश रहा पानी
होते ही शाम जलने लगा याद का अलाव
आँसू सुनाने दुख की कहानी निकल पड़े
साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले
हम को जाना है कहीं शाम से पहले पहले
हम भी इक शाम बहुत उलझे हुए थे ख़ुद में
एक शाम उस को भी हालात ने मोहलत नहीं दी
कब धूप चली शाम ढली किस को ख़बर है
इक उम्र से मैं अपने ही साए में खड़ा हूँ
शाम ही से बरस रही है रात
रंग अपने सँभाल कर रखना
साए ढलने चराग़ जलने लगे
लोग अपने घरों को चलने लगे
शाम होती है तो लगता है कोई रूठ गया
और शब उस को मनाने में गुज़र जाती है
अब याद कभी आए तो आईने से पूछो
‘महबूब-ख़िज़ाँ’ शाम को घर क्यूँ नहीं जाते
आख़िरी बार मैं कब उस से मिला याद नहीं
बस यही याद है इक शाम बहुत भारी थी
Ek Shaam Dosto ke Naam Shayari
शामें किसी को मांगती हैं आज भी
फ़िराक गो ज़िंदग़ी में यूं मुझे कोई कमी नहीं !
अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या !
वही ख़्वाब-ख़्वाब हैं रास्ते वही इंतज़ार सी शाम है
ये सफर है मेरे इश्क़ का एन दयार है न क़याम है !
यूं तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया !
जिन्दगी को खुश रहकर जिओ
रोज शाम सिर्फ सूरज ही नहीं ढलता
अनमोल जिन्दगी भी ढलती है!
शाम से आंख में नमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है !
अब उदास फिरते हो सर्दियों की शामों में
इस तरह तो होता है इस तरह के कामों में !
ढलती शाम सी खूबसूरत हो तुम
मगर शाम की ही तरह बहुत दूर हो तुम !
Aaj Ki Shaam Shayari
गुज़र गई है मगर रोज़ याद आती है
वो एक शाम जिसे भूलने की हसरत है !
भीगी हुई इक शाम की दहलीज़ पे बैठे
हम दिल के सुलगने का सबब सोच रहे हैं !

ढलते दिन सा मैं गुजरती रात सी तुम
अब थम भी जाओ एक मुलाकात को !
गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं!
घर की वहशत से लरज़ता हूँ
मगर जाने क्यूँ शाम होती है तो घर
जाने को जी चाहता है !
शाम का वक्त हो और शराब ना हो
इंसान का वक़्त इतना भी खराब ना हो!
बस एक शाम का हर शाम इंतिज़ार रहा
मगर वो शाम किसी शाम भी नहीं आई !
कभी-कभी शाम ऐसे ढलती है जैसे घूंघट
उतर रहा हो तुम्हारे सीने से उठता धुआँ
हमारे दिल से गुज़र रहा हो !
होते ही शाम जलने लगा याद का अलाव
आँसू सुनाने दुख की कहानी निकल पड़े !
Romantic Shaam Shayari
तेरे आने की उम्मीद और भी तड़पाती है
मेरी खिड़की पे जब शाम उतर आती है !
हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते-चलते
अब ठहर जाएँ कहीं शाम के ढलते-ढलते!

रात के इंतज़ार में सुबह से मुलाकात
हो गई शायद कल की वो शाम ढलना भुल गई !
तुम ना लगा पाओगे अंदाज़ा मेरी तबाही
का तुमने देखा ही कहां है मुझे शाम होने के बाद।
आँखों की चमक पलकों की शान हो तुम
चेहरे की हँसी लबों की मुस्कान हो तुम
धड़कता है दिल बस तुम्हारी आरज़ू में
फिर कैसे ना कहूँ कि मेरी जान हो तुम।
कहाँ की शाम और कैसी सहर जब तुम
नही होते तड़पता है ये दिल आठो पहर
जब तुम नही होते !
होती है शाम आंख से आंसू रवां हुए
ये वक़्त कैदियों की रिहायी का वक़्त है।
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम
और आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती हैं।

