80+ Maa Shayari in Hindi | माँ के लिए कुछ लाइन

मां का प्यार इस दुनिया का सबसे अनमोल तोहफा है। मां न सिर्फ हमें जन्म देती है, बल्कि हर मुश्किल घड़ी में हमारा सहारा बनती है। उनकी ममता, त्याग और बिना शर्त के प्यार को शब्दों में बयां करना आसान नहीं होता। अगर आप अपनी मां के प्रति अपने प्यार और सम्मान को खूबसूरत अंदाज में पेश करना चाहते हैं, तो यहां आपको Maa Shayari in Hindi का सबसे बेहतरीन संग्रह मिलेगा। इन दिल को छू लेने वाली शायरियों के जरिए अपनी मां के प्रति अपने जज्बातों को खूबसूरत शब्दों में बयां करें और उन्हें खास महसूस कराएं।
Heart Touching Maa Shayari
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
एक मुद्दत से मिरी माँ नहीं सोई 'ताबिश'
मैं ने इक बार कहा था मुझे डर लगता है
अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है

दुआ को हात उठाते हुए लरज़ता हूँ
कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई
माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत
है रोक-टोक उन की हक़ में तुम्हारे ने'मत
जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है
घर लौट के रोएँगे माँ बाप अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में
Maa Shayari in Hindi
माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया है
आज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है
तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ऐ फ़लक
मुझ को अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी
मुनव्वर माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती

बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सब से कह रही है कि बेटा मज़े में है
कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में
ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है
मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
मुद्दतों ब'अद हमें नींद सुहानी आई
माँ की आग़ोश में कल मौत की आग़ोश में आज
हम को दुनिया में ये दो वक़्त सुहाने से मिले
Maa Ke Liye Shayari in Hindi
ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सज्दे में रहती है
किताबों से निकल कर तितलियाँ ग़ज़लें सुनाती हैं
टिफ़िन रखती है मेरी माँ तो बस्ता मुस्कुराता है
घर की इस बार मुकम्मल मैं तलाशी लूँगा
ग़म छुपा कर मिरे माँ बाप कहाँ रखते थे
शहर में आ कर पढ़ने वाले भूल गए
किस की माँ ने कितना ज़ेवर बेचा था
ऐ रात मुझे माँ की तरह गोद में ले ले
दिन भर की मशक़्क़त से बदन टूट रहा है

मैं ने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दें
सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़-ए-माँ रहने दिया
सब ने माना मरने वाला दहशत-गर्द और क़ातिल था
माँ ने फिर भी क़ब्र पे उस की राज-दुलारा लिक्खा था
जब तक माथा चूम के रुख़्सत करने वाली ज़िंदा थी
दरवाज़े के बाहर तक भी मुँह में लुक़्मा होता था
दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है
दूर रहती हैं सदा उन से बलाएँ साहिल
अपने माँ बाप की जो रोज़ दुआ लेते हैं
बाप ज़ीना है जो ले जाता है ऊँचाई तक
माँ दुआ है जो सदा साया-फ़िगन रहती है
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Maa Par Shayari
बच्चे फ़रेब खा के चटाई पे सो गए
इक माँ उबालती रही पथर तमाम रात
आज फिर माँ मुझे मारेगी बहुत रोने पर
आज फिर गाँव में आया है खिलौने वाला
शहर के रस्ते हों चाहे गाँव की पगडंडियाँ
माँ की उँगली थाम कर चलना बहुत अच्छा लगा
जब चली ठंडी हवा बच्चा ठिठुर कर रह गया
माँ ने अपने ला'ल की तख़्ती जला दी रात को
माँ ने लिखा है ख़त में जहाँ जाओ ख़ुश रहो
मुझ को भले न याद करो घर न भूलना
एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए
एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे
इस लिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर
मेरी शह-रग पे मिरी माँ की दुआ रक्खी थी
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है
रौशनी भी नहीं हवा भी नहीं
माँ का नेमुल-बदल ख़ुदा भी नहीं
माँ मुझे देख के नाराज़ न हो जाए कहीं
सर पे आँचल नहीं होता है तो डर होता है
शायद यूँही सिमट सकें घर की ज़रूरतें
'तनवीर' माँ के हाथ में अपनी कमाई दे
माँ ख़्वाब में आ कर ये बता जाती है हर रोज़
बोसीदा सी ओढ़ी हुई इस शाल में हम हैं

सामने माँ के जो होता हूँ तो अल्लाह अल्लाह
मुझ को महसूस ये होता है कि बच्चा हूँ अभी
भूके बच्चों की तसल्ली के लिए
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक
बोसे बीवी के हँसी बच्चों की आँखें माँ की
क़ैद-ख़ाने में गिरफ़्तार समझिए हम को
घर से निकले हुए बेटों का मुक़द्दर मालूम
माँ के क़दमों में भी जन्नत नहीं मिलने वाली
अब इक रूमाल मेरे साथ का है
जो मेरी वालिदा के हाथ का है
शाम ढले इक वीरानी सी साथ मिरे घर जाती है
मुझ से पूछो उस की हालत जिस की माँ मर जाती है
मैं ने माँ का लिबास जब पहना
मुझ को तितली ने अपने रंग दिए
जिस ने इक उम्र दी है बच्चों को
उस के हिस्से में एक दिन आया
वो लम्हा जब मिरे बच्चे ने माँ पुकारा मुझे
मैं एक शाख़ से कितना घना दरख़्त हुई
किस शफ़क़त में गुँधे हुए मौला माँ बाप दिए
कैसी प्यारी रूहों को मेरी औलाद किया
हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह
मैं ओझल हो गई माँ की नज़र से
गली में जब कोई बारात आई
बूढ़ी माँ का शायद लौट आया बचपन
गुड़ियों का अम्बार लगा कर बैठ गई
ताक़ पर जुज़दान में लिपटी दुआएँ रह गईं
चल दिए बेटे सफ़र पर घर में माएँ रह गईं
मैं इस से क़ीमती शय कोई खो नहीं सकता
'अदील' माँ की जगह कोई हो नहीं सकता
सुरूर-ए-जाँ-फ़ज़ा देती है आग़ोश-ए-वतन सब को
कि जैसे भी हों बच्चे माँ को प्यारे एक जैसे हैं
कहो क्या मेहरबाँ ना-मेहरबाँ तक़दीर होती है
कहा माँ की दुआओं में बड़ी तासीर होती है
मैं अपनी माँ के वसीले से ज़िंदा-तर ठहरूँ
कि वो लहू मिरे सब्र-ओ-रज़ा में रौशन है
माएँ दरवाज़ों पर हैं
बारिश होने वाली है
शर्म आई है मुझे अपने क़द-ओ-क़ामत पर
माँ के जब होंठ न पहोंचे मिरी पेशानी तक
Mummy Pe Shayari | माँ के लिए कुछ लाइन
ऐ अंधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
लबों पे उस के कभी बद-दु'आ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझ से ख़फ़ा नहीं होती
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
मैं ने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
बहन का प्यार माँ की मामता दो चीख़ती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिन को मैं अक्सर याद करता था
हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए
माँ हम अपने साथ बस तेरी दु'आ ले जाएँगे
'मुनव्वर' माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती

आँखों से माँगने लगे पानी वुज़ू का हम
काग़ज़ पे जब भी देख लिया माँ लिखा हुआ
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
दु'आएँ माँ की पहुँचाने को मीलों-मील जाती हैं
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है
मुसीबत के दिनों में माँ हमेशा साथ रहती है
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है
मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंटों पर लरज़ती है
किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है
जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आख़िरी ज़ेवर बना रहा
यहीं रहूँगा कहीं 'उम्र भर न जाऊँगा
ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा
ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे
माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे
कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी
मुझे कढ़े हुए तकिए की क्या ज़रूरत है
किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है
बुज़ुर्गों का मिरे दिल से अभी तक डर नहीं जाता
कि जब तक जागती रहती है माँ मैं घर नहीं जाता
बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सब से कह रही है कि बेटा मज़े में है
नेकियाँ गिनने की नौबत ही नहीं आएगी
मैं ने जो माँ पे लिखा है वही काफ़ी होगा
मिरे चेहरे पे ममता की फ़रावानी चमकती है
मैं बूढ़ा हो रहा हूँ फिर भी पेशानी चमकती है
दिया है माँ ने मुझे दूध भी वुज़ू कर के
महाज़-ए-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा
जब भी देखा मिरे किरदार पे धब्बा कोई
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई