120+ Allah Shayari in Hindi 2025

Allah Shayari in Hindi

अल्लाह का नाम लेने से दिल को जो सुकून मिलता है, वह किसी और चीज़ से नहीं मिल सकता। इंसान की दुआ, उसकी उम्मीद और उसका ईमान अल्लाह से जुड़कर और भी मज़बूत हो जाते हैं। Allah Shayari In Hindi इन्हीं रूहानी एहसासों और इबादत की खूबसूरती को अल्फ़ाज़ों में ढालती है। इस लेख में आप पढ़ेंगे ऐसी शायरियां जो अल्लाह की रहमत, मोहब्बत और रहनुमाई को बयान करती हैं। ये शायरियां आपके दिल को गहराई से छू लेंगी और ईमान को और मजबूत बनाएंगी।

Allah Shayari in Hindi

मुक़द्दर अल्लाह के हाथों में है
दुआ करो कि वो बेहतर लिखे..!!!

तेरी रहमतों का क्या हिसाब दूँ मैं
ऐ अल्लाह हर साँस तेरा करम है..!!!

अल्लाह की इनायतों से ही मेरा जीवन खुशहाल है
इसी से चलता इंसानियत का व्यवहार है..!!!

Allah Shayari
Allah Shayari

अल्लाह का नाम जपा है दिल से
हर दर्द और ग़म को किया कम..!!!

जब भी मुश्किलें आई राहों में
उन्हें सुलझाया है उसने अपने दम..!!!

कितने अजीब है आजकल के जमाने के लोग
इंसानों को छोड़कर मस्जिद में अल्लाह को ढूंढते हैं..!!!

अल्लाह से सच्चा प्यार करो
कभी भी उम्मीद ना खो दो
वो हर दर्द में तुम्हारा साथी है
बस उसे याद करते रहो..!!!

खुदा का बंदा हूं मैं
इंसानियत के लिए जीता हूं
और अपनी किस्मत से लड़ता हूं..!

पग पग पर मंदिर मस्जिद और गुरुद्वारे है
फिर भी भक्ति भाव से मैंने
सिर्फ खुदा की रहमत को पाया है.!!

ऊपर वाले की रहमत
से ही मैंने खुद को जाना है
राम हो या रहीम
मैंने दोनो को माना है.!!

गीता पढ़ो चाहे बाइबल
पढ़ो या पढ़ो कुरान
अच्छे कर्म ही बनाते है
इंसान को महान..!

हर मुश्किल समस्या
का हल निकल जाता है
जब इंसान के लिए
खुदा का फरमान आता है..!

वह चमक ना चांद
में है ना तारों में है
जो चमक अल्लाह
की नजरो में है..!

आपसे हम बेइंतहा प्यार करते है
आपकी खुशी के लिए
अल्लाह से दुआ करते है..!

दुआओं में इंसानियत
छुपी होती है इसी में रब
की रहमत छुपी होती है..!

ए खुदा मेरी दुआओं
को कुबूल करना
अपनी रहमत हम
सभी पर बरकरार रखना..!

जब जब मैं टूटा हूं तब
तूने ही मुझे संभाला है
तेरे बिना इस दुनिया
में कौन हमारा है..!

हे खुदा अपनी रहमत
इंसानों पर बनाए रखना
कठिन राहों में भी दिल में
उम्मीद की लौ जलाए रखना..!

ना मंदिर में मिलेगा
ना मस्जिद में मिलेगा
अल्लाह सिर्फ इंसान
के दिल में मिलेगा..!

तू ही गुरु है तू ही नानक है
तू ही खुदा तू ही रहमत है
झुक जाए जो तेरे आगे
तू उसी से सहमत है..!

जहां प्रेम है वही इंसानियत है
जहां इंसानियत है वही पर खुदा है..!

Allah Shayari Hindi

अंधकार से प्रकाश की ओर
जाने का सफर है हे खुदा यह
तेरी रहमत का ही यह असर है..!

हे खुदा हाथों में लकीर हमारी है
लेकिन किस्मत में तकदीर तुम्हारी है..!

दिल से की गई दुआएं
रब हमेशा पूरी करते है
और इंसान की जिंदगी
को खुशियों से भर देते है..!

नेकी की राहों में चलता जा रहा हूं
गमों को पीछे छोड़ता जा रहा हूं ..!

Allah Shayari Hindi
Allah Shayari Hindi

जैसे हवाएं मौसम
का रुख बदल देती है
वैसे ही दुआएं इंसान
की जिंदगी बदल देती है..!

जिन्हें अल्लाह का
सहारा मिल जाता है
उन्हें कश्ती में भी
किनारा मिल जाता है..!

किसी के चेहरे पर खुशी लाना
भी नेकी करने के समान है
यही कर्म इंसानियत और
समाज के लिए महान है..!

अपनी जिंदगी को
एक नई शुरुआत दो
इस रमजान पर सबको
खुशियों की सौगात दो..!

नियत साफ और
खुद पर विश्वास रखो
इंसानियत के लिए
अपना दिल साफ रखो..!

अपने आप को खुदा
की भक्ति में लगाओ
अपनी जिंदगी में ज्ञान
का दीप जलाओ..!

इंसान को जिंदगी में
हर चीज किस्मत से नही
मिलती कुछ चीजे अल्लाह
की रहमत से मिलती है..!

नमाज पढ़ेंगे तो गुनाहों से दूर रहेंगे
नेकी करेंगे तो दवाओ से दूर रहेंगे..!!

खुदा के सजदे में जब
मै सिर को झुकाती हूं
मै अपने सारे दुख
दर्द को भूल जाती हूं..!

हे खुदा मेरी खाली झोली
में तुम दुआ के अल्फाज
डाल दो मेरे अपनों के
लिए खुशी की सौगात दो..!

Allah Par Shayari

वो जिंदगी ही क्या जिसमे तुम ना हो
और वो बंदगी ही क्या जिसमें
अल्लाह की रहमत ना हो..!

यह खुशकिस्मती है हमारी
हम उस मुल्क के वासी है
जहां रब की रहमत
दुआओं में आती है..!

देखो आसमान में
चांद निकल आया है
रमजान का त्यौहार
खुशियां लाया है.

Allah Par Shayari
Allah Par Shayari

शब्दों को अब मैं
गहराई से समझने लगा
हूं टूटे हुए ख्वाबों को
दिल से जुड़ने लगा हूं..

किसी सच्चे इंसान की
दुआएं मिल जाए तो काफी
है दवाई तो मेडिकल
स्टोर पर भी मिलती है..

कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं
नाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता है

ऐ सनम जिस ने तुझे चाँद सी सूरत दी है
उसी अल्लाह ने मुझ को भी मोहब्बत दी है

आशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिद
बंदगी से ख़ुदा नहीं मिलता

सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
जिस को देखा ही नहीं उस को ख़ुदा कहते हैं

इतना ख़ाली था अंदरूँ मेरा
कुछ दिनों तो ख़ुदा रहा मुझ में

बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है
तू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता

ख़ुदा से माँग जो कुछ माँगना है ऐ ‘अकबर’
यही वो दर है कि ज़िल्लत नहीं सवाल के बा’द

आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद
मुझ से मिरे गुनह का हिसाब ऐ ख़ुदा न माँग

ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे

मुझ को ख़्वाहिश ही ढूँडने की न थी
मुझ में खोया रहा ख़ुदा मेरा

Khuda Shayari

वफ़ा जिस से की बेवफ़ा हो गया
जिसे बुत बनाया ख़ुदा हो गया

मिरे गुनाह ज़ियादा हैं या तिरी रहमत
करीम तू ही बता दे हिसाब कर के मुझे

है ग़लत गर गुमान में कुछ है
तुझ सिवा भी जहान में कुछ है

फ़रिश्ते हश्र में पूछेंगे पाक-बाज़ों से
गुनाह क्यूँ न किए क्या ख़ुदा ग़फ़ूर न था

‘मीर’ बंदों से काम कब निकला
माँगना है जो कुछ ख़ुदा से माँग

तेरी बख़्शिश के भरोसे पे ख़ताएँ की हैं
तेरी रहमत के सहारे ने गुनहगार किया

चल दिए सू-ए-हरम कू-ए-बुताँ से ‘मोमिन’
जब दिया रंज बुतों ने तो ख़ुदा याद आया

अल्लाह अगर तौफ़ीक़ न दे इंसान के बस का काम नहीं
फ़ैज़ान-ए-मोहब्बत आम सही इरफ़ान-ए-मोहब्बत आम नहीं

अक़्ल में जो घिर गया ला-इंतिहा क्यूँकर हुआ
जो समा में आ गया फिर वो ख़ुदा क्यूँकर हुआ

जग में आ कर इधर उधर देखा
तू ही आया नज़र जिधर देखा

अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है
ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ

इस भरोसे पे कर रहा हूँ गुनाह
बख़्श देना तो तेरी फ़ितरत है

गुल ग़ुंचे आफ़्ताब शफ़क़ चाँद कहकशाँ
ऐसी कोई भी चीज़ नहीं जिस में तू न हो

जो चाहिए सो माँगिये अल्लाह से ‘अमीर’
उस दर पे आबरू नहीं जाती सवाल से

मैं पयम्बर तिरा नहीं लेकिन
मुझ से भी बात कर ख़ुदा मेरे

छोड़ा नहीं ख़ुदी को दौड़े ख़ुदा के पीछे
आसाँ को छोड़ बंदे मुश्किल को ढूँडते हैं

गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँ
सुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं

You can also read Islamic Shayari in Hindi

तमाम पैकर-ए-बदसूरती है मर्द की ज़ात
मुझे यक़ीं है ख़ुदा मर्द हो नहीं सकता

ओ मेरे मसरूफ़ ख़ुदा
अपनी दुनिया देख ज़रा

ज़मीन जब भी हुई कर्बला हमारे लिए
तो आसमान से उतरा ख़ुदा हमारे लिए

सब लोग अपने अपने ख़ुदाओं को लाए थे
इक हम ही ऐसे थे कि हमारा ख़ुदा न था

अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देख
इक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम ख़ुदा भी है

हम ख़ुदा के कभी क़ाइल ही न थे
उन को देखा तो ख़ुदा याद आया

जब सफ़ीना मौज से टकरा गया
नाख़ुदा को भी ख़ुदा याद आ गया

Khuda Shayari in Hindi

या-रब तिरी रहमत से मायूस नहीं ‘फ़ानी’
लेकिन तिरी रहमत की ताख़ीर को क्या कहिए

हम यहाँ ख़ुद आए हैं लाया नहीं कोई हमें
और ख़ुदा का हम ने अपने नाम पर रक्खा है नाम

आता है जो तूफ़ाँ आने दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है
मुमकिन है कि उठती लहरों में बहता हुआ साहिल आ जाए

Khuda Shayari in Hindi
Khuda Shayari in Hindi

पूछेगा जो ख़ुदा तो ये कह देंगे हश्र में
हाँ हाँ गुनह किया तिरी रहमत के ज़ोर पर

तू मेरे सज्दों की लाज रख ले शुऊर-ए-सज्दा नहीं है मुझ को
ये सर तिरे आस्ताँ से पहले किसी के आगे झुका नहीं है

तारीफ़ उस ख़ुदा की जिस ने जहाँ बनाया
कैसी ज़मीं बनाई क्या आसमाँ बनाया

‘दाग़’ को कौन देने वाला था
जो दिया ऐ ख़ुदा दिया तू ने

रहने दे अपनी बंदगी ज़ाहिद
बे-मोहब्बत ख़ुदा नहीं मिलता

मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर
मस्जिद में तो ज़िक्र-ए-मय-ओ-मीना नहीं होता

सर-ए-महशर यही पूछूँगा ख़ुदा से पहले
तू ने रोका भी था बंदे को ख़ता से पहले

अब तो है इश्क़-ए-बुताँ में ज़िंदगानी का मज़ा
जब ख़ुदा का सामना होगा तो देखा जाएगा

ज़िंदगी कहते हैं जिस को चार दिन की बात है
बस हमेशा रहने वाली इक ख़ुदा की ज़ात है

झोलियाँ सब की भरती जाती हैं
देने वाला नज़र नहीं आता

मिरे ख़ुदा ने किया था मुझे असीर-ए-बहिश्त
मिरे गुनह ने रिहाई मुझे दिलाई है

बुत-कदे से चले हो काबे को
क्या मिलेगा तुम्हें ख़ुदा के सिवा

गुनाहों से हमें रग़बत न थी मगर या रब
तिरी निगाह-ए-करम को भी मुँह दिखाना था

जवाज़ कोई अगर मेरी बंदगी का नहीं
मैं पूछता हूँ तुझे क्या मिला ख़ुदा हो कर

ज़बान-ए-होश से ये कुफ़्र सरज़द हो नहीं सकता
मैं कैसे बिन पिए ले लूँ ख़ुदा का नाम ऐ साक़ी

फ़ितरत में आदमी की है मुबहम सा एक ख़ौफ़
उस ख़ौफ़ का किसी ने ख़ुदा नाम रख दिया

बुतों को पूजने वालों को क्यूँ इल्ज़ाम देते हो
डरो उस से कि जिस ने उन को इस क़ाबिल बनाया है

देख छोटों को है अल्लाह बड़ाई देता
आसमाँ आँख के तिल में है दिखाई देता

न माँगिये जो ख़ुदा से तो माँगिये किस से
जो दे रहा है उसी से सवाल होता है

शोरीदगी के हाथ से है सर वबाल-ए-दोश
सहरा में ऐ ख़ुदा कोई दीवार भी नहीं

काबे में भी वही है शिवाले में भी वही
दोनों मकान उस के हैं चाहे जिधर रहे

हम कि मायूस नहीं हैं उन्हें पा ही लेंगे
लोग कहते हैं कि ढूँडे से ख़ुदा मिलता है

ख़ुद को तो ‘नदीम’ आज़माया
अब मर के ख़ुदा को आज़माऊँ

वो ख़ुदा है तो मिरी रूह में इक़रार करे
क्यूँ परेशान करे दूर का बसने वाला

Allah Shayari 2 Line

आसमान पर जा पहुँचूँ
अल्लाह तेरा नाम लिखूँ

सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ’ज़
बुतों का ज़िक्र ख़ुदा की किताब में देखा

वो सो रहा है ख़ुदा दूर आसमानों में
फ़रिश्ते लोरियाँ गाते हैं उस के कानों में

अगर तेरी ख़ुशी है तेरे बंदों की मसर्रत में
तो ऐ मेरे ख़ुदा तेरी ख़ुशी से कुछ नहीं होता

सुख में होता है हाफ़िज़ा बेकार
दुख में अल्लाह याद आता है

ख़ुदा से लोग भी ख़ाइफ़ कभी थे
मगर लोगों से अब ख़ाइफ़ ख़ुदा है

उसी ने चाँद के पहलू में इक चराग़ रखा
उसी ने दश्त के ज़र्रों को आफ़्ताब किया

दैर ओ काबा में भटकते फिर रहे हैं रात दिन
ढूँढने से भी तो बंदों को ख़ुदा मिलता नहीं

आप करते जो एहतिराम-ए-बुताँ
बुत-कदे ख़ुद ख़ुदा ख़ुदा करते

कश्ती-ए-ए’तिबार तोड़ के देख
कि ख़ुदा भी है ना-ख़ुदा ही नहीं

ऐ ख़ुदा मेरी रगों में दौड़ जा
शाख़-ए-दिल पर इक हरी पत्ती निकाल

मिरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे
ये सोचता हुआ गिरजा बुला रहा है मुझे

ईमाँ भी लाज रख न सका मेरे झूट की
अपने ख़ुदा पे कितना मुझे ए’तिमाद था

वो है बड़ा करीम रहीम उस की ज़ात है
नाहक़ गुनाहगारों को फ़िक्र-नजात है

दहर में इक तिरे सिवा क्या है
तू नहीं है तो फिर भला क्या है

का’बा-ओ-दैर में अब ढूँड रही है दुनिया
जो दिल-ओ-जान में बस्ता था ख़ुदा और ही था

यूँ सरापा इल्तिजा बन कर मिला था पहले रोज़
इतनी जल्दी वो ख़ुदा हो जाएगा सोचा न था

तू ख़ुदा है तो बजा मुझ को डराता क्यूँ है
जा मुबारक हो तुझे तेरे करम का साया

कोई सूरत भी नहीं मिलती किसी सूरत में
कूज़ा-गर कैसा करिश्मा तिरे इस चाक में है

गुलशन-ए-दहर में सौ रंग हैं ‘हातिम’ उस के
वो कहीं गुल है कहीं बू है कहीं बूटा है

अहल-ए-म’अनी जुज़ न बूझेगा कोई इस रम्ज़ को
हम ने पाया है ख़ुदा को सूरत-ए-इंसाँ के बीच

ठहरी जो वस्ल की तो हुई सुब्ह शाम से
बुत मेहरबाँ हुए तो ख़ुदा मेहरबाँ न था

ज़ाहिदा काबे को जाता है तो कर याद-ए-ख़ुदा
फिर जहाज़ों में ख़याल-ए-ना-ख़ुदा करता है क्यूँ

न सिर्फ़ दैर-ओ-हरम बल्कि चढ़ के दार पे भी
तिरे पुकारने वाले तुझे पुकार गए

फिर उस के बा’द कोई और दुख बना ही नहीं
तबाह-कुन था फ़क़त कुन पुकारना उस का

कभी उस के सवालों से मुझे लगता है ऐसे
कि जैसे वो ख़ुदा है और क़यामत चाहता है

मेरी जन्नत तिरी निगाह-ए-करम
मुझ से फिर जाए ये ख़ुदा न करे

किया है आज वा’दा किस ने आने का ख़ुदा जाने
नज़र आता है चश्म-ए-शौक़ दरवाज़ा मिरे घर का

किया कलीम को अरमान-ए-दीद ने रुस्वा
दिखा के जल्वा-ए-परवरदिगार थोड़ा सा

कुछ इंसाँ थे कुछ मज़हब थे एक ख़ुदा था
और उस एक ख़ुदा के कारन सब झगड़ा था

बुत-ख़ाने में भी नूर-ए-ख़ुदा देखता हूँ मैं
जी हाँ ये मेरे हुस्न-ए-अक़ीदत की बात है

हर-चंद हर एक शय में तू है
पर तुझ सी कोई शय नहीं है

ख़ुदा के वास्ते चेहरे से टुक नक़ाब उठा
ये दरमियान से अब पर्दा-ए-हिजाब उठा

नाख़ुदा है मौत जो दम है सो है बाद-ए-मुराद
अज़्म है कश्ती-ए-तन को बहर-ए-हस्ती यार का

मैं सिदरत-उल-मुंतहा पे आ के रुकी हुई हूँ
अब आगे जो भी करेगा मेरा ख़ुदा करेगा

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