200+ Sharab Shayari in Hindi 2025

शराब सिर्फ एक पेय नहीं, कई टूटे दिलों की कहानी है। जब दर्द हद से बढ़ जाए और अल्फ़ाज़ कम पड़ जाएं, तब जाम ही सहारा बनता है। Sharab Shayari In Hindi उन्हीं ग़मों, तन्हाइयों और अधूरी मोहब्बत के जाम में डूबी हुई भावनाओं को शब्दों का रूप देती है। कुछ शायरियां मज़ाक में होंगी, तो कुछ गहराई में डूबे हुए जज़्बात लेकर आएंगी। इस लेख में पढ़िए वो शायरियां जो जाम के साथ-साथ जज़्बातों को भी छलका देती हैं दर्द भी है, सुकून भी और कुछ हँसी के पल भी।
Sharab Shayari in Hindi
ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर
या वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो
अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में
तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है
आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में ‘फ़िराक़’
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए

‘ग़ालिब’ छुटी शराब पर अब भी कभी कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र ओ शब-ए-माहताब में
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई
बारिश शराब-ए-अर्श है ये सोच कर ‘अदम’
बारिश के सब हुरूफ़ को उल्टा के पी गया
बे पिए ही शराब से नफ़रत
ये जहालत नहीं तो फिर क्या है
आख़िर गिल अपनी सर्फ़-ए-दर-ए-मय-कदा हुई
पहुँचे वहाँ ही ख़ाक जहाँ का ख़मीर हो
शब को मय ख़ूब सी पी सुब्ह को तौबा कर ली
रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई
ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूँ
क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया
Mirza Ghalib Sharab Shayari
शब जो हम से हुआ मुआफ़ करो
नहीं पी थी बहक गए होंगे
ऐ ‘ज़ौक़’ देख दुख़्तर-ए-रज़ को न मुँह लगा
छुटती नहीं है मुँह से ये काफ़र लगी हुई
साक़ी मुझे शराब की तोहमत नहीं पसंद
मुझ को तिरी निगाह का इल्ज़ाम चाहिए

इतनी पी जाए कि मिट जाए मैं और तू की तमीज़
यानी ये होश की दीवार गिरा दी जाए
लुत्फ़-ए-मय तुझ से क्या कहूँ ज़ाहिद
हाए कम-बख़्त तू ने पी ही नहीं
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
इस के ब’अद आए जो अज़ाब आए
पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी
साक़ी ने जैसे प्यास मिला दी शराब में
पहले शराब ज़ीस्त थी अब ज़ीस्त है शराब
कोई पिला रहा है पिए जा रहा हूँ मैं
तर्क-ए-मय ही समझ इसे नासेह
इतनी पी है कि पी नहीं जाती
शिकन न डाल जबीं पर शराब देते हुए
ये मुस्कुराती हुई चीज़ मुस्कुरा के पिला
वो मिले भी तो इक झिझक सी रही
काश थोड़ी सी हम पिए होते
हम इंतिज़ार करें हम को इतनी ताब नहीं
पिला दो तुम हमें पानी अगर शराब नहीं
मिरे अश्क भी हैं इस में ये शराब उबल न जाए
मिरा जाम छूने वाले तिरा हाथ जल न जाए
किधर से बर्क़ चमकती है देखें ऐ वाइज़
मैं अपना जाम उठाता हूँ तू किताब उठा
किधर से बर्क़ चमकती है देखें ऐ वाइज़
मैं अपना जाम उठाता हूँ तू किताब उठा
ख़ुश्क बातों में कहाँ है शैख़ कैफ़-ए-ज़िंदगी
वो तो पी कर ही मिलेगा जो मज़ा पीने में है
वाइज़ न तुम पियो न किसी को पिला सको
क्या बात है तुम्हारी शराब-ए-तुहूर की
सब को मारा ‘जिगर’ के शेरों ने
और ‘जिगर’ को शराब ने मारा
Sharab Shayari Sad
अच्छी पी ली ख़राब पी ली
जैसी पाई शराब पी ली
मदहोश ही रहा मैं जहान-ए-ख़राब में
गूंधी गई थी क्या मिरी मिट्टी शराब में
किसी की बज़्म के हालात ने समझा दिया मुझ को
कि जब साक़ी नहीं अपना तो मय अपनी न जाम अपना
शिरकत गुनाह में भी रहे कुछ सवाब की
तौबा के साथ तोड़िए बोतल शराब की
हर-चंद हो मुशाहिदा-ए-हक़ की गुफ़्तुगू
बनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर

पी शौक़ से वाइज़ अरे क्या बात है डर की
दोज़ख़ तिरे क़ब्ज़े में है जन्नत तिरे घर की
वाइज़ बड़ा मज़ा हो अगर यूँ अज़ाब हो
दोज़ख़ में पाँव हाथ में जाम-ए-शराब हो
अज़ाँ हो रही है पिला जल्द साक़ी
इबादत करें आज मख़मूर हो कर
पूछिए मय-कशों से लुत्फ़-ए-शराब
ये मज़ा पाक-बाज़ क्या जानें
गरचे अहल-ए-शराब हैं हम लोग
ये न समझो ख़राब हैं हम लोग
ऐ मोहतसिब न फेंक मिरे मोहतसिब न फेंक
ज़ालिम शराब है अरे ज़ालिम शराब है
बे-पिए शैख़ फ़रिश्ता था मगर
पी के इंसान हुआ जाता है
You can also read Sad Shayari 2 Line
खुली फ़ज़ा में अगर लड़खड़ा के चल न सकें
तो ज़हर पीना है बेहतर शराब पीने से
ज़बान-ए-होश से ये कुफ़्र सरज़द हो नहीं सकता
मैं कैसे बिन पिए ले लूँ ख़ुदा का नाम ऐ साक़ी
शराब बंद हो साक़ी के बस की बात नहीं
तमाम शहर है दो चार दस की बात नहीं
फ़रेब-ए-साक़ी-ए-महफ़िल न पूछिए ‘मजरूह’
शराब एक है बदले हुए हैं पैमाने
मिरी शराब की तौबा पे जा न ऐ वाइज़
नशे की बात नहीं ए’तिबार के क़ाबिल
जाम ले कर मुझ से वो कहता है अपने मुँह को फेर
रू-ब-रू यूँ तेरे मय पीने से शरमाते हैं हम
पी कर दो घूँट देख ज़ाहिद
क्या तुझ से कहूँ शराब क्या है
मुँह में वाइज़ के भी भर आता है पानी अक्सर
जब कभी तज़्किरा-ए-जाम-ए-शराब आता है
ज़ाहिद को रट लगी है शराब-ए-तुहूर की
आया है मय-कदे में तो सूझी है दूर की
किसी तरह तो घटे दिल की बे-क़रारी भी
चलो वो चश्म नहीं कम से कम शराब तो हो
Sharab Shayari 2 Lines
‘अदम’ रोज़-ए-अजल जब क़िस्मतें तक़्सीम होती थीं
मुक़द्दर की जगह मैं साग़र-ओ-मीना उठा लाया
मुद्दत से आरज़ू है ख़ुदा वो घड़ी करे
हम तुम पिएँ जो मिल के कहीं एक जा शराब
लैलतुल-क़द्र है हर शब उसे हर रोज़ है ईद
जिस ने मय-ख़ाने में माह-ए-रमज़ाँ देखा है
तिरा शबाब रहे हम रहें शराब रहे
ये दौर ऐश का ता दौर-ए-आफ़्ताब रहे
पिला मय आश्कारा हम को किस की साक़िया चोरी
ख़ुदा से जब नहीं चोरी तो फिर बंदे से क्या चोरी
पीर-ए-मुग़ाँ के पास वो दारू है जिस से ‘ज़ौक़’
नामर्द मर्द मर्द-ए-जवाँ-मर्द हो गया
उठा सुराही ये शीशा वो जाम ले साक़ी
फिर इस के बाद ख़ुदा का भी नाम ले साक़ी
मुझ तक उस महफ़िल में फिर जाम-ए-शराब आने को है
उम्र-ए-रफ़्ता पलटी आती है शबाब आने को है
पी जिस क़दर मिले शब-ए-महताब में शराब
इस बलग़मी-मिज़ाज को गर्मी ही रास है
वाइज़ मय-ए-तुहूर जो पीना है ख़ुल्द में
आदत अभी से डाल रहा हूँ शराब की
वाइज़ की आँखें खुल गईं पीते ही साक़िया
ये जाम-ए-मय था या कोई दरिया-ए-नूर था
पीता नहीं शराब कभी बे-वज़ू किए
क़ालिब में मेरे रूह किसी पारसा की है
गुनाह कर के भी हम रिंद पाक-साफ़ रहे
शराब पी तो नदामत ने आब आब किया
मुझे तौबा का पूरा अज्र मिलता है उसी साअत
कोई ज़ोहरा-जबीं पीने पे जब मजबूर करता है
साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब
मरता हूँ तिश्नगी से ऐ ज़ालिम पिला शराब
दर्द-ए-सर है ख़ुमार से मुझ को
जल्द ले कर शराब आ साक़ी
जिस मुसल्ले पे छिड़किए न शराब
अपने आईन में वो पाक नहीं
क्या जाने शैख़ क़द्र हमारी शराब की
हर घूँट में पड़ी हुई रहमत ख़ुदा की है
ज़ाहिद शराब-ए-नाब हो या बादा-ए-तुहूर
पीने ही पर जब आए हराम ओ हलाल क्या
‘आरज़ू’ जाम लो झिजक कैसी
पी लो और दहशत-ए-गुनाह गई
ये थोड़ी थोड़ी मय न दे कलाई मोड़ मोड़ कर
भला हो तेरा साक़िया पिला दे ख़ुम निचोड़ कर
जनाब-ए-शैख़ को सूझे न फिर हराम ओ हलाल
अभी पिएँ जो मिले मुफ़्त की शराब कहीं
मय पी जो चाहे आतिश-ए-दोज़ख़ से तू नजात
जलता नहीं वो उज़्व जो तर हो शराब में
किस की होली जश्न-ए-नौ-रोज़ी है आज
सुर्ख़ मय से साक़िया दस्तार रंग
जान मेरी मय ओ साग़र में पड़ी रहती है
मैं निकल कर भी निकलता नहीं मय-ख़ाने से
मय-कश हूँ वो कि पूछता हूँ उठ के हश्र में
क्यूँ जी शराब की हैं दुकानें यहाँ कहीं
रिंदों के हाथ से नहीं टूटी ये साक़िया
नश्शे में चूर हो गई बोतल शराब की
तकिया हटता नहीं पहलू से ये क्या है ‘बेख़ुद’
कोई बोतल तो नहीं तुम ने छुपा रक्खी है
ज़ाहिद उमीद-ए-रहमत-ए-हक़ और हज्व-ए-मय
पहले शराब पी के गुनाह-गार भी तो हो
ख़ाली सही बला से तसल्ली तो दिल को हो
रहने दो सामने मिरे साग़र शराब का
शुक्रिया ऐ गर्दिश-ए-जाम-ए-शराब
मैं भरी महफ़िल में तन्हा हो गया
शिकस्त-ए-तौबा की तम्हीद है तिरी तौबा
ज़बाँ पे तौबा ‘मुबारक’ निगाह साग़र पर
हाथ फिर बढ़ रहा है सू-ए-जाम
ज़िंदगी की उदासियों को सलाम
मुश्किल है इमतियाज़-ए-अज़ाब-ओ-सवाब में
पीता हूँ मैं शराब मिला कर गुलाब में
सर-चश्मा-ए-बक़ा से हरगिज़ न आब लाओ
हज़रत ख़िज़र कहीं से जा कर शराब लाओ
बजा कि है पास-ए-हश्र हम को करेंगे पास-ए-शबाब पहले
हिसाब होता रहेगा या रब हमें मँगा दे शराब पहले
ता-मर्ग मुझ से तर्क न होगी कभी नमाज़
पर नश्शा-ए-शराब ने मजबूर कर दिया
शीशे खुले नहीं अभी साग़र चले नहीं
उड़ने लगी परी की तरह बू शराब की
शराब पीते हैं तो जागते हैं सारी रात
मुदाम आबिद-ए-शब-ज़िंदादार हम भी हैं
Sharabi Shayari
तल्ख़ी तुम्हारे वाज़ में है वाइज़ो मगर
देखो तो किस मज़े की है तल्ख़ी शराब में
शबाब-ए-दर्द मिरी ज़िंदगी की सुब्ह सही
पियूँ शराब यहाँ तक कि शाम हो जाए
छटे ग़ुबार-ए-नज़र बाम-ए-तूर आ जाए
पियो शराब कि चेहरे पे नूर आ जाए

मय न हो बू ही सही कुछ तो हो रिंदों के लिए
इसी हीले से बुझेगी हवस-ए-जाम-ए-शराब
मानें जो मेरी बात मुरीदान-ए-बे-रिया
दें शैख़ को कफ़न तो डुबो कर शराब में
हमारी कश्ती-ए-तौबा का ये हुआ अंजाम
बहार आते ही ग़र्क़-ए-शराब हो के रही
किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है
कि माहताब तह-ए-आफ़्ताब आया है
रिंदों को वाज़ पंद न कर फ़स्ल-ए-गुल में शैख़
ऐसा न हो शराब उड़े ख़ानक़ाह में
तमाम अंजुमन-ए-वाज़ हो गई बरहम
लिए हुए कोई यूँ साग़र-ए-शराब आया
मय-कशी में रखते हैं हम मशरब-ए-दुर्द-ए-शराब
जाम-ए-मय चलता जहाँ देखा वहाँ पर जम गए
इस एहतिमाम से अक्सर उठे हैं पैमाने
कि बूँद बूँद को मैं जानों या ख़ुदा जाने
कब पिलावेगा तू ऐ साक़ी मुझे जाम-ए-शराब
जाँ-ब-लब हूँ आरज़ू में मय की पैमाने की तरह
थोड़ी सी पी शराब थोड़ी उछाल दी,
कुछ इस तरह से हमने जवानी निकाल दी।।
शराब और मेरा कई बार ब्रेकअप हो चुका है,
पर कमबख्त हर बार मुझे मना लेती है।।
पीने से कर चुका था मैं तौबा दोस्तों,
बादलो का रंग देख नीयत बदल गई।
मत कर हंगामा पीकर हमारी गली में,
हम तो खुद बदनाम है तेरी मोहब्बत के नशे में!
मिलावट है तेरे इश्क़ में इत्र और शराब की,
कभी हम महक जाते है कभी बहक जाते है।
कर दो तब्दील अदालतों को
मयखाने में साहब,
सुना है नशे में कोई झूठ नहीं बोलता।
सुना है मोहब्बत कर ली तुमने भी !!
अब किधर मिलोगे पागलखाने या मैखान !!
पीने से कर चुका था मैं तौबा मगर ‘जलील’
बादल का रंग देख के नीयत बदल गई,.,!!!
लाल आँखे और होंठ शबनमी,
पी के आये हो या खुद शराब हो।
बहुत शराब चढाता हुँ रोज,
तब जाकर तुम कहीं उतरती हो।
थोड़ी सी पी शराब थोड़ी उछाल दी,
कुछ इस तरह से हमने जवानी निकाल दी!
Jaam Sharab Shayari
पीने से कर चुका था मैं तौबा
मगर ‘जलील’
बादल का रंग देख के
नीयत बदल गई,.,!!!
अगर गम मोहब्बत
पर हावी नहीं होता,
खुदा की कसम मैं
शराबी न होता।।
नशा तब दोगुना होता है जनाब,
जब जाम भी छलके और
आँख भी छलके
तेरी फरेबी मोहब्बत से हम धोखा खा गए
इसीलिए जानेमन हम बेवड़ो
की कैटेगरी में आ गए..!!!
शराब वो पिए जिन्हें चढ़के
उतर जाती है मैं नहीं पियूंगा
कमबख्त दिल में उतर जाती है..!!!
एक हसीना ने हमें कुछ
इस कदर खामोश किया है
जैसे शराब में आशिकी का
नशा डालकर पिला दिया है..!!!
नशा तो बस तेरी बातों से
ही चढ़ जाता है बिन पिए
ही मै शराबी कहलाता है..!!!
जब-जब मुझे तेरी याद आती है
ये शराब अक्सर
मेरे गम भूलाती है.!!
जनाब कहां किसी की
यादें किसी को संभालती है
यादें तो बस लोगो को
मयखाने तक ले जाती है.!!
पीने से कर चुका था मैं तोबा
मगर महफिल मैं महबूबा को
देखकर नियत बदल गई !
इंसान ही तो हूं मैं आशिक
दीवाना शायर और शराबी
सब तुम्हारी मोहब्बत
तेरी जुदाई के गम को हम
भुलाने लगे है शराब पी कर
अपने दिल को बहलाने लगे है !
इश्क के नाम पर यहां
तो लोग खून पीते है
मुझे खुद पर नाज है
मै सिर्फ शराब पीता हूं !
पीकर पार्टी में रात भर सब कुछ
भुलाने लगे है नशे में अब
वो बेवफा याद आने लगी है !
शराबी शायरी हिंदी
मुझे थी तेरे होठों की तलब
आज मेरे लबों से यह शराब गुजरी है !
तेरी मोहब्बत का कुछ ऐसा
फरमान आया है एक हाथ में कलम
तो दूसरे हाथ में जाम है !
पर्दा तो होश वालो
से करते है हुजूर तुम बेनकाब
चले आओ हम तो नशे में है !
रूखी सी जिंदगी
गुलाबी बन गई शराब ही
जिंदगी जीने का सहारा बन गई !
तुझे खुशी का एक
जाम भी नसीब ना होगा
मुझे इस कदर गमों
मैं शराबी बनाने वाले !
कभी अकेला नही छोड़ोगी
कहती थी तुम तेरे गम में वह
मासूम लड़का शराबी हो गया !
अरे ना मिले मोहब्बत तो क्या मर जाएंगे
हम तो शराब पीकर आराम से सो जाएंगे !
खुशियां ना जाने कहां गुम
हो गई है दारू ही हमारे
जीने का सहारा बन गई है !
रब की बनाई इस दुनिया में
दो ही चीजें खराब है
एक मोहब्बत और दूसरी शराब है !
मत पूछो इश्क में लोगो
का हाल कैसा होता है खाली
पैमाना भी भरी बोतल जैसा होता है !
इश्क का जुनून सिर पर चढ़ रहा है
मयखाने से कह दो कि दरवाजा खुला रखे !
कतरे कतरे में गमों को
समेट रहा हूं ज्यादा हो गई
भाई आखरी पैग फैक रहा हूं !
तुम्हारे आंखों की तोहीन है जरा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है !
तू डालता जा साकी शराब मेरे प्यालों मे
जब तक ना निकले वो मेरे ख्याल से !
कहते है प्यार जीने नही देता
पर जनाब यह अच्छे-अच्छे
शराबियो को पीने नही देता !
अगर गम मेरे प्यार पर हावी ना होता
तो दोस्तो आज मैं भी शराबी ना होता !
चारों तरफ तनहाई का साया है
जिंदगी में प्यार किसने पाया है !
हम तुम्हारी यादों में झूमते है
और जमाना कहता है देखो
आज फिर पी कर आया है !
मुद्दतों बाद नशे में तुम
नजर आए हो हम पीते पीते
मर जाएं तो अब कोई गम नही !
रोक दो मेरे जनाज़े को जालिमो
मुझमें जान आ गयी है पीछे मुड़के
देखो कमीनो दारू की दुकान आ गयी है !
तू होश में थी फिर भी
हमे पहचान न पायी एक हम है
कि पी कर भी तेरा नाम लेते रहे !
कड़क ठंड में कड़क
चाय का मजा शराब पीने
वाले क्या जाने चाय का नशा !
बहुत अमीर होती है ये शराब की बोतले,
पैसा चाहे जो भी लग जाए, सारे गम खरीद लेती है।
शीशे में डूब कर पीते रहे, उस जाम को,
कोशिशे तो बहूत की मगर, भुला ना पाए एक नाम को।
रात भर गिरते रहे, उनके दामन में मेरे आंसू,
सुबह उठते ही वे बोले, कल रात बारिश गज़ब की थी।
मेंखाना ऐ- हस्ती में अक्सर,
हम अपना ठिकाना भूल गए,
या होश से जाना भूल गए,
या होश में आना भूल गए।
मेह्खाने से बढ़ कर, कोई जमीन नहीं,
जहा सिर्फ ज़मीन लड़खड़ाते है, ज़मीर नहीं।
मोहब्बत से गुज़रा हूँ, अब मेह्खाने में जाना है,
दोनों का असर एक ही है, बस होश ही तो गवाना है।
बर्फ का वो शरीफ़ टुकड़ा, जाम में क्या गिरा,
बदनाम हो गया, देता जब तक अपनी सफाई,
वो खुद शराब हो गया।
सदियों से जो बदनामी का, बोझ ढो रही है,
आज वो ही सबके हाथ धो रही है।
पीना चाहते थे हम सिर्फ एक जाम,
मगर पीते पीते शाम से सवेरा हो गया,
बहके बहके कदम धीरे धीरे चले,
इसलिए आने में ज़रा सी देर हो गयी।
मयकदे की राह से गुज़र रहा हूँ,
आज फिर से तन्हाई को ढूंढ रहा हूँ।
कभी जाम, कभी अश्क, कभी तन्हाई,
मेरे हिस्से में हर बार वही कहानी आई।
मयकदे में जाकर भी, सुकून न मिला,
दिल के ज़ख्मों का दर्द, हर जाम में मिला।
शराब में डूबा हूँ, पर नशे में नहीं,
ये जाम तो बस तेरी यादें कम करने की कोशिश है।
दिल की बात अब जाम से कहने लगे हैं,
इश्क़ की हर चोट को अब यूँ कहने लगे हैं।
शराब से दोस्ती हो गई है अब,
तेरी बेवफाई का यही सबसे अच्छा इलाज है।
नशे में आज फिर से दिल बहला रहे हैं,
शराब से तेरे दर्द को यूं भुला रहे हैं।
कभी मोहब्बत में थे हम, अब शराब में हैं,
दिल का हाल बस इन्हीं प्यालों में है।
शराब के जाम में छुपी है तेरी कहानी,
हर घूंट में बस तुझसे जुदाई की निशानी।