220+ Best Life Shayari in Hindi 2025

ज़िंदगी सिर्फ़ साँसों का नाम नहीं, ये एहसासों का सफ़र है। हर दिन एक नया इम्तिहान, हर रात एक नई सीख लेकर आती है। Life Shayari in Hindi का यह खास संग्रह आपको ज़िंदगी की हकीकत से रूबरू कराएगा — कभी हौसला देगा, कभी सोचने पर मजबूर कर देगा। अगर आपकी ज़िंदगी में कभी ठहराव आया है या आप तलाश कर रहे हैं कुछ लफ़्ज़ों में अपना अक्स, तो ये शायरियाँ आपके दिल को छू जाएंगी। इन्हें पढ़िए, महसूस कीजिए और ज़िंदगी को एक नई नज़र से देखिए।
Life Shayari in Hindi
कभी ख़िरद कभी दीवानगी ने लूट लिया
तरह तरह से हमें ज़िंदगी ने लूट लिया
जो पढ़ा है उसे जीना ही नहीं है मुमकिन
ज़िंदगी को मैं किताबों से अलग रखता हूँ
मौत ख़ामोशी है चुप रहने से चुप लग जाएगी
ज़िंदगी आवाज़ है बातें करो बातें करो
बड़ा घाटे का सौदा है ‘सदा’ ये साँस लेना भी
बढ़े है उम्र ज्यूँ-ज्यूँ ज़िंदगी कम होती जाती है
गुज़र रही थी ज़िंदगी गुज़र रही है ज़िंदगी
नशेब के बग़ैर भी फ़राज़ के बग़ैर भी
मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
ये ज़िंदगी की है सूरत तो ज़िंदगी क्या है

नींद को लोग मौत कहते हैं
ख़्वाब का नाम ज़िंदगी भी है
उसी को कहते हैं जन्नत उसी को दोज़ख़ भी
वो ज़िंदगी जो हसीनों के दरमियाँ गुज़रे
अदा हुआ न क़र्ज़ और वजूद ख़त्म हो गया
मैं ज़िंदगी का देते देते सूद ख़त्म हो गया
बे-तअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं
ज़िंदगी क्या मौत भी अच्छी नहीं
हम को भी ख़ुश-नुमा नज़र आई है ज़िंदगी
जैसे सराब दूर से दरिया दिखाई दे
दर्द उल्फ़त का न हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा
आह-ओ-ज़ारी ज़िंदगी है बे-क़रारी ज़िंदगी
हमारी ज़िंदगी तो मुख़्तसर सी इक कहानी थी
भला हो मौत का जिस ने बना रक्खा है अफ़्साना
बड़ी तलाश से मिलती है ज़िंदगी ऐ दोस्त
क़ज़ा की तरह पता पूछती नहीं आती
कभी आँखों पे कभी सर पे बिठाए रखना
ज़िंदगी तल्ख़ सही दिल से लगाए रखना
धोका है इक फ़रेब है मंज़िल का हर ख़याल
सच पूछिए तो सारा सफ़र वापसी का है
ज़िंदगी क्या जो बसर हो चैन से
दिल में थोड़ी सी तमन्ना चाहिए
कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िंदगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा
मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं
जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं
ज़िंदगी से तो ख़ैर शिकवा था
मुद्दतों मौत ने भी तरसाया
ऐ अदम के मुसाफ़िरो होशियार
राह में ज़िंदगी खड़ी होगी
‘मुनीर’ इस ख़ूबसूरत ज़िंदगी को
हमेशा एक सा होना नहीं है
तल्ख़ियाँ इस में बहुत कुछ हैं मज़ा कुछ भी नहीं
ज़िंदगी दर्द-ए-मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं
कुछ और तरह की मुश्किल में डालने के लिए
मैं अपनी ज़िंदगी आसान करने वाला हूँ
दिन रात मय-कदे में गुज़रती थी ज़िंदगी
‘अख़्तर’ वो बे-ख़ुदी के ज़माने किधर गए
Life Shayari Hindi
अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई
ज़िंदगी मजबूरियों का नाम हो कर रह गई
ज़िंदगी फ़िरदौस-ए-गुम-गश्ता को पा सकती नहीं
मौत ही आती है ये मंज़िल दिखाने के लिए
एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है
ज़िंदगी की बेबसी का इस्तिआरा देखना
ज़िंदगी कहते हैं जिस को चार दिन की बात है
बस हमेशा रहने वाली इक ख़ुदा की ज़ात है
दर्द बढ़ कर दवा न हो जाए
ज़िंदगी बे-मज़ा न हो जाए
ज़िंदगी की ज़रूरतों का यहाँ
हसरतों में शुमार होता है
बहुत अज़ीज़ थी ये ज़िंदगी मगर हम लोग
कभी कभी तो किसी आरज़ू में मर भी गए
ये चार दिन के तमाशे हैं आह दुनिया के
रहा जहाँ में सिकंदर न और न जम बाक़ी

ज़िंदगी कितनी मसर्रत से गुज़रती या रब
ऐश की तरह अगर ग़म भी गवारा होता
ज़िंदगी से ज़िंदगी रूठी रही
आदमी से आदमी बरहम रहा
ज़िंदगी और हैं कितने तिरे चेहरे ये बता
तुझ से इक उम्र की हालाँकि शनासाई है
वक़्त से लम्हा लम्हा खेली है
ज़िंदगी इक अजब पहेली है
सुनता हूँ बड़े ग़ौर से अफ़्साना-ए-हस्ती
कुछ ख़्वाब है कुछ अस्ल है कुछ तर्ज़-ए-अदा है
ज़िंदगी है इक किराए की ख़ुशी
सूखते तालाब का पानी हूँ मैं
इक ज़िंदगी अमल के लिए भी नसीब हो
ये ज़िंदगी तो नेक इरादों में कट गई
ज़िंदगी छीन ले बख़्शी हुई दौलत अपनी
तू ने ख़्वाबों के सिवा मुझ को दिया भी क्या है
कोई मंज़िल आख़िरी मंज़िल नहीं होती ‘फ़ुज़ैल’
ज़िंदगी भी है मिसाल-ए-मौज-ए-दरिया राह-रौ
मसर्रत ज़िंदगी का दूसरा नाम
मसर्रत की तमन्ना मुस्तक़िल ग़म
ये ज़िंदगी भी अजब कारोबार है कि मुझे
ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का
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ज़िंदगी दी हिसाब से उस ने
और ग़म बे-हिसाब लिक्खा है
ज़िंदगी और ज़िंदगी की यादगार
पर्दा और पर्दे पे कुछ परछाइयाँ
सिर्फ़ ज़िंदा रहने को ज़िंदगी नहीं कहते
कुछ ग़म-ए-मोहब्बत हो कुछ ग़म-ए-जहाँ यारो
वो जंगलों में दरख़्तों पे कूदते फिरना
बुरा बहुत था मगर आज से तो बेहतर था
कोई वक़्त बतला कि तुझ से मिलूँ
मिरी दौड़ती भागती ज़िंदगी
कुछ तो है बात जो आती है क़ज़ा रुक रुक के
ज़िंदगी क़र्ज़ है क़िस्तों में अदा होती है
लाई है किस मक़ाम पे ये ज़िंदगी मुझे
महसूस हो रही है ख़ुद अपनी कमी मुझे
ज़िंदगी की बिसात पर ‘बाक़ी’
मौत की एक चाल हैं हम लोग
ज़िंदगी ख़्वाब है और ख़्वाब भी ऐसा कि मियाँ
सोचते रहिए कि इस ख़्वाब की ताबीर है क्या
ज़िंदगी परछाइयाँ अपनी लिए
आइनों के दरमियाँ से आई है
कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है
ज़िंदगी शाम है और शाम ढली जाए है
मौत से पहले जहाँ में चंद साँसों का अज़ाब
ज़िंदगी जो क़र्ज़ तेरा था अदा कर आए हैं
क्या चाहती है हम से हमारी ये ज़िंदगी
क्या क़र्ज़ है जो हम से अदा हो नहीं रहा
ज़िंदगी हम से चाहती क्या है
चाहती क्या है ज़िंदगी हम से
बहुत क़रीब रही है ये ज़िंदगी हम से
बहुत अज़ीज़ सही ए’तिबार कुछ भी नहीं
इक इक क़दम पे रक्खी है यूँ ज़िंदगी की लाज
ग़म का भी एहतिराम किया है ख़ुशी के साथ
ज़िंदगी का साज़ भी क्या साज़ है
बज रहा है और बे-आवाज़ है
ये दिन और रात किस जानिब उड़े जाते हैं सदियों से
कहीं रुकते तो मैं भी शामिल-ए-पर्वाज़ हो सकता
ज़िंदगी ज़ोर है रवानी का
क्या थमेगा बहाव पानी का
कहानी है तो इतनी है फ़रेब-ए-ख़्वाब-ए-हस्ती की
कि आँखें बंद हूँ और आदमी अफ़्साना हो जाए
ज़िंदगी फैली हुई थी शाम-ए-हिज्राँ की तरह
किस को इतना हौसला था कौन जी कर देखता
नश्शा था ज़िंदगी का शराबों से तेज़-तर
हम गिर पड़े तो मौत उठा ले गई हमें
वही है ज़िंदगी लेकिन ‘जिगर’ ये हाल है अपना
कि जैसे ज़िंदगी से ज़िंदगी कम होती जाती है
ज़िंदगी! तुझ सा मुनाफ़िक़ भी कोई क्या होगा
तेरा शहकार हूँ और तेरा ही मारा हुआ हूँ
ज़िंदगी तुझ से भी क्या ख़ूब तअल्लुक़ है मिरा
जैसे सूखे हुए पत्ते से हवा का रिश्ता
आख़िर इक रोज़ तो पैवंद-ए-ज़मीं होना है
जामा-ए-ज़ीस्त नया और पुराना कैसा
ऐश ही ऐश है न सब ग़म है
ज़िंदगी इक हसीन संगम है
किसी के बिन किसी की याद के बिन
जिए जाने की हिम्मत है नहीं तो
जनम जनम के सातों दुख हैं उस के माथे पर तहरीर
अपना आप मिटाना होगा ये तहरीर मिटाने में
तज्दीद-ए-ज़िंदगी के इशारे हुए तो हैं
कुछ पल सही वो आज हमारे हुए तो हैं
ख़ुद-कुशी का फ़ैसला ये सोच कर हम ने किया
कौन करता ज़िंदगी का मौत से अच्छा इलाज
ज़ख़्म-ए-फ़ुर्क़त को पलकों से सीते हुए साँस लेने की आदत में जीते हुए
अब भी ज़िंदा हो तुम ज़िंदगी ने कहा ज़िंदगी के लिए एक ताज़ा ग़ज़ल
उलट कर जब भी देखी है किताब-ए-ज़िंदगी हम ने
तो हर इक लफ़्ज़ के पीछे कोई इक हादिसा निकला
मुझ को अता हुआ है ये कैसा लिबास-ए-ज़ीस्त
बढ़ते हैं जिस के चाक बराबर रफ़ू के साथ
उस को धुँदला न सकेगा कभी लम्हों का ग़ुबार
मेरी हस्ती का वरक़ यूँही खुला रहने दे
कितनी भी प्यारी हो हर इक शय से जी उक्ता जाता है
वक़्त के साथ तो चमकीले ज़ेवर भी काले पड़ जाते हैं
नहीं कि ज़िंदगी हमें कहाँ कहाँ लिए फिरी
है यूँ कि हम गए उसे कहाँ कहाँ लिए हुए
उस ज़ाविए से देखिए आईना-ए-हयात
जिस ज़ाविए से मैं ने लगाया है धूप में
जो नहीं है वक़्त का हम-सफ़र उसे सुब्ह-ओ-शाम की क्या ख़बर
हो किसी का वक़्त पे क्या असर भला वक़्त किस का ग़ुलाम है
कार-ए-दुनिया को भी कार-ए-इश्क़ में शामिल समझ
इस लिए ऐ ज़िंदगी तेरी पता रखता हूँ मैं
मर-मर के जिएँ किस लिए बंदे तिरे मौला
जीना भी ज़रा मौत सा आसान बना दे
वहीं पे झाड़ के उठते हैं फिर मता’-ए-हयात
कि ज़िंदगी को जहाँ जिस के नाम करते हैं
आप ने इस के फ़साने ही सुने होते हैं
और अचानक ये बला आप के सर होती है
अ’याल-ओ-माल ने रोका है दम को आँखों में
ये ठग हटें तो मुसाफ़िर को रास्ता मिल जाए
पहला क़दम ही आख़िरी ज़ीने पे रख दिया
या’नी जो दिल का बोझ था सीने पे रख दिया
कितना सोचा था दिल लगाएँगे
सोचते सोचते हयात हुई
शाम-ए-मिम्बर पर फ़ज़ीलत के बहुत संजीदा फ़रहाँ
सुब्ह-दम अफ़्सुर्दगी के फ़र्श पर बिखरा हुआ मैं
Life Shayari 2 Line
सुर्ख़ियों में ‘ऐब सारे हाशिए में नेकियाँ
क्या किताब-ए-ज़िंदगी है ज़िंदगी की आड़ में
हर एक काम है धोका हर एक काम है खेल
कि ज़िंदगी में तमाशा बहुत ज़रूरी है
हयात आज भी कनीज़ है हुज़ूर-ए-जब्र में
जो ज़िंदगी को जीत ले वो ज़िंदगी का मर्द है
विदाअ’ करती है रोज़ाना ज़िंदगी मुझ को
मैं रोज़ मौत के मंजधार से निकलता हूँ
अगर है ज़िंदगी इक जश्न तो ना-मेहरबाँ क्यों है
फ़सुर्दा रंग में डूबी हुई हर दास्ताँ क्यों है
ज़िंदगी अपना सफ़र तय तो करेगी लेकिन
हम-सफ़र आप जो होते तो मज़ा और ही था
हम लोग तो मरते रहे क़िस्तों में हमेशा
फिर भी हमें जीने का हुनर क्यूँ नहीं आया
ख़ाक और ख़ून से इक शम्अ जलाई है ‘नुशूर’
मौत से हम ने भी सीखी है हयात-आराई
सारी रुस्वाई ज़माने की गवारा कर के
ज़िंदगी जीते हैं कुछ लोग ख़सारा कर के
हिचकियों पर हो रहा है ज़िंदगी का राग ख़त्म
झटके दे कर तार तोड़े जा रहे हैं साज़ के
जो उन्हें वफ़ा की सूझी तो न ज़ीस्त ने वफ़ा की
अभी आ के वो न बैठे कि हम उठ गए जहाँ से

मिरा तजरबा है कि इस ज़िंदगी में
परेशानियाँ ही परेशानियाँ हैं
अजब तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी हम ने
जहाँ में रह के न कार-ए-जहाँ को पहचाना
ख़ुदा आबाद रक्खे ज़िंदगी को
हमारी ख़ामुशी को सह गई है
तेज़ हवा ने मुझ से पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो
उन पे क़ुर्बान हर ख़ुशी कर दी
ज़िंदगी नज़्र-ए-ज़िंदगी कर दी
यक़ीं मुझे भी है वो आएँगे ज़रूर मगर
वफ़ा करेगी कहाँ तक कि ज़िंदगी ही तो है
जब नहीं कुछ ए’तिबार-ए-ज़िंदगी
इस जहाँ का शाद क्या नाशाद क्या
कहीं कोई कमाँ ताने हुए है
कबूतर आड़े-तिरछे उड़ रहे हैं
किस ख़राबी से ज़िंदगी ‘फ़ानी’
इस जहान-ए-ख़राब में गुज़री
ज़िंदगी वादी ओ सहरा का सफ़र है क्यूँ है
इतनी वीरान मिरी राह-गुज़र है क्यूँ है
इश्क़ के मज़मूँ थे जिन में वो रिसाले क्या हुए
ऐ किताब-ए-ज़िंदगी तेरे हवाले क्या हुए
ये क्या कहूँ कि मुझ को कुछ गुनाह भी अज़ीज़ हैं
ये क्यूँ कहूँ कि ज़िंदगी सवाब के लिए नहीं
धूप की सख़्ती तो थी लेकिन ‘फ़राज़’
ज़िंदगी में फिर भी था साया बहुत
मिरी मोहब्बत में सारी दुनिया को इक खिलौना बना दिया है
ये ज़िंदगी बन गई है माँ और मुझ को बच्चा बना दिया है
हर नफ़स इक शराब का हो घूँट
ज़िंदगानी हराम है वर्ना
बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
मरने के ब’अद हाथ से मोती बिखर गए
ग़म-ओ-अलम से जो ताबीर की ख़ुशी मैं ने
बहुत क़रीब से देखी है ज़िंदगी मैं ने
लोग मरते भी हैं जीते भी हैं बेताब भी हैं
कौन सा सेहर तिरी चश्म-ए-इनायत में नहीं
लम्हा-ब-लम्हा दम-ब-दम आन-ब-आन रम-ब-रम
मैं भी गुज़िश्तगाँ में हूँ तू भी गुज़िश्तगाँ में है
यही है दौर-ए-ग़म-ए-आशिक़ी तो क्या होगा
इसी तरह से कटी ज़िंदगी तो क्या होगा
जी लगा रक्खा है यूँ ताबीर के औहाम से
ज़िंदगी क्या है मियाँ बस एक घर ख़्वाबों का है
हमारी ज़िंदगी कहने की हद तक ज़िंदगी है बस
ये शीराज़ा भी देखा जाए तो बरहम है बरसों से
आँखों में उस की मैं ने आख़िर मलाल देखा
किन किन बुलंदियों पर अपना ज़वाल देखा
वो कूदते उछलते रंगीन पैरहन थे
मासूम क़हक़हों में उड़ता गुलाल देखा
ज़िंदगी बस मुस्कुरा के रह गई
क्यों हमें नाहक़ रिझा के रह गई