150+ Jimmedari Shayari in Hindi 2025

ज़िंदगी तब बदलती है जब इंसान जिम्मेदारियों को समझने लगता है। हर रिश्ता, हर मकसद और हर सपना तभी पूरा होता है जब हम अपने फ़र्ज़ को समझें। Jimmedari Shayari in Hindi का यह खास संग्रह उन्हीं भावनाओं को लफ़्ज़ों में बयां करता है, जो हमें अपनी ज़िम्मेदारियों की गहराई का अहसास दिलाते हैं। यह शायरियाँ न सिर्फ़ सोच को जागरूक करती हैं, बल्कि दिल को भी छू जाती हैं। अगर आप भी शब्दों के ज़रिए जिम्मेदारी की अहमियत जताना चाहते हैं, तो यह कलेक्शन आपके लिए बिल्कुल सही है।
Jimmedari Shayari in Hindi
खुद को खुश रखना ये आपकी
एक बहुत बड़ी
गरीबी पर शायरी
जिम्मेदारी चेहरे की रंगत बदल देती हे
शोक से तो कोई शख्स बुजा
नहीं रहता।
अपनी जिम्मेदारियां से भागने
वाला व्यक्ति कभी श्रेस्ठ
नहीं बन सकता।

क्या खूब मज़बूरी हे गले में
लगे पेड़ो को
हरा भी रहना है और बढ़ना भी हे..
शोहरत बेशक चुपचाप गुजर जाये
कमख्त बदनामी बड़ा
शोर मचाती है…
छोटी भी है बड़ी भी है
ऐसी हज़ारो जिम्मेदारियां है
इसलिए तो हमें सिर्फ चाय से यारी है,
जब जिम्मेदारियां कंधो पे आती है
तब पता चलता हे
जिन्दगी क्या चीज है।
जब जिम्मेदारियां बड़ी होती है
तब कोई काम छोटा या
बड़ा नहीं होता।
क्या बेचकर खरीदे फुरसत तुजसे
ए जिंदगी
सब कुछ तो गिरवी पड़ा है।
जीवन बदलने वाली शायरी
बस मेरी ख़ुशीया में हिस्सेदारी
कर लेना तुम
सारे गमो की जिम्मेदारी में ले लूंगा।
दुनिया वालो ने बहुत कोशिश की
हमें रुलाने की
मगर उपर वाले ने जिम्मेदारी उठा रखी है
हमें हँसा ने के लिए…..
जिम्मेदारियां के आगे कई बार
सपने हार जाते है।
Rishte Zimmedari Shayari
लड़कियों अपनी ख्वाहिशे माँ
को ही बताती है
ससुराल में तो सिर्फ वो जिम्मेदारियां
निभाती है।
हमें अपने आप को नहीं अपनी
जिम्मेदारियों को गंभीरता
से लेना चाहिए।
जिम्मेदारियों को उठाने से क्यों
घभराते हो
जिंदगी में यही तो इंसान को
हुन्नरमंद बनाता है।
उदा देती है नींदे कुछ जिम्मेदारियां घर की
रात में जगने वाला हर कोई शख्स
आशिक नहीं होता।

गर्मी बहुत थी दोस्तों अपने भी
खून में पर
घर की जिम्मेदारियों ने झुकना
सिखा दिया।
दूनिया की सबसे बेहतर दवाई है
जिम्मेदारी
एक बार पि लीजिये साहब जिंदगी
भर थकने नहीं देगी।
रैक आपको विशेषाधिकार या
शक्ति नहीं देती
ये आपके ऊपर जिम्मेदारी डालती है
कुछ इसलिए भी ख्वाईशो को मार देता हूँ
माँ कहती है घर की जिम्मेदारी है
तुझ पर।
बहाने बनाना बद करो दो
जिम्मेदारी लेना शुरू करो।
जिन्हे अपनी जिम्मेदारी समझ आ जाती है
उन्हें जिंदगी में परेशानियां दूर तक
नजर नहीं आती है।
जिम्मेदारी लेना मुसिबत
की बात नहीं
बल्कि आज़ादी की घोषणा है।
मजबूरियाँ देर रात तक जगाती है
साहेब और
जिम्मेदारियां सुबह जल्दी उठाती हे।
विरासत में हमेशां जागीर और सोना चांदी
नहीं मिलते जनाब
कभी कभी जिम्मेदारियां भी मिल जाती है।
जिम्मेदारी के बोझ ने कुछ ऐसे दिन भी दिखाए हैं,
सालों तक त्योहार माँ ने एक ही साड़ी में मनाए हैं….
जिम्मेदारियों से अब बदन टूटने सा लगा है,
क्यूँ न ख्वाहिशों की अंगड़ाई ली जाए….
छोटी उम्र में भी अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं,
ज़िम्मेदारियाँ हों सर पे तो बच्चे बड़े हो जाते हैं।
क्या बेचकर हम खरेदें तुझे ऐं ज़िन्दगी,
सब कुछ तो गिरवी पड़ा है जिम्मेदारी के बाज़ार में
जिम्मेदारियों ने ख्वाहिशों के कान में ना जाने क्या फुसफुसाया,
कि ख्वाहिशें, झुर्रियां और जिम्मेदारियां जवाँ हो गयी….
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इक उम्र ख्वाहिशों के लिए भी नसीब हो,
ये वाली तो बस…. जिम्मेदारियों में ही गुज़र गई….
ख्वाहिशें जैसे कोई पतंग हों,
जिम्मेदारियां जब कंधे पर आती हैं
तो हम उन्हें हवा में भी उड़ान सीख जाते हैं
Jimmedari Shayari 2 Line Hindi
जिम्मेदारियों का बोझ पीठ पर पसीना दे जाएगा,
दिल तुम्हारा कभी मचलेगा जब बारिश में भीगने को….
ज़िन्दगी ने बहुत कौशीशें की मुझे रुलाने की,
मगर डमरूवाले ने जिम्मेदारी उठा रखी है मुझे हँसाने की….
ये जो जिम्मेदारियां हैं ना बड़ी बद्तमीज़ हैं,
ख़्वाहिशों को कैसे समझौतों में बदल देती हैं….
ज़रूरतें, जिम्मेदारियां, ख़्वाहिशें..
यूँ ही तीन हिस्सों में दिन गुज़र जाता है….

एक मल युद्ध चल रहा है मन मस्तिष्क में मेरे,
जिम्मेदारी ने धोबिपछाड़ दी है इच्छाओं को मेरे
एक मल युद्ध चल रहा है मन मस्तिष्क में मेरे,
जिम्मेदारी ने धोबिपछाड़ दी है इच्छाओं को मेरे
ज़रूरतें, जिम्मेदारियां, ख़्वाहिशें..
यूँ ही तीन हिस्सों में दिन गुज़र जाता है….
ये जो जिम्मेदारियां हैं ना बड़ी बद्तमीज़ हैं,
ख़्वाहिशों को कैसे समझौतों में बदल देती हैं….
ज़िन्दगी ने बहुत कौशीशें की मुझे रुलाने की,
मगर डमरूवाले ने जिम्मेदारी उठा रखी है मुझे हँसाने की….
जिम्मेदारियों का बोझ पीठ पर पसीना दे जाएगा,
दिल तुम्हारा कभी मचलेगा जब बारिश में भीगने को….
कंधा झुका हुआ है मेरा, लेकिन उम्र बड़ी नहीं है..
आज समझ में आया, जिम्मेदारी से बड़ा कोई बोझ नहीं है….
दिल कहता है मर जाऊँ तेरी जुदाई में,
पर जिम्मेदारियों ने मेरे हाथ जकड़ रखे हैं….
काम होता तो कब का ख़त्म हो चुका होता,
ये जिम्मेदारी ही है, जो बढ़ती ही जा रही है….
चिथड़े चिथड़े होकर रह गई सारी ख़्वाहिशें,
जिम्मेदारियों की ज़ोर आज़माईश के चलते….
समंदर से ख़ामोश रहकर उठाता हूँ जिम्मेदारी,
वरना शहर डुबोने का सलीका तो हम भी जानते हैं….
मोहब्बत करने वाले हज़ार मिल जायेंगे,
मानेंगे तब जब आप जिम्मेदारी निभाएंगे।
जश्न ए रोज़गार अभी ख़त्म भी नहीं हुआ था,
वज़्न-ए-जिम्मेदारी ने कंधा पकड़ लिया….
जबसे जिम्मेदारियों को मैंने अपना माना है,
मेरे कुछ शौक़ मुझे क़ातिल समझ कर बैठे हैं
जिम्मेदारी बढ़ने तो दो जनाब,
ख़्वाहिशें खुद बा खुद खुदकुशी कर लेंगी….
Ghar ki Jimmedari Shayari
ताउम्र लगे रहे जिम्मेदारी निभाने को,
बस अपना ख़्वाब ही पूरा न कर सके….
कसे रहती हैं जेबों को रोज़ नई ज़िम्मेदारियाँ उनकी,
मुमकिन नहीं कि उस पिता की कोई ख़्वाहिशें न हो….
न जाने क्यूँ बंध जाते हैं ज़िम्मेदारियों के बीच,
कभी अपनी ख़ुशियों के बारे में जब सोचना चाहते हैं हम….
पकड़ लो हाथ मेरा.. हर तरफ भीड़ बहुत सारी है,
मैं खो ना जाऊँ कहीं.. ये जिम्मेदारी तुम्हारी है

कुछ जिम्मेदारी कुछ सपनों ने जल्दी जगा दिया,
आज तो थोड़ी देर तक सोने का इरादा था मेरा
जिम्मेदारी चेहरे की रंगत बदल देती है,
शौक़ से तो कोई शख़्श बुझा बुझा नहीं रहता
बेफिक्री और जिम्मेदारी,
दोनों रात भर जगती रहीं….
किसी की ज़िन्दगी भाग रही थी,
किसी को ज़िन्दगी भगा रही थी
पंछी बनकर खूब उड़े हो अब
पिंजरे में रहने की बारी है
सिर्फ डॉक्टर और सरकार नहीं
सुरक्षा तुम्हारी खुद की भी जिम्मेदारी है
अभिलाषाएँ सारी मार देनी हैं
हमें जिम्मेदारियों की कतार लेनी है
फूलों ज़रा दूर दूर ही रहना
हमें काँटों की अभी बौछार लेनी है
ख्वाहिशें जैसे कोई पतंग हों,
जिम्मेदारियां जब कंधे पर आती हैं
तो हम उन्हें हवा में भी उड़ान सीख जाते हैं
जिम्मेदारी ही बहुत है
एक इन्सान को शैतान
और एक शैतान को इन्सान बनाने के लिए।
दिल मेरा भी रो रहा था, आँखें उसकी भी नम थीं,
बिछड़ते लम्हें बहुत थे बोझिल, टीस सीने में न कम थी,
मुझे डराती थी लोक-लाज.. उसके सिर जिम्मेदारी
अलग होना ही था मुनासिब, प्यार से ज़रूरत अहम थी
मुस्कान हमारी जिम्मेदारी है उनकी
मुस्कान हमारी उनकी कर्ज़दार भी तो है
वो हँसायें हमें और हम हँस ना पायें
मुस्कान हमारी उन पर निसार भी तो है
वो दर्द की रात बड़ी भारी थी
खाली था पेट और सर पर बारिश दोधारी थी
कहाँ जाता वो बचपन रेंग कर,
उम्र से बड़ी उसकी जिम्मेदारी थी….
पकड़ लो हाथ मेरा प्रभु,
जगत में भीड़ भारी है….
कही मै खो नही जाऊं,
जिम्मेदारी ये तुम्हारी है….
इक उम्र ख्वाहिशों के लिए भी नसीब हो,
ये वाली तो बस…. जिम्मेदारियों में ही गुज़र गई….
जिम्मेदारियों ने ख्वाहिशों के कान में ना जाने क्या फुसफुसाया,
कि ख्वाहिशें, झुर्रियां और जिम्मेदारियां जवाँ हो गयी….
क्या बेचकर हम खरेदें तुझे ऐं ज़िन्दगी,
सब कुछ तो गिरवी पड़ा है जिम्मेदारी के बाज़ार में