350+ Khubsurti Par Shayari in Hindi 2025

खूबसूरती सिर्फ़ चेहरे की नहीं होती, वो नज़रों में, बातों में और किसी के पूरे वजूद में झलकती है। जब कोई इंसान हमें इतना खास लगने लगे कि उसकी तारीफ़ लफ़्ज़ों से न हो सके, तब शायरी ही वो ज़रिया बनती है जिससे हम अपने जज़्बात बयां कर सकते हैं। Khubsurti Par Shayari in Hindi का यह शानदार संग्रह उन्हीं हसीन पलों और दिल से निकले अल्फ़ाज़ों को समर्पित है। चाहे महबूब की तारीफ़ करनी हो या किसी की मासूम मुस्कान को बयान करना हो—यहाँ हर एहसास के लिए शायरी मौजूद है।
Khubsurti Par Shayari in Hindi
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं
उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा
आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा
तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है

तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत
हम जहाँ में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं
न पूछो हुस्न की तारीफ़ हम से
मोहब्बत जिस से हो बस वो हसीं है
आइना देख के कहते हैं सँवरने वाले
आज बे-मौत मरेंगे मिरे मरने वाले
कौन सी जा है जहाँ जल्वा-ए-माशूक़ नहीं
शौक़-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर
ऐ सनम जिस ने तुझे चाँद सी सूरत दी है
उसी अल्लाह ने मुझ को भी मोहब्बत दी है
हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा
जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे
सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं
फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थे
पर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत
तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिन
ज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर
वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा
तो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं
इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का
क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम
इश्क़ का ज़ौक़-ए-नज़ारा मुफ़्त में बदनाम है
हुस्न ख़ुद बे-ताब है जल्वा दिखाने के लिए
तुम हुस्न की ख़ुद इक दुनिया हो शायद ये तुम्हें मालूम नहीं
महफ़िल में तुम्हारे आने से हर चीज़ पे नूर आ जाता है
उफ़ वो मरमर से तराशा हुआ शफ़्फ़ाफ़ बदन
देखने वाले उसे ताज-महल कहते हैं
जिस भी फ़नकार का शहकार हो तुम
उस ने सदियों तुम्हें सोचा होगा
क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है
खूबसूरती की तारीफ शायरी 4 लाइन
अजब तेरी है ऐ महबूब सूरत
नज़र से गिर गए सब ख़ूबसूरत
तुझे कौन जानता था मिरी दोस्ती से पहले
तिरा हुस्न कुछ नहीं था मिरी शाइरी से पहले
तुम्हारा हुस्न आराइश तुम्हारी सादगी ज़ेवर
तुम्हें कोई ज़रूरत ही नहीं बनने सँवरने की
रुख़-ए-रौशन के आगे शम्अ रख कर वो ये कहते हैं
उधर जाता है देखें या इधर परवाना आता है

जिस तरफ़ तू है उधर होंगी सभी की नज़रें
ईद के चाँद का दीदार बहाना ही सही
तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है
किसी कली किसी गुल में किसी चमन में नहीं
वो रंग है ही नहीं जो तिरे बदन में नहीं
कश्मीर की वादी में बे-पर्दा जो निकले हो
क्या आग लगाओगे बर्फ़ीली चटानों में
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी
न पाक होगा कभी हुस्न ओ इश्क़ का झगड़ा
वो क़िस्सा है ये कि जिस का कोई गवाह नहीं
ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
तिरे जमाल की दोशीज़गी निखर आई
बहुत दिनों से मिरे साथ थी मगर कल शाम
मुझे पता चला वो कितनी ख़ूबसूरत है
अच्छी सूरत भी क्या बुरी शय है
जिस ने डाली बुरी नज़र डाली
निगाह बर्क़ नहीं चेहरा आफ़्ताब नहीं
वो आदमी है मगर देखने की ताब नहीं
तुझ सा कोई जहान में नाज़ुक-बदन कहाँ
ये पंखुड़ी से होंट ये गुल सा बदन कहाँ
हुस्न को शर्मसार करना ही
इश्क़ का इंतिक़ाम होता है
You can also read Tareef Shayari in Hindi
हुस्न इक दिलरुबा हुकूमत है
इश्क़ इक क़ुदरती ग़ुलामी है
हुस्न आफ़त नहीं तो फिर क्या है
तू क़यामत नहीं तो फिर क्या है
हम अपना इश्क़ चमकाएँ तुम अपना हुस्न चमकाओ
कि हैराँ देख कर आलम हमें भी हो तुम्हें भी हो
अपनी ही तेग़-ए-अदा से आप घायल हो गया
चाँद ने पानी में देखा और पागल हो गया
अपने मरकज़ की तरफ़ माइल-ए-परवाज़ था हुस्न
भूलता ही नहीं आलम तिरी अंगड़ाई का
ज़माना हुस्न नज़ाकत बला जफ़ा शोख़ी
सिमट के आ गए सब आप की अदाओं में
चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है
चाँद के मुँह पर हैं छाईं तेरा मुखड़ा साफ़ है
तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़
लोग क्या सादा हैं सूरज को दिखाते हैं चराग़
मेरी निगाह-ए-शौक़ भी कुछ कम नहीं मगर
फिर भी तिरा शबाब तिरा ही शबाब है
जितना देखो उसे थकती नहीं आँखें वर्ना
ख़त्म हो जाता है हर हुस्न कहानी की तरह
हुस्न ये है कि दिलरुबा हो तुम
ऐब ये है कि बेवफ़ा हो तुम
Khubsurti Ki Tareef Shayari 2 Line
हुस्न यूँ इश्क़ से नाराज़ है अब
फूल ख़ुश्बू से ख़फ़ा हो जैसे
सितम-नवाज़ी-ए-पैहम है इश्क़ की फ़ितरत
फ़ुज़ूल हुस्न पे तोहमत लगाई जाती है
वो अपने हुस्न की ख़ैरात देने वाले हैं
तमाम जिस्म को कासा बना के चलना है

महकते फूल सितारे दमकता चाँद धनक
तिरे जमाल से कितनों ने इस्तिफ़ादा क्या
हुस्न हर हाल में है हुस्न परागंदा नक़ाब
कोई पर्दा है न चिलमन ये कोई क्या जाने
शम्अ से चाँद सिवा चाँद से ख़ुर्शीद सिवा
और इन सब से सिवा है रुख़-ए-अनवर तेरा
हुस्न बना जब बहती गंगा
इश्क़ हुआ काग़ज़ की नाव
एक ही अंजाम है ऐ दोस्त हुस्न ओ इश्क़ का
शम्अ भी बुझती है परवानों के जल जाने के ब’अद
हुस्न भी कम्बख़्त कब ख़ाली है सोज़-ए-इश्क़ से
शम्अ भी तो रात भर जलती है परवाने के साथ
आसमान और ज़मीं का है तफ़ावुत हर-चंद
ऐ सनम दूर ही से चाँद सा मुखड़ा दिखला
तेरे क़ुर्बान ‘क़मर’ मुँह सर-ए-गुलज़ार न खोल
सदक़े उस चाँद सी सूरत पे न हो जाए बहार
तुझ को शिकवा है कि उश्शाक़ ने बदनाम किया
सच तो ये है कि तिरा हुस्न है दुश्मन तेरा
हुस्न से अर्ज़-ए-शौक़ न करना हुस्न को ज़क पहुँचाना है
हम ने अर्ज़-ए-शौक़ न कर के हुस्न को ज़क पहुँचाई है
Ladki ki Khubsurti Par Shayari
हर हक़ीक़त है एक हुस्न ‘हफ़ीज़’
और हर हुस्न इक हक़ीक़त है
जल्वा-गर बज़्म-ए-हसीनाँ में हैं वो इस शान से
चाँद जैसे ऐ ‘क़मर’ तारों भरी महफ़िल में है
वो नहा कर ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ को जो बिखराने लगे
हुस्न के दरिया में पिन्हाँ साँप लहराने लगे
किस के चेहरे से उठ गया पर्दा
झिलमिलाए चराग़ महफ़िल के

कौन सानी शहर में इस मेरे मह-पारे का है
चाँद सी सूरत दुपट्टा सर पे यक-तारे का है
शोख़ी-ए-हुस्न के नज़्ज़ारे की ताक़त है कहाँ
तिफ़्ल-ए-नादाँ हूँ मैं बिजली से दहल जाता हूँ
अल्लाह-रे उन के हुस्न की मोजिज़-नुमाइयाँ
जिस बाम पर वो आएँ वही कोह-ए-तूर हो
किसी में ताब कहाँ थी कि देखता उन को
उठी नक़ाब तो हैरत नक़ाब हो के रही
अगर आ जाए पहलू में ‘क़मर’ वो माह-ए-कामिल भी
दो आलम जगमगा उट्ठेंगे दोहरी चाँदनी होगी
‘इश्क़ अब भी है वही महरम-ए-बे-गाना-नुमा
हुस्न यूँ लाख छुपे लाख नुमायाँ हो जाए
देखते हैं तो लहू जैसे रगें तोड़ता है
हम तो मर जाएँगे सीने से लगा कर उस को
मुझी को पर्दा-ए-हस्ती में दे रहा है फ़रेब
वो हुस्न जिस को किया जल्वा-आफ़रीं मैं ने
हुस्न ऐसा कि ज़माने में नहीं जिस की मिसाल
और जमाल ऐसा कि ढूँडा करे हर ख़्वाब-ओ-ख़याल
है साया चाँदनी और चाँद मुखड़ा
दुपट्टा आसमान-ए-आसमाँ है
हुस्न और इश्क़ हैं दोनों काफ़िर
दोनों में इक झगड़ा सा है
Khubsurti Shayari in Hindi
हुस्न के जल्वे नहीं मुहताज-ए-चश्म-ए-आरज़ू
शम्अ जलती है इजाज़त ले के परवाने से क्या
हम इतनी रौशनी में देख भी सकते नहीं उस को
सो अपने आप ही इस चाँद को गहनाए रखते हैं
इश्क़ है बे-गुदाज़ क्यूँ हुस्न है बे-नियाज़ क्यूँ
मेरी वफ़ा कहाँ गई उन की जफ़ा को क्या हुआ
हुस्न के हर जमाल में पिन्हाँ
मेरी रानाई-ए-ख़याल भी है

जी चाहता है साने-ए-क़ुदरत पे हूँ निसार
बुत को बिठा के सामने याद-ए-ख़ुदा करूँ
वो लाला-बदन झील में उतरा नहीं वर्ना
शो’ले मुतवातिर इसी पानी से निकलते
वो तग़ाफ़ुल-शिआर क्या जाने
इश्क़ तो हुस्न की ज़रूरत है
वाह क्या इस गुल-बदन का शोख़ है रंग-ए-बदन
जामा-ए-आबी अगर पहना गुलाबी हो गया
तमाम मज़हर-ए-फ़ितरत तिरे ग़ज़ल-ख़्वाँ हैं
ये चाँदनी भी तिरे जिस्म का क़सीदा है
हुस्न ओ इश्क़ की लाग में अक्सर छेड़ उधर से होती है
शम्अ की शोअ’ला जब लहराई उड़ के चला परवाना भी
अल्लाह-रे सनम ये तिरी ख़ुद-नुमाईयाँ
इस हुस्न-ए-चंद-रोज़ा पे इतना ग़ुरूर हो
निस्बत फिर उस से क्या मह-ए-दाग़ी को दीजिए
सारे बदन में जिस के न हो एक तिल कहीं
Khubsurti Shayari
वो सुब्ह को इस डर से नहीं बाम पर आता
नामा न कोई बाँध दे सूरज की किरन में
हुस्न और इश्क़ का मज़कूर न होवे जब तक
मुझ को भाता नहीं सुनना किसी अफ़्साने का
देखते हैं तो लहू जैसे रगें तोड़ता है
हम तो मर जाएँगे सीने से लगा कर उस को
हुस्न आईना फ़ाश करता है
ऐसे दुश्मन को संगसार करो
दाग़-ए-जिगर का अपने अहवाल क्या सुनाऊँ
भरते हैं उस के आगे शम्-ओ-चराग़ पानी
हुस्न होता है किसी शय का कोई अपना ही
और फिर देखने वाले की नज़र होती है
कोह संगीन हक़ाएक़ था जहाँ
हुस्न का ख़्वाब तराशा हम ने
वो ख़ुश-कलाम है ऐसा कि उस के पास हमें
तवील रहना भी लगता है मुख़्तसर रहना
ये दिलबरी ये नाज़ ये अंदाज़ ये जमाल
इंसाँ करे अगर न तिरी चाह क्या करे
इस दिल में तिरे हुस्न की वो जल्वागरी है
जो देखे है कहता है कि शीशे में परी है
तारीफ़ तेरे हुस्न की आती है ग़ैब से
मेरे क़लम के साथ तो यकसर नहीं हूँ मैं
चराग़ चाँद शफ़क़ शाम फूल झील सबा
चुराईं सब ने ही कुछ कुछ शबाहतें तेरी
रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम
दहका हुआ है आतिश-ए-गुल से चमन तमाम
क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर
जलता हूँ अपनी ताक़त-ए-दीदार देख कर
देखूँ तिरे हाथों को तो लगता है तिरे हाथ
मंदिर में फ़क़त दीप जलाने के लिए हैं
हुस्न सब को ख़ुदा नहीं देता
हर किसी की नज़र नहीं होती
ख़ूब-रू हैं सैकड़ों लेकिन नहीं तेरा जवाब
दिलरुबाई में अदा में नाज़ में अंदाज़ में
सूरत तो इब्तिदा से तिरी ला-जवाब थी
नाज़-ओ-अदा ने और तरह-दार कर दिया
Teri Khubsurti Shayari
हम इश्क़ में हैं फ़र्द तो तुम हुस्न में यकता
हम सा भी नहीं एक जो तुम सा नहीं कोई
वो चाँदनी में फिरते हैं घर घर ये शोर है
निकला है आफ़्ताब शब-ए-माहताब में
मुश्किल बहुत पड़ेगी बराबर की चोट है
आईना देखिएगा ज़रा देख-भाल के
चाँद सी शक्ल जो अल्लाह ने दी थी तुम को
काश रौशन मिरी क़िस्मत का सितारा करते
गूँध के गोया पत्ती गुल की वो तरकीब बनाई है
रंग बदन का तब देखो जब चोली भीगे पसीने में
हुस्न को भी कहाँ नसीब ‘जिगर’
वो जो इक शय मिरी निगाह में है
आइना देख कर वो ये समझे
मिल गया हुस्न-ए-बे-मिसाल हमें
पूछो न अरक़ रुख़्सारों से रंगीनी-ए-हुस्न को बढ़ने दो
सुनते हैं कि शबनम के क़तरे फूलों को निखारा करते हैं
आप क्या आए कि रुख़्सत सब अंधेरे हो गए
इस क़दर घर में कभी भी रौशनी देखी न थी
अफ़्सुर्दगी भी हुस्न है ताबिंदगी भी हुस्न
हम को ख़िज़ाँ ने तुम को सँवारा बहार ने
न देखना कभी आईना भूल कर देखो
तुम्हारे हुस्न का पैदा जवाब कर देगा
ख़ुदा के डर से हम तुम को ख़ुदा तो कह नहीं सकते
मगर लुत्फ़-ए-ख़ुदा क़हर-ए-ख़ुदा शान-ए-ख़ुदा तुम हो
Khubsurti Shayari For Girl
हमेशा आग के दरिया में इश्क़ क्यूँ उतरे
कभी तो हुस्न को ग़र्क़-ए-अज़ाब होना था
अल्लाह-री जिस्म-ए-यार की ख़ूबी कि ख़ुद-ब-ख़ुद
रंगीनियों में डूब गया पैरहन तमाम
चाँद मशरिक़ से निकलता नहीं देखा मैं ने
तुझ को देखा है तो तुझ सा नहीं देखा मैं ने
अल्लाह अल्लाह हुस्न की ये पर्दा-दारी देखिए
भेद जिस ने खोलना चाहा वो दीवाना हुआ
चाँदनी रातों में चिल्लाता फिरा
चाँद सी जिस ने वो सूरत देख ली
दिल के दो हिस्से जो कर डाले थे हुस्न-ओ-इश्क़ ने
एक सहरा बन गया और एक गुलशन हो गया
इक नौ-बहार-ए-नाज़ को ताके है फिर निगाह
चेहरा फ़रोग़-ए-मय से गुलिस्ताँ किए हुए
रौशनी के लिए दिल जलाना पड़ा
कैसी ज़ुल्मत बढ़ी तेरे जाने के बअ’द
फूलों की सेज पर ज़रा आराम क्या किया
उस गुल-बदन पे नक़्श उठ आए गुलाब के
बड़ा वसीअ है उस के जमाल का मंज़र
वो आईने में तो बस मुख़्तसर सा रहता है
तफ़रीक़ हुस्न-ओ-इश्क़ के अंदाज़ में न हो
लफ़्ज़ों में फ़र्क़ हो मगर आवाज़ में न हो
ये खुला जिस्म खुले बाल ये हल्के मल्बूस
तुम नई सुब्ह का आग़ाज़ करोगे शायद
आओ हुस्न-ए-यार की बातें करें
ज़ुल्फ़ की रुख़्सार की बातें करें
फूल महकेंगे यूँही चाँद यूँही चमकेगा
तेरे होते हुए मंज़र को हसीं रहना है
अच्छी सूरत नज़र आते ही मचल जाता है
किसी आफ़त में न डाले दिल-ए-नाशाद मुझे
हम न कहते थे कि नक़्श उस का नहीं नक़्क़ाश सहल
चाँद सारा लग गया तब नीम-रुख़ सूरत हुई
शोख़ी से ठहरती नहीं क़ातिल की नज़र आज
ये बर्क़-ए-बला देखिए गिरती है किधर आज
अब तो तेरे हुस्न की हर अंजुमन में धूम है
जिस ने मेरा हाल देखा तेरा दीवाना हुआ
ख़ुदा करे कि तिरे हुस्न को ज़वाल न हो
मैं चाहता हूँ तुझे यूँही उम्र-भर देखूँ
अबरू ने मिज़ा ने निगह-ए-यार ने यारो
बे-रुत्बा किया तेग़ को ख़ंजर को सिनाँ को
आस्तीं उस ने जो कुहनी तक चढ़ाई वक़्त-ए-सुब्ह
आ रही सारे बदन की बे-हिजाबी हाथ में
हैं लाज़िम-ओ-मलज़ूम बहम हुस्न ओ मोहब्बत
हम होते न तालिब जो वो मतलूब न होता
हुस्न को दुनिया की आँखों से न देख
अपनी इक तर्ज़-ए-नज़र ईजाद कर
वो चेहरा हाथ में ले कर किताब की सूरत
हर एक लफ़्ज़ हर इक नक़्श की अदा देखूँ
शोरिश-ए-इश्क़ में है हुस्न बराबर का शरीक
सोच कर जुर्म-ए-तमन्ना की सज़ा दो हम को
हुस्न है काफ़िर बनाने के लिए
इश्क़ है ईमान लाने के लिए
ये हुस्न-ए-दिल-फ़रेब ये आलम शबाब का
गोया छलक रहा है पियाला शराब का