200+ 2 Line Ishq Shayari In Hindi 2025

इश्क़ वो ख़ूबसूरत एहसास है जिसे शब्दों में बयां करना आसान नहीं होता। मगर 2 Line Ishq Shayari में वो जादू है जो दिल की गहराइयों तक उतर जाता है। जब मोहब्बत दिल से हो, तो हर लफ्ज़ एक दास्तां बन जाता है। इस दो लाइन की शायरी में आपको मिलेंगी वो बातें जो शायद आप कहना तो चाहते हैं, लेकिन लफ़्ज़ नहीं मिलते। चाहे प्यार हो, तड़प हो या यादें, यहां हर जज़्बात को शायरी की शक्ल में महसूस किया जा सकता है। इन पंक्तियों को पढ़ें, शेयर करें और अपने इश्क़ को लफ्ज़ों में बयां करें।
2 Line Ishq Shayari in Hindi
हुस्न इक दिलरुबा हुकूमत है
इश्क़ इक क़ुदरती ग़ुलामी है
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ
अब तो ये बातें भी ऐ दिल हो गईं आई गई
जज़्बा-ए-इश्क़ सलामत है तो इंशा-अल्लाह
कच्चे धागे से चले आएँगे सरकार बंधे
इक रोज़ खेल खेल में हम उस के हो गए
और फिर तमाम उम्र किसी के नहीं हुए

माँग लूँ तुझ से तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए
सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है
इश्क़ में क्या नुक़सान नफ़अ है हम को क्या समझाते हो
हम ने सारी उम्र ही यारो दिल का कारोबार किया
बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल
कहते हैं जिस को इश्क़ ख़लल है दिमाग़ का
उस के बारे में बहुत सोचता हूँ
मुझ से बिछड़ा तो किधर जाएगा
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
क्या मिला तुम को मिरे इश्क़ का चर्चा कर के
तुम भी रुस्वा हुए आख़िर मुझे रुस्वा कर के
ये मोहब्बत भी एक नेकी है
इस को दरिया में डाल आते हैं
मुझे तो क़ैद-ए-मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन
किसी ने मुझ को गिरफ़्तार कर के छोड़ दिया
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
लोग बे-वज्ह उदासी का सबब पूछेंगे
‘सहर’ अब होगा मेरा ज़िक्र भी रौशन-दिमाग़ों में
मोहब्बत नाम की इक रस्म-ए-बेजा छोड़ दी मैं ने
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हमारे इश्क़ में रुस्वा हुए तुम
मगर हम तो तमाशा हो गए हैं
मोहब्बत की तो कोई हद, कोई सरहद नहीं होती
हमारे दरमियाँ ये फ़ासले, कैसे निकल आए
जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं
कैसे नादान हैं शो’लों को हवा देते हैं
तुम नहीं पास कोई पास नहीं
अब मुझे ज़िंदगी की आस नहीं
Ishq Shayari 2 Line
इक शक्ल हमें फिर भाई है इक सूरत दिल में समाई है
हम आज बहुत सरशार सही पर अगला मोड़ जुदाई है
चर्चा हमारा इश्क़ ने क्यूँ जा-ब-जा किया
दिल उस को दे दिया तो भला क्या बुरा किया
तुझ से मिरा मुआमला होता ब-राह-ए-रास्त
ये इश्क़ दरमियान न होता तो ठीक था
रहेगा साथ तिरा प्यार ज़िंदगी बन कर
ये और बात मिरी ज़िंदगी वफ़ा न करे

तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जब से
कोई भी लफ़्ज़ लिखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
तुम से मिल कर इमली मीठी लगती है
तुम से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है
मोहब्बत एक दम दुख का मुदावा कर नहीं देती
ये तितली बैठती है ज़ख़्म पर आहिस्ता आहिस्ता
इस तअल्लुक़ में नहीं मुमकिन तलाक़
ये मोहब्बत है कोई शादी नहीं
इस मरज़ से कोई बचा भी है
चारागर इश्क़ की दवा भी है
इक खिलौना टूट जाएगा नया मिल जाएगा
मैं नहीं तो कोई तुझ को दूसरा मिल जाएगा
एक चेहरा है जो आँखों में बसा रहता है
इक तसव्वुर है जो तन्हा नहीं होने देता
जब कभी हम ने किया इश्क़ पशेमान हुए
ज़िंदगी है तो अभी और पशेमाँ होंगे
वो शख़्स जिस को दिल ओ जाँ से बढ़ के चाहा था
बिछड़ गया तो ब-ज़ाहिर कोई मलाल नहीं
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के
ये मेरे इश्क़ की मजबूरियाँ मआज़-अल्लाह
तुम्हारा राज़ तुम्हीं से छुपा रहा हूँ मैं
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा
मोहब्बत में कठिन रस्ते बहुत आसान लगते थे
पहाड़ों पर सुहुलत से चढ़ा करते थे हम दोनों
तमाशा देख रहे थे जो डूबने का मिरे
मिरी तलाश में निकले हैं कश्तियाँ ले कर
वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मिरे हरजाई की
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ
क्यूँ हिज्र के शिकवे करता है क्यूँ दर्द के रोने रोता है
अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है
जो हो सका न मिरा उस को भूल जाऊँ मैं
पराई आग में क्यूँ उँगलियाँ जलाऊँ मैं
इश्क़ है इश्क़ करने वालों को
कैसा कैसा बहम क्या है इश्क़
हाँ कुछ भी तो देरीना मोहब्बत का भरम रख
दिल से न आ दुनिया को दिखाने के लिए आ
मैं चाहता हूँ कि तुम ही मुझे इजाज़त दो
तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे
Ishq Shayari 2 Line in Hindi
न जाने कैसा समुंदर है इश्क़ का जिस में
किसी को देखा नहीं डूब के उभरते हुए
मोहब्बत का उन को यक़ीं आ चला है
हक़ीक़त बने जा रहे हैं फ़साने
सब्र बिन और कुछ न लो हमराह
कूचा-ए-इश्क़ तंग है यारो
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
जो दिल रखते हैं सीने में वो काफ़िर हो नहीं सकते
मोहब्बत दीन होती है वफ़ा ईमान होती है
इश्क़ के मराहिल में वो भी वक़्त आता है
आफ़तें बरसती हैं दिल सुकून पाता है
यूँ मोहब्बत से जो चाहे कोई अपना कर ले
जो हमारा न हो उस के कहीं हम होते हैं
ज़मीं से उट्ठी है या चर्ख़ पर से उतरी है
ये आग इश्क़ की या-रब किधर से उतरी है
ग़म मुझे ना-तवान रखता है
इश्क़ भी इक निशान रखता है
सुख़न के चाक में पिन्हाँ तुम्हारी चाहत है
वगरना कूज़ा-गरी की किसे ज़रूरत है
हुस्न ओ इश्क़ की लाग में अक्सर छेड़ उधर से होती है
शम्अ की शोअ’ला जब लहराई उड़ के चला परवाना भी
इश्क़ में क़द्र-ए-ख़स्तगी की उम्मीद
ऐ ‘जिगर’ होश की दवा कीजिए
नहीं बचता है बीमार-ए-मोहब्बत
सुना है हम ने ‘गोया’ की ज़बानी
ग़म-ए-इश्क़ ही ने काटी ग़म-ए-इश्क़ की मुसीबत
इसी मौज ने डुबोया इसी मौज ने उभारा
मिरा दिल टूट जाने पर मियाँ हैरत भला कैसी
अगर रस्ता बदल जाए सितारे टूट जाते हैं
जी चाहेगा जिस को उसे चाहा न करेंगे
हम इश्क़ ओ हवस को कभी यकजा न करेंगे
इश्क़ बहरूप था जो चश्म ओ दिल ओ सर में रहा
कहीं हैरत कहीं वहशत कहीं सौदा बन कर
इश्क़ उस का आन कर यक-बारगी सब ले गया
जान से आराम सर से होश और चश्मों से ख़्वाब
मोहब्बत लफ़्ज़ तो सादा सा है लेकिन ‘अज़ीज़’ इस को
मता-ए-दिल समझते थे मता-ए-दिल समझते हैं
उर्यां हरारत-ए-तप-ए-फ़ुर्क़त से मैं रहा
हर बार मेरे जिस्म की पोशाक जल गई
Heart Touching 2 line Ishq Shayari
इश्क़ की सफ़ मनीं नमाज़ी सब
‘आबरू’ को इमाम करते हैं
हुस्न और इश्क़ का मज़कूर न होवे जब तक
मुझ को भाता नहीं सुनना किसी अफ़्साने का
इश्क़ इक ऐसी हवेली है कि जिस से बाहर
कोई दरवाज़ा खुले और न दरीचा निकले
मुझ को मरने न दिया शे’र उतारे मुझ पर
इश्क़ ने बस ये मिरे साथ रिआ’यत की थी
सब्र बिन और कुछ न लो हमराह
कूचा-ए-इश्क़ तंग है यारो
ज़ियान-ए-दिल ही इस बाज़ार में सूद-ए-मोहब्बत है
यहाँ है फ़ाएदा ख़ुद को अगर नुक़सान में रख लें

मेरा इश्क़ तो ख़ैर मिरी महरूमी का पर्वर्दा था
क्या मालूम था वो भी देगा मेरा इतना टूट के साथ
जी चाहता है उस बुत-ए-काफ़िर के इश्क़ में
तस्बीह तोड़ डालिए ज़ुन्नार देख कर
इश्क़ वजह-ए-ज़िंदगी भी दुश्मन-ए-जानी भी है
ये नदी पायाब भी है और तूफ़ानी भी है
ख़्वाहिश-ए-सूद थी सौदे में मोहब्बत के वले
सर-ब-सर इस में ज़ियाँ था मुझे मालूम न था
मिस्ल-ए-मजनूँ जो परेशाँ है बयाबान में आज
क्यूँ दिला कौन समाया है तिरे ध्यान में आज
वफ़ा परछाईं की अंधी परस्तिश
मोहब्बत नाम है महरूमियों का
इश्क़ में कूदो अगर शौक़ है मरने का बहुत
इस से गहरी कोई खाई मुझे मालूम नहीं
इश्क़-बाज़ी बुल-हवस बाज़ी न जान
इश्क़ है ये ख़ाना-ए-ख़ाला नहीं
इश्क़ से है फ़रोग़-ए-रंग-ए-जहाँ
इब्तिदा हम हैं इंतिहा हैं हम
क्या जज़्ब-ए-इश्क़ मुझ से ज़ियादा था ग़ैर में
उस का हबीब उस से जुदा क्यूँ नहीं हुआ
इश्क़ के फंदे से बचिए ऐ ‘हक़ीर’-ए-ख़स्ता-दिल
इस का है आग़ाज़ शीरीं और है अंजाम तल्ख़
था बड़ा मअरका मोहब्बत का
सर किया मैं ने दे के सर अपना
या दैर है या काबा है या कू-ए-बुताँ है
ऐ इश्क़ तिरी फ़ितरत-ए-आज़ाद कहाँ है
इश्क़ की राह में मैं मस्त की तरह
कुछ नहीं देखता बुलंद और पस्त
रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा भी कूचा-ओ-बाज़ार हो जैसे
कभी जो हो नहीं पाता वो सौदा याद आता है
सर दीजे राह-ए-इश्क़ में पर मुँह न मोड़िए
पत्थर की सी लकीर है ये कोह-कन की बात
तू मुझ से दूर चली जाए ऐन मुमकिन है
मगर वो अक्स जो मेरी नज़र में रहता है
जादा-ए-राह-ए-मोहब्बत की दराज़ी मत पूछ
मंज़िल-ए-शौक़ का हर ज़र्रा बयाबाँ निकला
हर इक मकाँ में गुज़रगाह-ए-ख़्वाब है लेकिन
अगर नहीं तो नहीं इश्क़ के जनाब में ख़्वाब
इश्क़ पर इख़्तियार है किस का
फ़ाएदा पेश-ओ-पस में कुछ भी नहीं
ये दाग़-ए-इश्क़ जो मिटता भी है चमकता भी है
ये ज़ख़्म है कि निशाँ है मुझे नहीं मालूम
न हों ख़्वाहिशें न गिला कोई न जफ़ा कोई
न सवाल अह्द-ए-वफ़ा का हो वही इश्क़ है
ऐ इश्क़ तू हर-चंद मिरा दुश्मन-ए-जाँ हो
मरने का नहीं नाम का मैं अपने ‘बक़ा’ हूँ
अभी वो कमसिन उभर रहा है अभी है उस पर शबाब आधा
अभी जिगर में ख़लिश है आधी अभी है मुझ पर इताब आधा
आह वो आँखें रवाँ दरिया हैं और ऐसा कि बस
डूब कर अच्छे-भले तैराक हो जाते हैं हम
कितनी बे-रंग ज़िंदगी है मिरी
‘इश्क़ के रंग यार भर दो ना
ये इश्क़ पेशगी दार-ओ-रसन के हंगामे
ये रंग ज़िंदा सलामत है यानी हम अभी हैं