80+ Udas Zindagi Shayari 2 Line | उदास जिंदगी शायरी 2025

Udas Zindagi Shayari

ज़िंदगी हमेशा खुशियों से भरी नहीं होती, कभी-कभी ग़म और उदासी भी उसका हिस्सा बन जाते हैं। ऐसे पलों में दिल की बात जुबां पर लाना आसान नहीं होता, लेकिन शायरी उन भावनाओं को अल्फ़ाज़ दे देती है। Udas Zindagi Shayari उसी दर्द और अकेलेपन को बयां करती है जिसे हर कोई कभी न कभी महसूस करता है। इस लेख में आपको ऐसी शायरियां मिलेंगी जो उदास पलों में आपके दिल की आवाज़ बन जाएंगी और भावनाओं को और गहराई से छू लेंगी। इन्हें पढ़कर दिल को थोड़ी राहत और सुकून जरूर मिलेगा।

Udas Zindagi Shayari

कुछ लोगों की जिंदगी में
खुशियां लिखी ही नही होती
शायद मैं भी उनमें से एक हूं…!

जो भी मिले खिलाड़ी ही निकले
कोई दिल से खेल गया तो कोई जिंदगी से…!

Udas Zindagi Shayari 2 Line
Udas Zindagi Shayari 2 Line

ज़िंदगी इतना भी मत सीखा
अब थोड़ा साथ भी दे दे…!

ख्वाहिशो को आप कितना ही पूरा कर लो
ज़िंदगी पूरी हो जाएगी मगर ये पूरी नहीं होंगी…!

अक्सर उन लोगो के दिल टूटे होते है
जो सबका दिल रखने की कोशिश करते है…!

उदास तो बहुत रहे मगर कभी जा़हिर ना किया
सब ठीक है बस इसी लफ्ज़ ने सब संभाल लिया…!

कुछ अधूरापन था जो पूरा हुआ ही नही
कोई मेरा होकर भी मेरा हुआ नही…!

वफ़ा की उम्मीद करूं भी तो किससे करूं
मुझे तो खुद की जिंदगी भी बेवफ़ा लगती है…!

मेरी आँखों में छुपी उदासी को कभी
महसूस तो कर हम वो हैं जो सब को
हंसा कर रात भर रोते है…!

चल जिंदगी नई शुरुआत करते हैं
जो हमारे बिना खुश हैं उन्हें आजाद करते हैं…!

जिसने भी मेरी किस्मत लिखी है
अधूरी लिखी है आजकल उसी को
पूरा करने में लगा हुआ हूँ…!

सोचा था एक घर बनाकर बैठूंगा सुकून से
लेकिन घर की ज़रूरतो ने मुसाफिर बना दिया…!

उदास ज़िन्दगी उदास वक्त उदास मौसम
कितनी चीज़ों पे इल्ज़ाम लग जाता है
तेरे बात न करने से….!

इतनी आसानी से ना हारूंगा ये जिंदगी
अभी तो मैंने खेलना शुरू किया
अभी असली खेल बाकी है…!

कोई तड़पता रहा हमें पाने के लिए
तो कोई पाकर भी औरों को खोज रहा है…!

जिससे उम्मीद हो अगर वही दिल दुखा दे
तो पूरी दुनिया से भरोसा उठ जाता है…!

चाकू की धार से अधिक मोटा कुछ भी
खुशी को उदासी से अलग नहीं कर सकता…!

उदास जिंदगी शायरी 2 Line

दिल आज तकलीफ़ में है
और तकलीफ़ देने वाला दिल में…!

मैं जिंदा हूं बस यही दुख मुझे
एक दिन मार डालेगा…!

धोखे से डरता हूँ साहब इसलिए
अकेला ही रहना पसंद करता हूँ…!

लोगों से क्या शिकायत करना
घाव तो अपने लोगों के चुभते हैं…!

अकेले ही गुजरती है जिंदगी
लोग तसल्लियाँ तो देते है पर साथ नहीं…!

You can also read Sad Shayari 2 Line

मेरी तो जिंदगी ही बोझ है
कौन कहता है मौज है…!

अकेला भी इस तरह पड़ गया हूं
कि मेरा हौसला भी साथ न दे रहा है…!

अब अकेला नहीं रहा मै यारो
मेर साथ अब मेरी तन्हाई भी है…!

Bahut Udas Zindagi Shayari

बचपन में दूसरों की कहानी सुनकर सोते थे
आज खुद की कहानी सोच के रात में रोते हैं…!

कभी कभी बहुत सी बातें करनी होती हैं,
मगर सुनने वाला कोई नही होता…!

Bahut Udas Zindagi Shayari
Bahut Udas Zindagi Shayari

जिंदगी जी रहे हे बिना किसीके साथ के
बिना किसी की याद मे…!

कौन है जिसे कमी नहीं है
आसमान के पास भी जमीन नहीं है…!

हिम्मत नहीं इतनी की
दस्ताने ज़िन्दगी सुना सकें अपनी
मुख़्तसर सी सुनो
जिसने भी दिल तोड़ा जी भर के तोड़ा…!

कितना पागल है ये दिल कैसे समझाऊं इसे
कि जिसे तू खोना नही चाहता
वो तेरा होना नही चाहता…!

झुकने से रिश्ता गहरा हो तो झुक जाओ
पर हर बार आपको ही झुकना पड़े तो रुक जाओ…!

क्या थोड़ा भी अजीब नहीं लगा तुझे
बेगुनाह था फिर भी सजा दी मुझे…!

उदास जिंदगी शायरी

सब कुछ देकर भी तू ऐ जिन्दगी
कुछ ना कुछ कमी रख ही देती है..!

उदास लोगो की मुस्कुराहट
सबसे खूबसूरत होती है…!

जिसको आज मुझमे हजारो गलतिया नजर आती हैं
कभी उसी ने कहा था तुम जैसे भी हो मेरे हो…!

चिंता मत कर बहुत दूर चला जाउंगा तुझसे
वैसे भी बहुत परेशान है तू मुझसे…!

ना कर जिद अपनी हद में रह ये दिल
वो बड़े लोग हैं अपनी मर्जी से याद करते हैं…!

काश तेरी याद़ों का खज़ाना बेच पाते हम
हमारी भी गिनती आज अमीरों में होती…!

अपनो ने अकेला इतना कर दिया
कि अब अकेलापन ही अपना लगता है…!

ना जाने कौन से मोड़ पर ले आयी है ज़िन्दगी
ना रास्ता है ना मंजिल है बस जिए जा रहे हैं…!

परेशान जिंदगी शायरी

अकेले रहने में और
अकेले हो जाने में बहुत फर्क होता है…!

काश आज मेरी सांस रुक जाए सूना है
सांस रुक जाए तो रूठे हुए भी देखने आते है…!

परेशान जिंदगी शायरी
परेशान जिंदगी शायरी

टूट कर मत चाहना किसी को…
जान जान कहने वाले अक्सर बेजान कर देते हैं…!

जो हाथ की लकीरों में था ही नही
जिंदगी उसी से टकरा गई…!

मैंने बहुत कुछ बताना चाहा
पर वक्त के आगे मेरा जोर नहीं चला…!

हकीकत कुछ और ही होती है
हर गुमसुम इन्सान पागल नहीं होता…!

जिसकी क़िस्मत में लिखा हो रोना
वो मुस्कुरा भी दे तो आंसू निकल जाते हैं…!

मेरी जिंदगी मुझे ऐसे
मोड़ पर लाकर खड़ा कर चुकी है
कि मजबूरी है जीने की और चाहत है मरने की…!

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए

शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं

दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो

ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया

हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया

तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही
तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ

ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला

कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया

सैड शायरी हिंदी

मैं हूँ दिल है तन्हाई है
तुम भी होते अच्छा होता

हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं
दिल हमेशा उदास रहता है

कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया

सैड शायरी हिंदी
सैड शायरी हिंदी

चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ

कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी

अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे

न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं

किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में
मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं

हमारे घर की दीवारों पे ‘नासिर’
उदासी बाल खोले सो रही है

जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया

वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले
मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं

हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल
उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती

हम ग़म-ज़दा हैं लाएँ कहाँ से ख़ुशी के गीत
देंगे वही जो पाएँगे इस ज़िंदगी से हम

अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब
अभी हयात का माहौल ख़ुश-गवार नहीं

उस ने पूछा था क्या हाल है
और मैं सोचता रह गया

हम को न मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल
ऐ ज़िंदगी वगर्ना ज़माने में क्या न था

जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का ‘शकील’
मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया

मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं
फिर उस के बाद गहरी नींद सोना चाहता हूँ मैं

मुझ से नफ़रत है अगर उस को तो इज़हार करे
कब मैं कहता हूँ मुझे प्यार ही करता जाए

कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दिया
उदासी की मेहनत ठिकाने लगी

ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास
सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए

इश्क़ में कौन बता सकता है
किस ने किस से सच बोला है

रोने लगता हूँ मोहब्बत में तो कहता है कोई
क्या तिरे अश्कों से ये जंगल हरा हो जाएगा

दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जाएँगे ऐसा लगता है

आज तो जैसे दिन के साथ दिल भी ग़ुरूब हो गया
शाम की चाय भी गई मौत के डर के साथ साथ

उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ
अब तो ये बातें भी ऐ दिल हो गईं आई गई

वैसे तो सभी ने मुझे बदनाम किया है
तू भी कोई इल्ज़ाम लगाने के लिए आ

कोई तो ऐसा घर होता जहाँ से प्यार मिल जाता
वही बेगाने चेहरे हैं जहाँ जाएँ जिधर जाएँ

मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न पूछिए
अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम

इस डूबते सूरज से तो उम्मीद ही क्या थी
हँस हँस के सितारों ने भी दिल तोड़ दिया है

ज़ख़्म ही तेरा मुक़द्दर हैं दिल तुझ को कौन सँभालेगा
ऐ मेरे बचपन के साथी मेरे साथ ही मर जाना

सुपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों में
मैं अपने घर के अँधेरों को लौट आऊँगी

ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा
वगर्ना ज़िंदगी भर को रुला दिया होता

उठते नहीं हैं अब तो दुआ के लिए भी हाथ
किस दर्जा ना-उमीद हैं परवरदिगार से

आस क्या अब तो उमीद-ए-नाउमीदी भी नहीं
कौन दे मुझ को तसल्ली कौन बहलाए मुझे

ये और बात कि चाहत के ज़ख़्म गहरे हैं
तुझे भुलाने की कोशिश तो वर्ना की है बहुत

ये ज़िंदगी जो पुकारे तो शक सा होता है
कहीं अभी तो मुझे ख़ुद-कुशी नहीं करनी

इस जुदाई में तुम अंदर से बिखर जाओगे
किसी मा’ज़ूर को देखोगे तो याद आऊँगा

सब सितारे दिलासा देते हैं
चाँद रातों को चीख़ता है बहुत

अब तो कुछ भी याद नहीं है
हम ने तुम को चाहा होगा

दिन किसी तरह से कट जाएगा सड़कों पे ‘शफ़क़’
शाम फिर आएगी हम शाम से घबराएँगे

तुम मिटा सकते नहीं दिल से मिरा नाम कभी
फिर किताबों से मिटाने की ज़रूरत क्या है

देखते हैं बे-नियाज़ाना गुज़र सकते नहीं
कितने जीते इस लिए होंगे कि मर सकते नहीं

दर्द-ए-दिल क्या बयाँ करूँ ‘रश्की’
उस को कब ए’तिबार आता है

किसी ने फिर से लगाई सदा उदासी की
पलट के आने लगी है फ़ज़ा उदासी की

शाम-ए-हिज्राँ भी इक क़यामत थी
आप आए तो मुझ को याद आया

ज़मीन-ए-दिल पे मोहब्बत की आब-यारी को
बहुत ही टूट के बरसी घटा उदासी की

हमारी रात का इक वक़्त तय है जिस में हम
तमाम बिछड़े हुओं को बुलाने लगते हैं

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *