150+ Mirza Ghalib Shayari in Hindi 2025

Ghalib Shayari

मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू और फ़ारसी शायरी की दुनिया का वो नाम हैं, जिनकी शायरी आज भी दिलों में जिंदा है। उनकी कलम से निकले लफ़्ज़ सिर्फ़ शायरी नहीं, बल्कि जज़्बातों की गहराई और सोच की ऊँचाई को बयां करते हैं। Mirza Ghalib Shayari in Hindi का यह संग्रह आपको उनके सबसे मशहूर और दिल को छू लेने वाले शेरों से रुबरू कराएगा। मोहब्बत, तन्हाई, ज़िंदगी और खुदा से जुड़ी उनकी शायरी हर बार एक नया अहसास देती है। अगर आप ग़ालिब को महसूस करना चाहते हैं, तो यह कलेक्शन ज़रूर पढ़ें।

Ghalib Shayari in Hindi

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।
ज़िंदगी से यही शिकवा है हर पल,
कि जो मिला नहीं वो ही सबसे ज्यादा पसंद निकले।

दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है,
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।
हम हैं मुश्ताक़ और वो बेज़ार,
या इलाही ये माजरा क्या है।

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब,
जो लगाए न लगे और बुझाए न बने।

हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता।
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के बहलाने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है।

Mirza Ghalib Shayari in Hindi
Mirza Ghalib Shayari in Hindi

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।

इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।
हर वक्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे,
तू भी कभी सोच, तुझमें भी कोई ग़म होगा।

तेरे वादे पर जिए हम तो ये जान,
झूठ जाना कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता।
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त,
दर्द से भर न आए क्यों।

कोई उम्मीद बर नहीं आती,
कोई सूरत नज़र नहीं आती।
मौत का एक दिन मुअय्यन है,
नींद क्यों रात भर नहीं आती।

इश्क़ पर ज़ोर नहीं, ये वो आतिश ग़ालिब,
जो लगाए न लगे और बुझाए न बने।
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।

बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे।
इमाँ मुझे रोके है तो खींचे है मुझे कुफ़्र,
काबा मेरे पीछे है, कलीसा मेरे आगे।

निकलना खुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन,
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।
जो तुझ बिन नहीं जी सकते,
हम वो लोग हैं जो मर के भी तेरे नहीं हो पाए।

हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन,
ख़ाक हो जाएंगे हम तुमको ख़बर होने तक।
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त,
दर्द से भर न आए क्यों।

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।
दिल को बहलाने का ग़ालिब ये खयाल अच्छा है,
जन्नत की हक़ीक़त क्या है?

वफ़ा के नाम पे खुद को मिटा दिया हमने,
ग़ालिब के अशआर में जी लिया हमने।
तेरा ज़िक्र जब भी किया,
हर मिसरे में खुद को पा लिया हमने।

इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।
किसी की मुस्कुराहटों में थी ज़िंदगी हमारी,
उसी के ग़म में हमने खुद को खो दिया।

Heart Touching Mirza Ghalib Shayari in Hindi

इश्क़ की सज़ा भी मिली और तमाशा भी हुआ,
ग़ालिब के शेरों में हर दर्द बयाँ हुआ।
जिसे पाया नहीं हमने उम्र भर,
उसी का नाम हर साँस में समा गया।

दर्द जब कलम से निकला ग़ालिब की तरह,
हर अल्फ़ाज़ एक ज़ख्म बन गया।
जिसे लोग महज़ शायरी कहते हैं,
वो मेरी ज़िंदगी की दास्तान बन गया।

Heart Touching Mirza Ghalib Shayari in Hindi
Heart Touching Mirza Ghalib Shayari in Hindi

ग़ालिब के अशआर दिल को छू जाते हैं,
हर लफ़्ज़ में जैसे कोई आईना दिखाते हैं।
ये शायरी नहीं महज़ अल्फ़ाज़ हैं,
जिनमें हम अपना गुज़रा वक़्त पाते हैं।

ग़ालिब का नाम हो और दिल न धड़के,
ऐसा तो मुमकिन नहीं।
उनकी शायरी में जो जादू है,
वो और कहीं नहीं।

कुछ इस अदा से ग़ालिब ने दर्द को बयान किया,
कि ज़ख्म भी रो पड़े और दिल मुस्कुरा दिया।
उनके कलाम में जो सच्चाई थी,
वो आज भी हर दिल को हिला दिया।

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यों,
रोएंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यों।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं, ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।
डरता हूं देख कर दुनिया की बेरुखी ‘ग़ालिब’,
कि अब मोहब्बतों में भी सौदागर निकलते हैं।

न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता।

इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

कुछ इस तरह तेरी पलकों पे सजा रखा है,
तेरे ख्वाबों को आंखों में बसा रखा है।
तू चले भी जाए अगर दूर हमसे,
तेरी यादों को दिल में जिंदा रखा है।

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।
कुछ दर्द थे जो बयान न हो सके,
बस वही थे जो मेरी रूह से निकलते थे।

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यों,
रोएंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यों।
इश्क़ में जीना मुश्किल है ‘ग़ालिब’,
पर मरने की तमन्ना भी अब सताए क्यों।

You can also read Allama Iqbal Shayari In Hindi

न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।
तेरा ना होना भी क्या कमाल है,
तू पास होते हुए भी हर हाल में दूर होता।

इश्क़ पर ज़ोर नहीं, ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।
दिल जलता रहा तेरी यादों में,
पर कोई आहट न आई तेरे नाम की।

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता।
तेरे जाने का ग़म कुछ इस तरह सहा हमने,
कि ज़िंदगी का हर पल सवाल होता।

Ghalib Shayari on Love

इश्क़ ने ग़ालिब बर्बाद कर दिया,
हर खुशी को ग़म में तब्दील कर दिया।
जिसे चाहा उसी ने रुला दिया,
और हमारी तन्हाई को मसीहा बना दिया।

दिल दिया उसको जिसने तोड़ा हर बार,
ग़ालिब की तरह बस इश्क़ को पूजा बारम्बार।
जो समझ न सका दिल का आलम,
उसने ही दिल को सबसे ज़्यादा ज़ख़्म दिया।

इश्क़ वो दरिया है जिसमें डूब कर भी,
प्यास बुझती नहीं ग़ालिब।
हर लहर एक सज़ा सी लगती है,
और किनारा भी मंज़िल नहीं होता।

ग़ालिब कहते हैं इश्क़ आसान नहीं,
बस इतना समझ लो आग का दरिया है।
डूब जाना ही नसीब होता है यहां,
वरना किनारे पर सब तैरना जानते हैं।

उसकी यादों का मौसम कुछ ऐसा आया,
हर लम्हा बस ग़ालिब याद आया।
इश्क़ किया था दिल से हमने,
पर उसने हर ख्वाब अधूरा कर जाया।

Ghalib Shayari on Love in Urdu

عشق نے غالب کو ناکام کر دیا،
ہر خوشی کو زخم کھا کر دیا۔
دل کی ہر بات محبت تھی،
اور اُس محبت کو چھپ کر دیا۔

ہر ایک راہ میں اُس کا ہی چہرہ تھا،
جو غالب نے اپنے دل میں بسایا تھا۔
محبت کی درد بھری راہ میں،
ہر موڑ پہ اُس کا ہی نام تھا

محبت کا سفر بھی عجیب تھا،
غالب کی دعا بھی قسیم تھا۔
جو پیار میں تھا، اُس کی زندگی میں،
ہر خوشی کا رنگ بھی پیار کا تھا۔

تم سے جدا ہو کر غالب نے جانا ہے،
پیار کے جذبات کبھی کم نہیں ہوتے۔
جس نے دل سے اُسے چاہا تھا،
وہ دل کبھی اُس کا تھا نہیں۔

محبت کو محبت سے سمجھا تھا غالب،
پر یہ نہ سمجھ پایا کہ یہ خوشیوں کا سفر ہے۔
دل کی بات جو کہ نہ سکے،
وہ شاعری کی کس تکرا ہے۔

Mirza Ghalib Shayari in Hindi

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।
दिल की बात जुबां तक लाने की कोशिश की,
मगर तेरी ख़ामोशी में ही आरज़ू क्या है।

हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यों न ग़र्क-ए-दरिया,
न कभी जनाज़ा उठता, न कहीं मज़ार होता।
इस इश्क़ की गलियों में कोई मोड़ नहीं,
जो गया वो वापस न आया, ये ही इतिहास होता।

Mirza Ghalib Shayari
Mirza Ghalib Shayari

दर्द का रिश्ता बहुत पुराना निकला,
हर खुशी से ये बेगाना निकला।
ग़ालिब की शायरी जब पढ़ी हमने,
तो अपना ही अफ़साना निकला।

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,
जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।
इश्क़ ने भी हमको आज़माया बहुत,
पर हमने हर ग़म को गले से लगाया बहुत।

बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे।
ग़ालिब की तर्ज़ में कुछ कहने लगा हूं मैं,
हर लफ़्ज़ अब अशआर सा लगने लगा है।

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