150+ New Intezaar Shayari in Hindi 2025

इंतज़ार एक ऐसी भावना है जो किसी अपने के लौट आने की उम्मीद में दिल को हर पल बेचैन रखती है। जब हम किसी को दिल से चाहते हैं और उसका इंतज़ार करते हैं, तो हर लम्हा एक कहानी कहता है। Intezaar Shayari उन्हीं लम्हों की गहराई, दर्द और उम्मीद को खूबसूरत अल्फ़ाज़ों में बयां करती है। ये शायरी आपके जज़्बातों को न सिर्फ़ बयान करती है, बल्कि आपके दिल की आवाज़ भी बन जाती है। अगर आप भी किसी के इंतज़ार में हैं, तो इन शायरियों के ज़रिए अपनी फीलिंग्स को महसूस कीजिए और साझा कीजिए।
Intezaar Shayari in Hindi
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
इक रात वो गया था जहाँ बात रोक के
अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के
वो आ रहे हैं वो आते हैं आ रहे होंगे
शब-ए-फ़िराक़ ये कह कर गुज़ार दी हम ने
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
तेरे आने की क्या उमीद मगर
कैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं

न कोई वा’दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी
ये कैसा नश्शा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ
तू आ के जा भी चुका है मैं इंतिज़ार में हूँ
ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहर
वो इंतिज़ार था जिस का ये वो सहर तो नहीं
जान-लेवा थीं ख़्वाहिशें वर्ना
वस्ल से इंतिज़ार अच्छा था
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी
इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर
मुझे ख़बर थी मिरा इंतिज़ार घर में रहा
ये हादसा था कि मैं उम्र भर सफ़र में रहा
ग़ज़ब किया तिरे वअ’दे पे ए’तिबार किया
तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया
Emotional Intezaar Shayari
जानता है कि वो न आएँगे
फिर भी मसरूफ़-ए-इंतिज़ार है दिल
वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा
तो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं
सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी
जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ
उस ने सदियों की जुदाई दी है

मुझ को ये आरज़ू वो उठाएँ नक़ाब ख़ुद
उन को ये इंतिज़ार तक़ाज़ा करे कोई
बे-ख़ुदी ले गई कहाँ हम को
देर से इंतिज़ार है अपना
मैं ने समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले
तू ने जा कर तो जुदाई मिरी क़िस्मत कर दी
शब-ए-इंतिज़ार की कश्मकश में न पूछ कैसे सहर हुई
कभी इक चराग़ जला दिया कभी इक चराग़ बुझा दिया
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा
इस उम्मीद पे रोज़ चराग़ जलाते हैं
आने वाले बरसों ब’अद भी आते हैं
इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात
आप का ए’तिबार कौन करे
रोज़ का इंतिज़ार कौन करे
कहीं वो आ के मिटा दें न इंतिज़ार का लुत्फ़
कहीं क़ुबूल न हो जाए इल्तिजा मेरी
हमें भी आज ही करना था इंतिज़ार उस का
उसे भी आज ही सब वादे भूल जाने थे
अब इन हुदूद में लाया है इंतिज़ार मुझे
वो आ भी जाएँ तो आए न ए’तिबार मुझे
अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या
आने में सदा देर लगाते ही रहे तुम
जाते रहे हम जान से आते ही रहे तुम
कोई इशारा दिलासा न कोई व’अदा मगर
जब आई शाम तिरा इंतिज़ार करने लगे
Intezaar Shayari Hindi
काव काव-ए-सख़्त-जानी हाए-तन्हाई न पूछ
सुब्ह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर का
जिसे न आने की क़स्में मैं दे के आया हूँ
उसी के क़दमों की आहट का इंतिज़ार भी है
तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तको
तमाम खेल मोहब्बत में इंतिज़ार का है
बारहा तेरा इंतिज़ार किया
अपने ख़्वाबों में इक दुल्हन की तरह

कोई आया न आएगा लेकिन
क्या करें गर न इंतिज़ार करें
है ख़ुशी इंतिज़ार की हर दम
मैं ये क्यूँ पूछूँ कब मिलेंगे आप
मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल
हैरत में हूँ ये किस का मुझे इंतिज़ार है
क़ासिद पयाम-ए-शौक़ को देना बहुत न तूल
कहना फ़क़त ये उन से कि आँखें तरस गईं
ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर
आने का अहद कर गए आए जो ख़्वाब में
मौत का इंतिज़ार बाक़ी है
आप का इंतिज़ार था न रहा
आधी से ज़ियादा शब-ए-ग़म काट चुका हूँ
अब भी अगर आ जाओ तो ये रात बड़ी है
ये इंतिज़ार नहीं शम्अ है रिफ़ाक़त की
इस इंतिज़ार से तन्हाई ख़ूब-सूरत है
तमाम उम्र तिरा इंतिज़ार हम ने किया
इस इंतिज़ार में किस किस से प्यार हम ने किया
किस किस तरह की दिल में गुज़रती हैं हसरतें
है वस्ल से ज़ियादा मज़ा इंतिज़ार का
दरवाज़ा खुला है कि कोई लौट न जाए
और उस के लिए जो कभी आया न गया हो
मरने के वक़्त भी मिरी आँखें खुली रहीं
आदत जो पड़ गई थी तिरे इंतिज़ार की
उन के आने के बाद भी ‘जालिब’
देर तक उन का इंतिज़ार रहा
बड़े ताबाँ बड़े रौशन सितारे टूट जाते हैं
सहर की राह तकना ता सहर आसाँ नहीं होता
कमाल-ए-इश्क़ तो देखो वो आ गए लेकिन
वही है शौक़ वही इंतिज़ार बाक़ी है
ये इंतिज़ार न ठहरा कोई बला ठहरी
किसी की जान गई आप की अदा ठहरी
ओ जाने वाले आ कि तिरे इंतिज़ार में
रस्ते को घर बनाए ज़माने गुज़र गए
तेरे वादे को कभी झूट नहीं समझूँगा
आज की रात भी दरवाज़ा खुला रक्खूँगा
2 line Intezaar Shayari
ये जो मोहलत जिसे कहे हैं उम्र
देखो तो इंतिज़ार सा है कुछ
चले भी आओ मिरे जीते-जी अब इतना भी
न इंतिज़ार बढ़ाओ कि नींद आ जाए
आहटें सुन रहा हूँ यादों की
आज भी अपने इंतिज़ार में गुम
तमाम उम्र तिरा इंतिज़ार कर लेंगे
मगर ये रंज रहेगा कि ज़िंदगी कम है
अब ख़ाक उड़ रही है यहाँ इंतिज़ार की
ऐ दिल ये बाम-ओ-दर किसी जान-ए-जहाँ के थे
फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया
फिर उठ खड़ा हुआ वही रोग इंतिज़ार का

मैं सोचता हूँ मुझे इंतिज़ार किस का है
किवाड़ रात को घर का अगर खुला रह जाए
ऐ गर्दिशो तुम्हें ज़रा ताख़ीर हो गई
अब मेरा इंतिज़ार करो मैं नशे में हूँ
ये इंतिज़ार की घड़ियाँ ये शब का सन्नाटा
इस एक शब में भरे हैं हज़ार साल के दिन
लगी रहती है अश्कों की झड़ी गर्मी हो सर्दी हो
नहीं रुकती कभी बरसात जब से तुम नहीं आए
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
कभी सबा को कभी नामा-बर को देखते हैं
हैराँ हूँ इस क़दर कि शब-ए-वस्ल भी मुझे
तू सामने है और तिरा इंतिज़ार है
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तेरे आने का इंतिज़ार रहा
उम्र भर मौसम-ए-बहार रहा
बजाए सीने के आँखों में दिल धड़कता है
ये इंतिज़ार के लम्हे अजीब होते हैं
तिरे आने का धोका सा रहा है
दिया सा रात भर जलता रहा है
थक गए हम करते करते इंतिज़ार
इक क़यामत उन का आना हो गया
वो मुझे छोड़ के इक शाम गए थे ‘नासिर’
ज़िंदगी अपनी उसी शाम से आगे न बढ़ी
इसी ख़याल में हर शाम-ए-इंतिज़ार कटी
वो आ रहे हैं वो आए वो आए जाते हैं
कभी तो दैर-ओ-हरम से तू आएगा वापस
मैं मय-कदे में तिरा इंतिज़ार कर लूँगा
देखा न होगा तू ने मगर इंतिज़ार में
चलते हुए समय को ठहरते हुए भी देख
वादा नहीं पयाम नहीं गुफ़्तुगू नहीं
हैरत है ऐ ख़ुदा मुझे क्यूँ इंतिज़ार है
तेरी आमद की मुंतज़िर आँखें
बुझ गईं ख़ाक हो गए रस्ते
इतना मैं इंतिज़ार किया उस की राह में
जो रफ़्ता रफ़्ता दिल मिरा बीमार हो गया
Kisi Ka Intezar Shayari
रात बीती तो ये यक़ीं आया
जिस को आना था वो नहीं आया
वो इंतिज़ार की चौखट पे सो गया होगा
किसी से वक़्त तो पूछें कि क्या बजा होगा
कब वो आएँगे इलाही मिरे मेहमाँ हो कर
कौन दिन कौन बरस कौन महीना होगा
ये वक़्त बंद दरीचों पे लिख गया ‘क़ैसर’
मैं जा रहा हूँ मिरा इंतिज़ार मत करना
खुला है दर प तिरा इंतिज़ार जाता रहा
ख़ुलूस तो है मगर ए’तिबार जाता रहा
हद से गुज़रा जब इंतिज़ार तिरा
मौत का हम ने इंतिज़ार किया
तमाम उम्र यूँ ही हो गई बसर अपनी
शब-ए-फ़िराक़ गई रोज़-ए-इंतिज़ार आया
मिरी नाश के सिरहाने वो खड़े ये कह रहे हैं
इसे नींद यूँ न आती अगर इंतिज़ार होता
हुआ है यूँ भी कि इक उम्र अपने घर न गए
ये जानते थे कोई राह देखता होगा
ऐसी ही इंतिज़ार में लज़्ज़त अगर न हो
तो दो घड़ी फ़िराक़ में अपनी बसर न हो
न इंतिज़ार करो इन का ऐ अज़ा-दारो
शहीद जाते हैं जन्नत को घर नहीं आते
तुम आ गए हो तुम मुझ को ज़रा सँभलने दो
अभी तो नश्शा सा आँखों में इंतिज़ार का है
ये भी इक रात कट ही जाएगी
सुब्ह-ए-फ़र्दा की मुंतज़िर है निगाह
है किस का इंतिज़ार कि ख़्वाब-ए-अदम से भी
हर बार चौंक पड़ते हैं आवाज़-ए-पा के साथ
मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ
मैं इंतिज़ार की हर कैफ़ियत से गुज़रा हूँ
इश्क़ में यार गर वफ़ा न करे
क्या करे कोई और क्या न करे
आह क़ासिद तो अब तलक न फिरा
दिल धड़कता है क्या हुआ होगा
गुज़र ही जाएँगे तेरे फ़िराक़ के मौसम
हर इंतिज़ार के आगे भी हैं मक़ाम कई
कभी इस राह से गुज़रे वो शायद
गली के मोड़ पर तन्हा खड़ा हूँ
रात भी मुरझा चली चाँद भी कुम्हला गया
फिर भी तिरा इंतिज़ार देखिए कब तक रहे